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घोसी उपचुनाव में BJP की हार, ओम प्रकाश राजभर की बारगेनिंग पावर पर क्या असर पड़ेगा?

Ghosi by-elections: उम्मीद लगाई जा रही थी कि ओम प्रकाश राजभर की वजह से घोसी सीट पर बीजेपी को फायदा मिलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

पीयूष राय
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>ओम प्रकाश राजभर</p></div>
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ओम प्रकाश राजभर

(फोटो- क्विंट हिन्दी)

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उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव (Ghosi by-elections) में SP पार्टी की जीत हुई और बीजेपी की हार लेकिन यहां मामला सिर्फ इतना भर नहीं था. घोसी उपचुनाव को 'INDIA' बनाम NDA के तौर पर भी देखा गया. क्योंकि कांग्रेस ने SP का और ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी का समर्थन किया था. वहीं, BSP ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था.

चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर SP पार्टी को छोड़कर बीजेपी में चले गए थे. घोसी में 60 से 70 हजार राजभर मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही थी कि ओम प्रकाश राजभर की वजह से घोसी सीट पर बीजेपी को फायदा मिलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एनडीए की हार का ठीकरा ओमप्रकाश राजभर के सिर फूटता नजर आया.

ऐसे में समझते हैं कि घोसी में हार से बीजेपी के साथ राजभर की बारगेनिंग पावर पर क्या असर पड़ेगा? उनके मंत्री बनने के सपने का क्या होगा?

उपचुनाव के नतीजों के बाद SP ने ओपी राजभर पर निशाना साधा. एसपी के लखनऊ ऑफिस के बाहर पोस्टर लगे, जिसमें ओम प्रकाश राजभर को 'दगा हुआ कारतूस' बताया गया. वरिष्ठ एसपी नेता शिवपाल सिंह यादव ने ओमप्रकाश राजभर पर तंज करते हुए उन्हें अपनी पार्टी का स्टार प्रचारक बताया.

उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने सिफारिश की है कि राजभर को जल्दी मंत्री बना दिया जाए नहीं तो वह दोबारा एसपी में आ जाएंगे. दूसरी तरफ घोसी में हार के बावजूद राजभर आश्वस्त है कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा.

विरोधी खेमे का कहना है कि इस हार के बाद ओम प्रकाश को मंत्री नहीं बनाया जाएगा. मंत्री बनने के सवाल पर ओम प्रकाश राजभर ने कहा "हम मंत्री क्यों नहीं बन पाएंगे. विरोधी पार्टी मालिक नहीं हैं.

2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने क्षेत्रीय पार्टियों को साथ लाकर एक मजबूत गठबंधन तैयार किया था. निषाद पार्टी और अपना दल तो बीजेपी के साथ बने रहे लेकिन SBSP के ओम प्रकाश राजभर के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने विपक्ष के खेमे में भी अपनी जगह ढूंढ ली. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने एसपी का दामन थामा था लेकिन यह साथ लंबा नहीं रहा और जुलाई 2023 में वह दोबारा बीजेपी में शामिल हो गए.

सूत्रों की मानें तो राजभर को मंत्री पद और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को गठबंधन में एक टिकट मिल सकता है. हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो घोसी में मिली हार के बाद राजभर की बारगेनिंग पावर कम हो सकती है.

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार रत्नमणि लाल कहते हैं "राजभर बीजेपी ज्वाइन करने से पहले यानी छह महीने पहले तक सीएम योगी और उनके कैबिनेट के मंत्रियों को खरी-खोटी सुनाते रहते थे. ये सब बातें राजभर के कट्टर समर्थकों को भी याद है कि ये कभी इनकी बात बोलते हैं, कभी उनकी बात बोलते हैं और हम लोग लगे हुए हैं. इन्हें छोड़ो."

रत्नमणि आगे कहते हैं कि...

किसी भी नेता की ताकत पार्टी से ज्यादा उसकी क्षेत्र में पकड़ कितनी है, इसपर तय होती है. लोगों को लगता है कि क्षेत्र में नेता की इतनी पकड़ है, इसलिए वो हमारा काम करा लेंगे. ये दोनों बातें राजभर के विरोध में चली गई हैं. राजभर की अपनी समुदाय में पकड़ तो है पर इतनी नहीं बची है कि चुनाव का रिजल्ट अपने पक्ष में करवा लें. अब बीजेपी के सामने पुर्निविचार करने की स्थिति आ गई है कि ओमप्रकाश राजभर से जो उम्मीद थी कि अगर वो दारा सिंह चौहान को जीता ले जाते तो वो बीजेपी के लिए एसेट हो जाते.
वरिष्ठ पत्रकार रत्नमणि लाल, लखनऊ
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कभी मायावती के करीबी रहे ओम प्रकाश राजभर ने 2002 में SBSP की स्थापना की. तकरीबन डेढ़ दशक तक सियासी जमीन तलाशने में और राजभर समाज को एकजुट करने के बाद पहली चुनावी सफलता उन्हें 2017 में मिली. जब SBSP ने बीजेपी गठबंधन के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा. इन चुनावों में राजभर की पार्टी को चार सीटें मिली. जबकि प्रदेश में पार्टी का वोट शेयर पॉइंट 0.70% रहा.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले NDA गठबंधन में दरार पड़ी और SBSP ने आम चुनाव में बीजेपी के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा कर दिए. इन चुनावों में राजभर को कोई सफलता नहीं मिली. 2022 में SBSP ने सपा का दामन थामा. विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 प्रत्याशी खड़े किए, जिनमें से 6 ने जीत दर्ज की लेकिन अब राजभर फिर से बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

ऐसे में समझना जरूरी है कि बीजेपी को ओपी राजभर से कितना और कैसे फायदा मिल सकता है.

कुछ अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पूर्वांचल में तकरीबन 20 ऐसी सीटें ऐसी हैं, जहां पर राजभर जाति के 50 हजार से लेकर 2 लाख से ज्यादा तक लोग वोटर हैं. ये वोटर्स समीकरण बदलने का माद्दा रखते हैं. इनमें जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़ और घोसी जैसी सीटें भी है, जहां पर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था.

राजभर के बीजेपी में आ जाने के बाद मऊ, बलिया, देवरिया, लालगंज, मछली शहर, अंबेडकर नगर, चंदौली और बनारस जैसे जिलों में भी बीजेपी की स्थिति 2019 के मुकाबले अब ज्यादा मजबूत हो सकती है. हालांकि, घोसी के उपचुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी अपने स्तर पर नतीजों की समीक्षा जरूर करेगी. जिसका प्रभाव आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सीट के बंटवारे पर देखने को मिलेगा.

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