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चुनावी बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के जवाब ने खड़े कर दिए ये नए सवाल

पढ़िए चुनावी बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के दावों में कितना दम है

पूनम अग्रवाल
भारत
Published:
चुनावी बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के जवाब ने खड़े कर दिए ये नए सवाल
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चुनावी बॉन्ड पर वित्त मंत्रालय के जवाब ने खड़े कर दिए ये नए सवाल
(फोटोः The Quint)

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वित्त मंत्रालय का सबसे पहले शुक्रिया. वो, इसलिए क्योंकि उन्होंने चुनावी बॉन्ड पर ‘सीक्रेट कोड’ की क्विंट की स्टोरी पर खुद ही मुहर लगा दी है. यानी वित्तमंत्रालय ने चुनावी बॉन्ड पर 'सीक्रेट कोड' के खुलासे को वाजिब माना है.

वित्त मंत्रालय का बयान

प्रेस रिलीज में स्पष्ट किया गया है कि चुनावी बॉन्ड (इलेक्ट्रोरल बॉन्ड) में सिक्योरिटी के लिए 'सीक्रेट कोड' होता है और इस नंबर को सरकार या कोई दूसरा जान नहीं सकता. लेकिन इस सफाई में भी कई विरोधाभासी बातें हैं.

द क्विंट ने ठोस सबूतों के आधार पर बताया है कि सरकार जनता को यह कहकर गुमराह कर रही है कि अगर कोई भी शख्स चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देता है, तो उनकी पहचान गुप्त रहेगी. ये गुप्त इसलिए नहीं रह सकती क्योंकि हर बॉन्ड में एक सीक्रेट कोड लिखा हुआ है जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता सिर्फ अल्ट्रा वॉयलेट रे से दिखता है. इस कोड के जरिए सरकार आसानी से पता लगा सकती है कि किसने बॉन्ड खरीदा और किसको दिया.

जनवरी 2018 में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी बॉन्ड लॉन्च किया, तो उन्होंने वादा किया कि किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देने वालों को पहचान का खुलासा होने को लेकर डरने की जरूरत नहीं है.

लेकिन, वित्त मंत्री का ये वादा झूठा साबित हो गया. वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किए गए स्पष्टीकरण का यहां प्वॉइंट टू प्वॉइंट खंडन किया गया है.

अगर ये एक सिक्योरिटी फीचर है, तो फिर ये इतना अलग क्यों है?

वित्त मंत्रालय ने प्रेस रिलीज में कहा कि चुनावी बॉन्ड पर जो 'सीक्रेट कोड' दिया गया है, वो सिक्योरिटी फीचर है.

देखिए- वित्त मंत्रालय ने 'सीक्रेट कोड' पर क्या कहा?

चुनावी बॉन्ड में सिक्योरिटी फीचर को शामिल किया गया है. गुप्त कोड इसलिए है, ताकि जालसाजी या फर्जीवाड़े से बचा जा सके. बॉन्ड पर जो सीरियल नंबर है उसे नंगी आखों से नहीं देखा जा सकता है.

लेकिन वित्त मंत्रालय के इस जवाब ने कई और सवाल खड़े कर दिए हैं.

पहला सवालः अगर गुप्त नंबर सिक्योरिटी फीचर है, तो ये इतना यूनीक क्यों हैं?

सरकार को अगर फर्जीवाड़े से बचने के लिए कोई गुप्त नंबर रखना भी था तो वह कोई सामान्य नंबर भी हो सकता था या फिर किसी आम पैटर्न का इस्तेमाल भी किया जा सकता था. केवल फर्जीवाड़े को रोकने के लिए इस सीक्रेट कोड को यूनीक बनाने की क्या जरूरत थी?

दूसरा सवालः यूनीक अल्फानुमेरिक सीरियल नंबर को सिक्योरिटी फीचर बनाने की जरूरत क्या थी?

बॉन्ड पर पहले से ही कई वॉटरमार्क मौजूद हैं, जिनका बतौर सिक्योरिटी फीचर इस्तेमाल किया जा सकता था. फिर, अलग से एक यूनीक नंबर की जरूरत क्यों पड़ी?

तीसरा सवालः अगर आरबीआई हमारी करंसी में कोई गुप्त सीरियल नंबर शामिल नहीं करती है, तो फिर चुनावी बॉन्ड में इसकी क्या जरूरत थी?

बॉन्ड की ही तरह हमारी करंसी पर भी कई वॉटरमार्क होते हैं, जिन्हें अगर रौशनी में करने पर नंगी आंखों से देखा जा सकता है. क्या सरकार यह कहने की कोशिश कर रही है कि चुनावी बॉन्ड (जिनकी एक्सपायरी लिमिट 15 मिनट है) भारतीय करंसी से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं?

अगर ये सीक्रेड कोड रिकॉर्ड में नहीं है, तो इसे छिपाने की क्या जरूरत थी?

वित्त मंत्रालय ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा-

इस सीक्रेट नंबर को कहीं भी नोट नहीं किया जाता है. यहां तक कि जारीकर्ता एसबीआई बैंक भी इसे कहीं दर्ज नहीं करता. 

अगर इस सीक्रेड कोड को कहीं नोट नहीं किया जाता है, तो फिर ये कोड बॉन्ड पर है क्यों? और पब्लिक को कैसे पता चलेगा कि इस नंबर का कहीं भी रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है?

अगर एसबीआई के पास इस सीक्रेट कोड का कोई रिकॉर्ड नहीं है तो फिर इस नंबर का इस्तेमाल सिक्योरिटी फीचर के तौर पर कैसे किया जा सकता है?

अगर एसबीआई के पास सीक्रेट नंबर का कोई रिकॉर्ड नहीं है तो वह इन नंबरों का मिलान कैसे करेंगे और एसबीआई को कैसे पता चलेगा कि कौन सा बॉन्ड असली है और कौन सा नकली?

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चुनावी बांड पर नहीं होता खरीदार का नाम, लेकिन SBI को चाहिए KYC

वित्त मंत्रालय ने प्रेस रिलीज में सफाई देते हुए कहा है-

कोई भी खरीदार KYC मानकों को पूरी तरह भरने और किसी बैंक खाते से भुगतान करने के बाद ही चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. चुनावी बॉन्ड पर किसी प्राप्‍तकर्ता का नाम या कोई भी ऐसा विवरण नहीं लिखा होता है जिससे बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान की जा सकती है.

जब मैं 1000 रुपये का चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए एसबीआई गई, तो मुझे संदेह भरी नजरों से देखा गया. मैंने सेल्फ अटेस्ट KYC डॉक्यूमेंट जमा करे, जिन्हें कई बार देखा गया और उनका ओरीजनल डॉक्यूमेंट्स के साथ कई बार मिलान किया गया.

जब मैंने उन्हें बताया कि मेरा पैन कार्ड खो गया है तो एसबीआई ने मुझे चुनावी बॉन्ड देने से इंकार तक कर दिया. लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मेरे पैन नंबर को बैंक आसानी से वैरिफाई कर सकता है.

लेकिन एसबीआई के अधिकारी ने मुझसे कहा-

ऐसी स्थिति में हम आपको चुनावी बॉन्ड नहीं दे सकते. क्योंकि वित्त मंत्रालय से ऐसे निर्देश मिले हैं. 

एसबीआई के एस अन्य सीनियर अफसर तो इनसे भी आगे निकल गए. उन्होंने कहा-

हम सरकार का सिर्फ एक अंग हैं. हमें सभी आदेश सरकार से, वित्त मंत्रालय से मिलते हैं. बैंक को ऐसी स्थिति के लिए कोई भी निर्देश नहीं हैं. अगर आप हमारी बैंक के ग्राहक होते तो, हम आपका स्वागत करते. ये कुछ ऐसी जरूरतें हैं, जो भारत सरकार की ओर से तय की गई हैं. हम केवल नोडल / ऑपरेटिंग एजेंसी हैं. 

ऐसे में जब वित्त मंत्रालय यह कहता है कि-

एसबीआई किसी के साथ भी सीरियल नंबर शेयर नहीं करता है, यहां तक कि सरकार और उसके खुद के यूजर्स के साथ भी नहीं. 

तो फिर क्या इस पर भरोसा किया जा सकता है?

अगर नंबर का रिकॉर्ड ही नहीं है, तो फिर 'सिक्योरिटी फीचर' में 'सिक्योरिटी' कहां है?

चुनावी बॉन्ड को कैश कराने के लिए राजनीतिक दल को ऑरिजनल चुनावी बॉन्ड एसबीआई में डिपॉजिट कराना होता है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि चुनावी बॉन्ड पर बॉन्ड जमा करने वाले राजनीतिक दल का कोई भी विवरण नहीं लिखा होता है.

वित्त मंत्रालय ने प्रेस रिलीज के जरिए अपने बयान में कहा है-

बॉन्ड जमा करने वाले राजनीतिक दल का कुछ भी विवरण चुनावी बॉन्ड पर लिखा नहीं होता है. किसी भी खास बॉन्ड को देखकर किसी खरीदार विशेष अथवा इसे जमा करने वाले राजनीतिक दल की पहचान नहीं की जा सकती है. 

लेकिन चुनावी बॉन्ड को भुनाने के लिए राजनीतिक दल को एसबीआई में ओरिजनल बॉन्ड जमा करना होता है. इसका मतलब है कि बॉन्ड एसबीआई से खरीदार और खरीदार से राजनीतिक दल के हाथों होते हुए बॉन्ड वापस एसबीआई के पास ही आता है.

अब, क्या एसबीआई की ये जिम्मेदारी नहीं है कि वह यूनीक सीक्रेट कोड समेत बॉन्ड के सभी सिक्योरिटी फीचर चेक करे, जिससे बॉन्ड को सुरक्षित रखा जा सके?

या फिर जैसा कि वित्त मंत्रालय ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा है कि एसबीआई छिपे हुए यूनीक नंबर को अपने रिकॉर्ड में नहीं रखता है?

अगर एसबीआई छिपे हुए यूनीक नंबर को सिक्योरिटी फीचर के तौर पर उस वक्त चेक करती है, जब राजनीतिक दल उसे डिपॉजिट कराते हैं, तो इसका मतलब है कि यूनीक नंबर को चुनावी बॉन्ड खरीदार को देते वक्त रिकॉर्ड में रखा जाता है.

अब एक आखिरी सवाल-

प्रेस रिलीज में यह माना गया है कि बॉन्ड पर रेंडम सीरियल नंबर होते हैं. ऐसे में कोई नंबर एक ही वक्त में रेंडम और सीरियल दोनों कैसे हो सकता है? या तो नंबर सीरियल में हो सकते हैं या फिर रेंडम. लेकिन दोनों एकसाथ कभी भी नहीं.

अब हमें इन तथ्यों पर वित्त मंत्रालय के अगले जवाब का इंतजार है.

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