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दिल्ली के प्रगति मैदान के सामने झुग्गियों की कॉलोनियां हैं, जिसमें से एक जनता कैंप है. इस कॉलोनी की गलियों में 6 साल की हिमांशी खेल रही थी. उसने एक ओवर साइज टी-शर्ट पहन रखा था, जिसके पीछे G20 का लोगाे छपा हुआ था.
हिमांशी के घर के पास कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स द्वारा वंचित बच्चों के लिए स्टडी ग्रुप आयोजित किया जाता है. उसी ग्रुप का जिक्र करते हुए हिमांशी ने कहा कि ये टी-शर्ट "ट्यूशन में किसी ने दिया है."
उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि भारत जिस वैश्विक G20 कार्यक्रम की तैयारी कर रहा है, उसकी वजह से उसके सिर के ऊपर से छत छिन सकती है.
हिमांशी की 25 वर्षीय मां जानकी सवाल पूछते हुए कहती हैं कि "लगभग 10 साल से हम यहां इस जगह पर रह रहे हैं. हमारे बच्चे पास के स्कूलों में जाते हैं. अगर हमें इस जगह से हटने के लिए कहा जाएगा, तो उनकी शिक्षा का क्या होगा?"
लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अधिकारियों ने 28 जनवरी को एक नोटिस चिपकाया, जिसमें कॉलोनी के रहवासियों से अनुरोध किया गया कि 15 दिनों के भीतर वे अपने घर खाली कर दें. हालांकि किस वजह से घर खाली करने को कहा गया है इसका कोई जिक्र उस नोटिस में नहीं था, जबकि रहवासियों का मानना है कि G20 समिट को लेकर "सफाई" की जा रही है.
इससे पहले कि कोई विध्वंस या बेदखल करने की गतिविधियां हो पाती, 14 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने नोटिस पर रोक लगाने का आदेश दे दिया और सरकारी अधिकारियों से रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है. हालांकि, वहां के निवासियों के मन में अभी भी अनिश्चितता है.
सैकड़ों परिवार जनता कैंप में दशकों से रह रहे हैं. यह कॉलोनी तीन हिस्सों में बंटी हुई है, एक बड़ा नाला कॉलोनी के एक हिस्से को बाकी के दो हिस्सों से अलग करता है. रहवासियों ने दावा करते हुए कहा कि प्रगति मैदान के गेट क्रमांक 1 के सामने मुख्य सड़क पर मौजूद केवल 50 घरों को खाली करने के नोटिस दिए गए थे, क्योंकि "वे सीधे जनता की नजर में हैं.
इस कैंप में ज्यादातर घर दिहाड़ी मजदूरों और स्ट्रीट वेंडर्स के हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब यहां के रहवासियों को बुलडोजर के खतरे का सामना करना पड़ रहा है. 2010 में भारत द्वारा आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इसी तरह के अभियान चलाए गए थे.
सवाल करते हुए उन्होंने पूछा कि "हम यहां 27 साल से रह रहे हैं. ऐसे में यह कैसे संभव है कि हमारे 27 साल के जीवन को यहां से उखाड़ फेंक दिया जाए और 15 दिनों के भीतर हम यहां से बाहर निकल जाएं? इतने कम समय में हम कहां जाएंगे?"
कई निवासियों ने जनता कॉलोनी के अपने निवास का प्रमाण (सरकारी स्टैम्प द्वारा वैध दस्तावेज) दिखाए.
शमी कहते हैं कि "2013 में अपने नाम से मैंने अपने पते पर बिजली का मीटर लगवाया था. कुछ पड़ोसियों के यहां 2013 और 2014 में मीटर लगाए गए हैं. मेरा आधार कार्ड भी उसी पते पर बना है. 50 में से कम से कम 30 परिवारों के पास अब वैध बिजली मीटर हैं." हैरानी जताते हुए शमी ने कहा कि अचानक से ये सब बेकार कैसे हो सकते हैं?
शमी, पांच बच्चों के पिता हैं. शुरुआती दिनों में वे बिहार स्थित अपने गांव और दिल्ली में स्विच किया करते थे. लेकिन अपने बच्चों की शिक्षा की स्थिरता के लिए 27 साल वे पहले स्थायी रूप से जनता कैंप में बस गए थे.
कई वर्षों तक छोटे-मोटे काम करने के बाद, शमी अब एक ऐसी कंपनी में काम करते हैं जो दिन में डिस्प्ले बैनर छापती है और शाम को प्रगति मैदान के सामने वाली सड़क पर चाय की दुकान चलाती है. हिमांशी और जनता कैंप के अधिकांश बच्चों की तरह, उनके दो बच्चे भी काका नगर में एनडीएमसी (नई दिल्ली नगर निगम) के स्कूल में जाते हैं.
घर खाली करने का नोटिस मिलने के बाद शमी और अन्य निवासियों ने उपराज्यपाल (एलजी), मुख्यमंत्री, स्थानीय निगम सदस्य (पार्षद या कॉर्पोरेटर), स्थानीय विधायक और पुलिस आयुक्त कार्यालय के कार्यालयों को मदद की गुहार लगाते हुए पत्र दिया. कोर्ट से मदद मिलने से पहले मजदूर आवास संघर्ष समिति नामक एक एनजीओ ने कानूनी प्रक्रिया में उनकी मदद की थी.
65 वर्षीय पार्वती उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली हैं, वे करीब 30 वर्षों से जनता कैंप में रह रही हैं.
पार्वती कहती हैं कि "जब प्रगति मैदान का हॉल नंबर 6 बनाया जा रहा था, तब मेरे पति और मैंने वहां मजदूरों के रूप में काम किया था. जब भी यहां मेले आयोजित होते हैं, हम मजदूरों के तौर पर उसमें काम करते हैं और उन मेलों के सेटअप में अपना योगदान देते हैं."
पार्वती की तरह, जनता कैंप में रहने वाले कई लोगों को प्रगति मैदान में पुस्तक मेले और व्यापार मेले जैसे कार्यक्रमों में रोजगार मिलता है.
पार्वती कहती हैं कि "हम चाहते हैं कि मेटल की चादरों से बाउंड्री वॉल बना दी जाए ताकि हम बिल्कुल भी दिखाई न दें. हम जैसे बूढ़े लोग अचानक से कहां जाएंगे?" वे आगे कहती हैं कि "अगर हम बिल्कुल भी दिखाई नहीं देंगे तो हमारे घरों को तोड़ने की कोई जरूरत नहीं होगी."
इसी तरह की भावनाएं अन्य रहवासियों ने भी व्यक्त की.
घर खाली करने का या वहां से बाहर निकलने का जो नोटिस चिपकाया गया है, उसमें कहा गया है कि यदि रहवासी 15 दिनों के भीतर घरों को खाली नहीं करते हैं तो उन्हें दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) द्वारा संचालित आश्रय गृह (शेल्टर होम) में शिफ्ट कर दिया जाएगा.
बेदखल करने के मामलों में, DUSIB द्वारा पुनर्वास नीति का पालन करने की जरूरत होती है. दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 के अनुसार आम तौर पर प्रक्रिया इस प्रकार है :
कोई भी सरकारी निकाय जिसके पास भूमि है, उसको DUSIB के साथ सहयोग (समन्वय) करना होगा और अधिनियम में पूर्व और बाद की प्रक्रियाओं के निर्दिष्ट सेट का पालन करना जरूरी है.
किसी भी क्षेत्र को ढहाने से पहले वहां के निवासियों की पात्रता निर्धारित करने के लिए उस क्षेत्र के दो सर्वे करने होंगे. इसके साथ ही सर्वे करने की सूचना भी चार सप्ताह पहले दी जानी चाहिए.
दूसरे सर्वे के बाद, उन सभी की डिटेल एकत्र की जानी चाहिए, जो पुनर्वास के लिए पात्र हैं. पात्रता संबंधी चुनौतियों या विवादों के समाधान के लिए अधिनियम में प्रावधान भी समाहित है और समय सीमाएं भी तय हैं.
उस जगह को खाली करने का नोटिस पहले से चिपकाया जाना चाहिए. जिस नए स्थान पर पुर्नवास किया जा रहा है वहां के सरकारी स्कूलों में बच्चों के नामांकन (दाखिले) के अलावा अस्पतालों और मुहल्ला क्लीनिकों, स्वच्छता सुविधाओं और स्वच्छ पेयजल आदि तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी.
वे आगे कहते हैं कि "किसी भी कॉलोनी को 'अधिसूचित' झुग्गी समूह के रूप में पहचानने के लिए, DUSIB को सर्वे करने की आवश्यकता होती है. यह उनके रिकॉर्ड में होता है कि इस खास स्थान पर फला-फला झुग्गी मौजूद हैं. लेकिन 2005 के बाद से जनता कैंप का ऐसा कोई सर्वे हुआ ही नहीं है."
वे कहते हैं कि दिल्ली हाई कोर्ट को अप्रोच करते हुए वहां के निवासियों ने बिजली के बिल और आईडी प्रूफ भी पेश किए हैं.
इसके अलावा पीडब्ल्यूडी के नोटिस में कहा गया है कि यदि रहवासी खुद से घर खाली नहीं करते हैं, तो उन्हें द्वारका के गीता नगर में शिफ्ट कर दिया जाएगा, जो कि यहां से 25 किलोमीटर दूर है.
पीडब्ल्यूडी, DUSIB और रेलवे 14 फरवरी को सुनवाई के दौरान अदालत में यह स्पष्ट नहीं कर पाएं कि वास्तव में इस भूमि पर मालिकाना हक किसका है. इसके साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या स्लम क्लस्टर DUSIB पुनर्वास नीति के तहत कवर किया गया था.
स्टे ऑर्डर पारित करते हुए जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि "तीनों सरकारी निकायों के बीच कोई सहमति नहीं है" और यह स्पष्ट नहीं है कि ये भूमि किसकी है. कोर्ट ने कहा "... अगर यह अधिसूचित क्लस्टर सूची का एक हिस्सा है तो यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह जेजे क्लस्टर दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 के अंतर्गत आता है या नहीं."
आदेश में उल्लेखित सुनवाई के अनुसार :
DUSIB ने कहा कि संबंधित भूमि रेलवे की है और दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार इसका इस्तेमाल किया गया था.
दिल्ली सरकार के वकील के अनुसार, संबंधित मंत्री कैलाश गहलोत ने पहले ही एक निर्देश जारी कर दिया है कि जब तक उचित पुनर्वास प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
रेलवे ने कहा कि उसने जनता कैंप में किसी भी प्रकार के तोड़फोड़ का आदेश नहीं दिया है और भूमि के स्वामित्व के लिए भौतिक सत्यापन कराने की अवश्यकता है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि भौतिक सर्वे करके भूमि के स्वामित्व पर आम सहमति पर पहुंचें और यथास्थिति बनाए रखते हुए 20 फरवरी को अदालत को इससे अवगत कराएं.
दिल्ली में जनता कैंप तोड़ने पर स्टे ऑर्डर तब आया है जब यहां की कई काॅलोनियां ऐसे तोड़फोड़ (विध्वंस) का सामना कर रही हैं या कर चुकी हैं.
10 फरवरी को पुलिस सुरक्षा के बीच डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) ने महरौली और लाधा सराय इलाकों में बुलडोजर चलाने का अभियान शुरू किया. हालांकि 14 फरवरी को दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर वीके सक्सेना ने डीडीए को दोनों जगहों पर इस अभियान को रोकने का निर्देश दिया.
अधिकारियों का दावा है कि महरौली पुरातत्व पार्क के एक हिस्से में वह भूमि है जिस पर डीडीए, वक्फ बोर्ड और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सहित कई एजेंसियों का स्वामित्व है.
जाकिर नगर में 15 फरवरी को यमुना बाढ़ के मैदानों में डीडीए की भूमि पर अतिक्रमण को भी ध्वस्त कर दिया गया था.
एमसीडी के दक्षिण क्षेत्र द्वारा 15 फरवरी को दिए गए एक बयान के अनुसार, 2023 में अब तक दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने दक्षिणी दिल्ली के सैद-उल-अजैब, खिरकी एक्सटेंशन, पंचशील विहार, छतरपुर, फ्रीडम फाइटर एन्क्लेव, ग्रेटर कैलाश, नेब सराय, मालवीय नगर और महरौली में 71 अवैध निर्माणों को तोड़ा और 41 को सील किया है.
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