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378 दिन के आंदोलन में किसानों ने क्या खोया-क्या पाया?

तीन कृषि कानून वापस हुए, किसानों के मुकदमे हटाने का आश्वासन मिला और करीब 700 किसानों की जान गई.

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भारत
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किसान आंदोलन (farmer Protest) 378 दिन बाद इतिहास में खुद को दर्ज कराकर आखिरकार स्थगित हो गया. इस आंदोलन ने सख्त कही जाने वाली और पूर्ण बहुमत की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार को ना सिर्फ झुकाया. बल्कि पहली बार ऐसा हुआ कि पीएम मोदी ने खुद किसी काम के लिए आकर टीवी पर माफी मांगी. किसानों (Farmers) के लिए पिछला एक साल आसान नहीं रहा. कानून वापसी (Farm lews repealed) होने तक उन्होंने तरह-तरह की परेशानियों का सामना किया. सर्दी, गर्मी और बरसात के बीच किसानों ने खालिस्तानी आतंकवादी जैसे आरोप भी झेले.

लेकिन किसान डटे रहे, वो जरा भी नहीं डिगे. इसी की बदौलत सरकार ने कृषि कानून वापस लिये. अब सवाल ये है कि इतने लंबे चले आंदोलन से किसानों ने क्या पाया और क्या खोया?
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इस आंदोलन से किसानों ने क्या पाया?

इस आंदोलन में कामयाबी के तौर पर गिनाने के लिए किसानों के पास बहुत कुछ है. आजाद भारत के इतिहास में बहुत कम ऐसे आंदोलन हुए हैं जो इतने कामयाब रहे और किसान आंदोलन उनमें से एक है. किसानों ने सरकार को ना सिर्फ तीन कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर किया बल्कि सरकार को किसानों के ऊपर दर्ज किये मुकदमे भी वापस लेने पड़े.

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प्रधानमंत्री का ऐलान

सरकार और किसान संगठनों के बीच बात नहीं बन रही थी, तभी 19 नवंबर को अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने आकर ऐलान कर दिया कि उनकी सरकार तीन नए कृषि कानून वापस ले रही है. इसके बाद तुरंत 24 नवंबर को कैबिनेट ने कह दिया कि शीतकालीन सत्र में कानून वापस ले लिए लिये जाएंगे. और इस तरह से पहाड़ सा दिख रहा लक्ष्य किसानों ने पा लिया.

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MSP पर कमेटी

तीन कृषि कानूनों की वापसी के अलावा एमएसपी पर कानून किसानों की दूसरे सबसे प्रमुख मांग थी जिस पर सरकार ने कमेटी का गठन कर दिया. इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भी शामिल हैं. ये कमेटी तय करेगी कि एमएसपी किसानों को किस तरह से दी जाये, क्योंकि किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें एमएसपी मिल ही नहीं पाती.

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पराली और बिजली

पराली जलाने को लेकर सख्ती पर भी किसानों को राहत मिली और आपराधिक मुकदमों से छुटकारा मिल गया. इसके अलावा नए बिजली बिल को लेकर भी सरकार ने किसानों की बात मान ली. सरकार इस पर पहले किसानों से बात करेगी उसके बाद ही बिल पेश होगा.

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जनता का समर्थन

किसानों को इस आंदोलन में जनता का भरपूर समर्थन मिला. लोग अपनी मर्जी से जाकर लंगरों में काम करते दिखे. ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों बड़ा समर्थन हासिल था, इसीलिए कई जगह प्रदर्शन होने के बाद भी कभी खाने-पीने की चीजों की कमी नहीं हुई. क्योंकि पंजाब, हरियाणा, यूपी और उत्तराखंड से लोग लगातार खाने का सामान भेजते रहे. इतना ही नहीं इस आंदोलन में बच्चों और महिलाओं का भी खूब समर्थन मिला.

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विदेशों में भी मिला आंदोलन को समर्थन

भारत में ही नहीं किसान आंदोलन को विदेशी हस्तियों का भी साथ मिला. पॉप स्टार रिहाना से लेकर ग्रेटा थनबर्ग तक ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया और इसके अलावा विदेशों में रहने वाले भारतीयों से भी किसानों को समर्थन मिला. इसके अलावा ब्रिटेन में लेबर पार्टी, लिबरल डेमोक्रेट और स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सांसदों ने किसानों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और कंज़रवेटिव विपक्ष के नेता एरिन ओ' टूले ने भी इन विरोध प्रदर्शन पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता जताई थी.

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किसानों ने क्या खोया?

सरकार ने किसानों की बात मानी है, आंदोलन सफल रहा, लेकिन इसके लिए किसानों ने भारी कीमत अदा की है. किसानों के मुताबिक इस आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने जान गंवाई है. लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर आरोप है कि उन्होंने किसानों को अपनी कार से कुचल दिया था. इसी मामले में किसान अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग कर रहे थे.

इसके अलावा आंदोलन के दौरान कई किसानों ने आत्महत्या कर ली. बंगाल से आंदोलन में शामिल होने आई एक महिला के साथ बलात्कार के भी आरोप भी लगे और बाद में उसकी मौत हो गई जिसका कारण कोरोना बताया गया.

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वर्षों तक याद किया जाएगा ये आंदोलन

किसान आंदोलन ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जो वर्षों तक दी जाएगी. एक साल से ज्यादा चला ये आंदोलन ब़ड़ी संख्या में और कई जगह होने के बावजूद नियमों से बंधा रहा. 26 जनवरी की घटना को छोड़ दिया जाये तो ये आंदोलन शांत रहा, हालांकि इसमें किसानों ने कहा था कि वो हमारे लोग नहीं थे. फिर भी ये आंदोलन जितना बड़ा था उतना ही संगठित और नियमित था.

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