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इराक में अगवा 39 भारतीयों की मौत की खबर से पूरा देश स्तब्ध है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत केंद्र सरकार के तमाम मंत्री इस त्रासदी पर शोक जता रहे हैं. लेकिन इस पूरे मामले में दो बातें काफी हैरान करने वाली रहीं.
पहली ये कि परिवार वालों को मौत की खबर टीवी से मिली, सरकार से नहीं. मौत के मामले में इसे संवेदनहीनता की हद न माना जाए, तो क्या माना जाए. आखिर सरकार ने ऐसा क्यों किया?
इस मसले को शुरुआत से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण स्वामी ने क्विंट से बातचीत में कहा:
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का तर्क है कि सरकार हमेशा से परिवार वालों के संपर्क में थी, लेकिन संसद का सत्र चलने की वजह से वजह से उनकी ड्यूटी थी कि वो सदन को सूचना पहले दें.
जानकारों का कहना है कि चूंकि संसद को लोगों की भावनाओं की अभिव्यक्ति माना जाता है, इसलिए अगर संसद का सेशन चल रहा हो, तो बड़ी घोषणाएं वहीं की जाती हैं. लेकिन यहां तो मामला लोगों का ही है. ऐसे में इस परंपरा की क्या जरूरत थी?
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जाहिर है कि सुषमा स्वराज के तर्क पर यकीन करना मुश्किल है. खास तौर पर तब, जब मामला लोगों की मौत और उनके परिवार वालों से जुड़ा हो.
विदेश मंत्री जिस सदन का हवाला दे रही हैं, खुद उसके विपक्षी सदस्य इस बात पर सरकार को लताड़ रहे हैं. सरकार के कदम को अमानवीय बताते हुए सीपीएम के लोकसभा सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा:
प्रवीण स्वामी का तो ये भी कहना है कि कुर्दिश इंटेलिजेंस ने साल 2016 में ही बता दिया था कि आतंकी संगठन आईएसआईएस के हाथों अगवा भारतीयों की हत्या हो चुकी है, लेकिन भारत सरकार नामालूम वजहों से उसे मानने से इनकार करती रही.
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