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चुनावी बॉन्ड में सीक्रेट कोड, किसको दिया चंदा जान लेगी सरकार

क्विंट की जांच से जो निकलकर आया है वो वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयान के उलट है

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राजनीतिक पार्टियां कैसे फंड जुटाती हैं, इस पूरी प्रक्रिया में 'पारदर्शिता' लाने के नाम पर इलेक्टोरल बॉन्ड लाया गया था. लेकिन क्या अब हम ऐसी निगरानी में हैं, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया?

इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के वक्त ये बताया गया था कि बॉन्‍ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर के अलावा और किसी को नहीं होगी. हालांकि क्विंट के इंवेस्टिगेशन से पता चलता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में 'अल्फा-न्युमेरिक नंबर' छिपे हुए हैं, जिन्‍हें नंगी आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन दावे से उलट, इससे ये पता चलता है कि किसने किसको भुगतान किया है.

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दूसरे शब्दों में, एक तरफ कोई ये नहीं जान सकेगा कि किसने किस पार्टी को डोनेट किया है, वहीं ‘बिग ब्रदर’ के पास इस ‘अल्फा-न्युमेरिक नंबर’ के जरिए पूरा ब्योरा होगा. ऐसे में सरकार के पास पूरा डेटा होगा, सिर्फ आपका बैंक अकाउंट ही नहीं, फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन, राजनीतिक दल के प्रति रुझान जैसे डेटा सरकार के पास होंगे.

लैब रिपोर्ट से हुआ छिपे हुए नंबरों का खुलासा

क्विंट ने इसकी पड़ताल के लिए 1-1 हजार कीमत के दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे. बॉन्ड में कोई छिपा हुआ फीचर या नंबर है या नहीं, इसकी जांच के लिए उसे फॉरेंसिक टेस्ट के लिए भेजा गया. पहला बॉन्ड 5 अप्रैल को खरीदा गया था, जबकि दूसरा बॉन्ड 9 अप्रैल को खरीदा गया.

देश के सबसे प्रतिष्ठित लैब में इसकी जांच कराई गई. लेबोरेटरी रिपोर्ट दिखाती है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में अल्फा न्युमेरिक नंबर्स हैं. 5 अप्रैल को जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड में छिपा हुआ यूनिक नंबर है- OT 015101, जबकि 9 अप्रैल को जारी किए गए बॉन्ड का यूनिक नंबर है- OT 015102.

लैब रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अल्ट्रा वायलेट लाइट में परीक्षण करने पर ओरिजिनल डॉक्यूमेंट के दाहिनी ओर ऊपरी किनारे पर’ सीरियल नंबर छिपा हुआ दिखता है. ((visible on the right top corner of the original document showing fluorescence when examined under UV Light))
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रिपोर्ट से हमें जो मालूम चला, उसके हिसाब से सरकार के लिए हमारे पास कुछ सवाल हैं:

  1. क्या राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड में छिपे हुए अल्फा-न्युमेरिक नंबरों के बारे में पता है? क्या चुनाव आयोग को भी इस बार में कुछ पता है?
  2. आम लोगों और बॉन्ड के संभावित खरीदारों के लिए ये खुलासा क्यों नहीं किया गया?
  3. क्या SBI को इन छिपे हुए नंबरों के बारे में पता है? और क्या वो इन नंबरों को किसी भी सरकारी एजेंसी या डिपार्टमेंट के सामने जाहिर करने के लिए बाध्य हैं? क्या SBI इन नंबरों को रिकॉर्ड करता है.
  4. क्या ये राजनीतिक दलों के प्रति रुझान जानने को लेकर नियंत्रण हासिल करने के लिए की गई निगरानी नहीं है?
हमारी जांच से जो निकलकर आया, वो वित्त मंत्री जेटली के उस बयान के उलट है, जिसमें उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड को वाजिब ठहराया था. उन्होंने कहा था, ‘’कोई भी डोनर कितना और किसी पॉलिटिकल पार्टी को चंदा देता है, ये बस उस डोनर को ही पता होगा’’ (link: http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=175452
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इलेक्टोरल बांड को सरकार ने बियरर इंस्ट्रूमेंट की तरह पेश किया है. यह प्रॉमिसरी नोट की तरह है. कॉरपोरेट कंपनियां और आम लोग इसका इस्तेमाल बैंकिंग चैनल के जरिये राजनीतिक पार्टी को चंदा देने में करेंगे. सरकार ने कहा है कि इलेक्टोरल बांड कैश में राजनीतिक दलों को चंदा देने और चुनावी खर्चों को कैश में दिखाने के पारंपरिक तरीकों पर लगाम लगाएगा.

ये बॉन्ड साल की हर तिमाही में बेचा जाता है, जिसे महीने के शुरुआती 10 दिनों में खरीदा जा सकता है. इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नामित शाखाओं से खरीदा जा सकता है. हमने इससे पहले अपनी रिपोर्ट में दिखाया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड में कोई सीरियल नंबर नहीं है, जिसे नंगी आंखों से देखा जा सके. जैसा कि आप तस्वीर में देख सकते हैं कि कोई सीरियल नंबर या डोनर का नाम इस पर दिखाई नहीं देता. ऐसे में इसे खरीदने वाले को ये भरोसा होता है कि वो ट्रैक नहीं किया जा सकता है. सिर्फ बॉन्ड के जारी होने की तारीख ही इस पर दिखती है.

क्विंट ने वित्त मंत्रालय को लिखकर ये जवाब मांगा है कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड पर हिडेन नंबर क्यों हैं? जैसे ही मंत्रालय से हमें कोई प्रतिक्रिया मिलती है, हम अपनी रिपोर्ट को अपडेट करेंगे.

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