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सरकार से करीब 12 दौर की बातचीत, 380 दिनों तक प्रदर्शन और कृषि कानूनों (Farm Laws) की वापसी के बाद अब आखिरकार किसान आंदोलन (Farmers Protest) खत्म करने का ऐलान हुआ है. इस लंबे और ऐतिहासिक आंदोलन के दौरान कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले. तमाम तरह की उलझनों के बावजूद इतने बड़े आंदोलन की बागडोर किसान नेताओं ने अपने हाथों में रखी. जानिए इस पूरे आंदोलन के दौरान सरकार कितने कदम आगे बढ़ी और किसान कितने कदम पीछे हटे.
सितंबर 2020 में तीनों कृषि कानूनों को संसद में पेश किया गया और उन्हें दोनों सदनों से पास करा दिया गया. विपक्ष ने जमकर हंगामा किया, लेकिन प्रचंड बहुमत वाली सरकार के आगे उनकी एक नहीं चली. इस दौरान किसानों का विरोध लगातार तेज हो रहा था. जैसे ही ये बिल कानून बन गया, विरोध और तेज हुआ.
14 अक्टूबर को सरकार की तरफ से किसान संगठनों के नेताओं को बुलावा भेजा गया. बताया गया कि कृषि मंत्री किसानों से इस पर बातचीत करेंगे. लेकिन जब किसान नेता दिल्ली पहुंचे तो उन्हें कृषि सचिव और कुछ अधिकारी वहां मिले. कृषि मंत्री इस बैठक से नदारद नजर आए. किसानों ने भरी बैठक में कृषि कानूनों को फाड़कर अपना विरोध जताया. इसे सरकार ने अपना पहला कदम बताया था.
इसके बाद किसान एकजुट होने लगे और 26 नवंबर को दिल्ली कूच का ऐलान किया गया. दिल्ली पहुंचने से पहले ही किसानों का सामना पुलिस की लाठियों, पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों से हुआ. ये सब झेलने के बावजूद दिल्ली किसान दिल्ली की सीमाओं तक पहुंचे और वहीं डेरा जमा लिया.
लेकिन सरकार की तरफ से वहीं पर अपने कदम जमा लिए गए. सरकार ये मानने को तैयार नहीं हुई कि उसके कानूनों में खोट है. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जनवरी 2021 में कहा कि हम किसानों से बातचीत करने के लिए अभी भी तैयार हैं. लेकिन 12वें दौर की बातचीत के बाद किसी ने भी पहल नहीं की. फरवरी 2021 से बातचीत पूरी तरह से बंद हो गई. न तो सरकार कदम बढ़ाने को तैयार थी, न ही किसानों ने कोई पहल की. किसान कहते कि सरकार की तरफ से बातचीत का बुलावा आएगा तो जाएंगे, वहीं सरकार का कहना था कि अगर संशोधनों पर बातचीत करनी है तो दरवाजे खुले हैं.
इसके बाद दिन और महीने बीतते चले गए और नवंबर 2021 आया. जिसके कुछ ही महीनों बाद यूपी, पंजाब और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में चुनाव होने हैं. 19 नवंबर को अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान कर दिया. ये सरकार की तरफ से आगे बढ़ाया गया सबसे बड़ा कदम था, वहीं किसानों की बड़ी जीत थी. पीएम के ऐलान के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि कानून वापसी बिल भी पास हुआ और राष्ट्रपति ने उस पर मुहर लगा दी.
कृषि कानूनों की वापसी के बाद सरकार को लगा कि अब किसान आंदोलन खत्म करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. किसानों ने केस वापसी, मुआवजे और एमएसपी गारंटी जैसी मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखा. इस पर सरकार ने फिर एक प्रस्ताव किसानों को दिया, जिसमें तमाम मांगों को लेकर वादा किया गया था. लेकिन किसानों की तरफ से केस वापसी, मुआवजे और एमएसपी को लेकर बनाई जाने वाली कमेटी के वादे पर कुछ संशोधन बताए गए.
इसके बाद किसान संगठनों ने बैठक की और इस प्रस्ताव पर सभी ने सहमति जताई. लेकिन ऐसा नहीं है कि किसानों की सभी मांगें सरकार ने पूरी कर लीं, इस बार किसानों को भी कुछ कदम पीछे हटना पड़ा और आंदोलन वापसी का ऐलान करना पड़ा. लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्र के पिता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र का इस्तीफा भी किसानों की एक मांग थी, जो पूरी नहीं हुई.
किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि हमारी जीत हुई है, लेकिन अब भी कुछ चीजें हैं जो पूरी तरह से नहीं मिल पाईं. उन्होंने कहा,
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि, जो मांगें अभी पूरी नहीं हुई हैं उन्हें लेकर सरकार से समझौता हुआ है. जिसके बाद ही ये फैसला लिया गया. इस समझौते को भी एक तरह से जीत ही माना जाता है.
ठीक इसी तरह किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने क्विंट से बातचीत में कहा कि, सरकार की तरफ से लिखित आश्वासन दिया गया है, जिसके बाद आंदोलन वापसी का फैसला लिया गया है. लखीमपुर खीरी मामले पर किसान मोर्चा के पीछे हटने पर चढूनी ने कहा कि, मामला सुप्रीम कोर्ट है इसलिए छेड़छाड़ करना ठीक नहीं है. यूपी के किसान इसे देख रहे हैं.
कुल मिलाकर किसानों के इस बड़े आंदोलन और मजबूत इच्छाशक्ति की बदौलत सरकार को झुकने पर मजबूर किया गया. जो सरकार इस दावे के साथ कानून लाई थी कि वो किसानों के हित में हैं, उसी को आखिरकार आगे बढ़कर उन्हें वापस लेना पड़ा और किसानों की बाकी मांगों को लेकर भी वादा किया गया. भले ही किसानों ने अपनी कुछ मांगों को लेकर कदम पीछे खींचकर आंदोलन वापसी का ऐलान किया, लेकिन एक जगह पर अड़े रहने वाली सरकार को कई बड़े कदम बढ़ाने पर मजबूर कर किसानों ने एक ऐतिहासिक जीत अपने नाम कर दी.
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