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By Election: घोसी में जीत से अखिलेश कितने मजबूत? दारा को सबक- BJP के लिए क्या सीख?

Ghosi Bypoll Result: समाजवादी पार्टी ने सुधाकर सिंह तो बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को मैदान में उतारा था.

पीयूष राय & रोमा रागिनी
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>घोसी में जीत से SP और अखिलेश कितने मजबूत? सुधाकर के लिए सबक- BJP के लिए क्या सीख?</p></div>
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घोसी में जीत से SP और अखिलेश कितने मजबूत? सुधाकर के लिए सबक- BJP के लिए क्या सीख?

(फोटो:आशुतोष कुमार सिंह/क्विंट हिंदी)

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Ghosi Bypoll 2023 Result: उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की साइकिल दौड़ गई. यहां समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने बीजेपी के दारा सिंह चौहान को हरा दिया है. सुधाकर सिंह ने दारा सिंह चौहान को 42,759 वोटों से हराया है. इस जीत के साथ ही, घोसी सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा बरकरार रहा, जिसे SP के टिकट पर 2022 में दारा सिंह चौहान ने जीती थी. अब सवाल बड़ा है कि घोसी में NDA की हार और SP की जीत की क्या वजह है? घोसी के नतीजों से शिवपाल यादव और ओम प्रकाश राजभर पर क्या फर्क पड़ेगा और SP कितनी मजबूत हुई?

SP में जश्न, अखिलेश बोले- 'जीत का नया फॉर्मूला'

घोसी के नतीजे आने के बाद से समाजवादी पार्टी में जश्न का माहौल है. पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने 'X' पर लिखा, " ये एक ऐसा अनोखा चुनाव है जिसमें जीते तो एक विधायक हैं पर हारे कई दलों के भावी मंत्री हैं. 'इंडिया' टीम है पर 'पीडीए' रणनीति: जीत का हमारा ये नया फॉर्मूला सफल साबित हुआ है."

क्यों हारी एनडीए?

दरअसल, घोसी उपचुनाव में बीएसपी ने कोई भी प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि तकरीबन 90 हजार से 1 लाख दलित वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ रहेगा. विपक्षी पार्टी और आलोचकों द्वारा मायावती और बीएसपी के ऊपर बीजेपी की 'B' टीम होने का भी आरोप लगाता आया है. इसका कारण यह भी है की 2022 की विधानसभा चुनाव में कई ऐसी सीटें थी, जहां पर बीएसपी ने अपने मुस्लिम प्रत्याशियों को खड़ा कर SP के वोट में सेंध लगाई थी, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला था. हालांकि, नतीजे को देखकर लगता है कि दलित वोटरों का झुकाव एसपी की तरफ था, ना कि बीजेपी की.

घोसी की तीन चुनावों पर नजर डालें तो बीएसपी ने यहां मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. 2022 में बीएसपी को यहां लगभग 54 हजार वोट मिले. जबकि 2019 के उपचुनाव में बीएसपी को लगभग 50 हजार वोट मिले थे. 2017 में बीएसपी दूसरे नंबर पर रही और लगभग 6 हजार वोटों से हारी थी. जबकि, 2022 विधानसभा चुनाव में बीएसपी को करीब 50 हजार वोट मिले थे.

मऊ के स्थानीय स्वतंत्र पत्रकार राहुल सिंह ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा," यह नाराजगी का वोट है और समग्र समाज ने, यहां तक की चौहान वोटर्स ने एकतरफा SP को वोट किया है."

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, घोसी में NDA के हार की मुख्य वजह दारा सिंह चौहान पर 'बाहरी' होने का टैग है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीजेपी की पिछली सरकार में मंत्री रहने के दौरान दारा सिंह ने विकास के कामों पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था. 2022 चुनाव से ठीक पहले वह SP में शामिल हो गए. लेकिन 15 महीने बाद फिर उन्होंने अपनी पार्टी बदला और बीजेपी में शामिल हो गए. दारा सिंह की दल-बदल की राजनीति को लेकर घोसी की जनता में नाराजगी थी.

वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहा, "घोसी को लेकर बीजेपी के पास फीडबैक था कि स्थिति ठीक नहीं है. इसलिए पार्टी ने माहौल बनाने के लिए प्रचार में अपनी पूरी ताकत लगा दी. सीएम से लेकर दोनों डिप्टी सीएम और एक दर्जन से अधिक मंत्री घोसी में डेरा डाले हुए थे. और रिजल्ट फीडबैक के मुताबिक ही आया और समाजवादी पार्टी की जीत हुई."

SP की जीत की क्या वजह?

2022 के विधानसभा चुनाव में घोसी से दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी के टिकट पर विजयी हुए थे. उस वक्त वो बीजेपी छोड़ एसपी में आये थे, लेकिन इस बार वो फिर बीजेपी में चले गये. हालांकि, इस सीट पर बीजेपी नेता और वर्तमान में मेघालय के राज्यपाल फागू चौहान का दबदबा रहा है. वो इस सीट से छह बार विधायक चुने गये हैं. लेकिन 2023 में 2017 रिपीट नहीं हुआ और 2022 दोहराया गया.

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राजनीतिक जानकारों की मानें तो, घोसी में SP की जीत में पार्टी की रणनीति मुख्य रही. समाजवादी पार्टी ने PDA (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) की रणनीति से इतर अग्रणी जातीय के सुधाकर सिंह को टिकट देकर अपने इरादे साफ कर दिये थे. वहीं, सुधाकर सिंह का घोसी में अच्छा जनाधार है, वो यहां से विधायक रह चुके हैं और अपनी जाति के अलावा, उनका अन्य समुदाय में भी प्रभाव हैं. इसके अलावा, SP के कोर वोटर्स के अलावा 'INDIA' गठबंधन का समर्थन भी सिंह के पक्ष में गया, जिसको चुनाव में SP को लाभ मिला है.

नतीजों से शिवपाल और राजभर पर क्या फर्क पड़ेगा?

घोसी के नतीजों का असर राजनीतिक दलों के अलावा शिवपाल सिंह यादव और ओम प्रकाश राजभर पर भी पड़ेगा. क्योंकि ये उपचुनाव शिवपाल के पूरी तरीके से SP में आने और ओपी राजभर के NDA में शामिल होने के बाद हुआ है. इस जीत से शिवपाल यादव का कद समाजवादी पार्टी में बढ़ेगा, क्योंकि पिछले कुछ समय में जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उसमें SP को हार मिली है, लेकिन 'चाचा' शिवपाल के आने के बाद नतीजे बदल गये.

27 अगस्त को घोसी में प्रचार करते हुए शिवपाल यादव.

(फोटो: शिवपाल यादव/X)

वैसे घोसी में शिवपाल यादव ने पूरी ताकत के साथ प्रचार किया. और ये जीत उनके लिए काफी मायने रखती है. इससे एक संदेश भी गया कि शिवपाल समाजवादी पार्टी के लिए कितना अहम हैं. दूसरा गाहे-बगाहे सीएम योगी भी विधानसभा के अंदर शिवपाल पर चुटकी लेते रहते हैं कि "वो जल्द ही अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर फैसला कर लें, वरना अखिलेश 2027 में उन्हें सबसे पहले बोल्ड कर देंगे."

हालांकि, नतीजों को लेकर शिवपाल ने अखिलेश संग फोटो पोस्ट कर अपने इरादे साफ कर दिये और लिखा, "समाजवादी पार्टी जिंदाबाद, अखिलेश यादव जिंदाबाद."

वहीं, घोसी में हार ने ओपी राजभर के कद को NDA में कम कर दिया है. इसमें एक संदेश गया है कि राजभर का वोटर्स में जनाधार कम हो रहा है. क्योंकि घोसी में लगभग 70 हजार दलित वोटर्स हैं, और माना जा रहा है कि उनका ज्यादातर समर्थन समाजवादी पार्टी को मिला. इसके असर ये भी होगा कि अब ओपी राजभर में लोकसभा चुनाव में टिकट और यूपी मंत्रिमंडल में जगह को लेकर बहुत मांग नहीं कर पायेंगे.

SP कितना मजबूत हुई?

घोसी के रिजल्ट ने समाजवादी पार्टी को यूपी में मजबूत किया बल्कि 'INDIA' गठबंधन में अखिलेश यादव के कद को भी बड़ा कर दिया. इससे संदेश भी जाएगा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही बीजेपी को टक्कर देने में सक्षम है. अगर 'INDIA' गठबंधन यूपी में मिलकर साथ लड़ता है तो उसे SP को 'बड़ा भाई' मानकर सम्मान देना होगा और अखिलेश यादव यही मांग करते आये हैं.

वैसे घोसी के नतीजों ने सुधाकर सिंह को एक बार राजनीति में जीवित कर दिया तो, दारा सिंह चौहान के राजनीतिक कद को घटा दिया. हालांकि, रिजल्ट सिर्फ अंक गणित में फेरबदल करेगा लेकिन सत्ता पर इसका कोई असर नहीं होगा. पर इतना जरूर है कि ये नतीजे बीजेपी के लिए सीख तो समाजवादी पार्टी के लिए ऊर्जा का संचार हैं. अब इसको लेकर 2024 के पहले खूब बयानबाजी भी होगी और मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने की लड़ाई भी, लेकिन ये नतीजे कितना असर लोकसभा चुनाव 2024 में डालेंगे, ये देखना दिलचस्प होगा.

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Published: 08 Sep 2023,06:25 PM IST

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