ADVERTISEMENTREMOVE AD

इराक में अगवा 40 भारतीयों में से बच निकला था एक, जानिए उसकी कहानी

देखिए- आईएस के चुंगल से छूटकर लौटे हरिजीत मसीह की दास्तां

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रोजी-रोटी की तलाश में 40 भारतीय इराक गए. लेकिन इनमें से केवल एक ही वापस लौट सका. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को राज्यसभा में बताया कि बाकी के 39 भारतीयों की आईएसआईएस ने हत्या कर दी और उनके शवों को एक पहाड़ में दफना दिया.

बता दें कि साल 2016 में भारत लौटे हरजीत ने बाकी के 39 भारतीयों के मारे जाने की जानकारी दी थी. द क्विंट ने हरजीत मसीह से इस बारे में बातचीत भी की थी.

हरजीत सिंह की थ्योरी के मुताबिक, ‘11 जून 2014 को कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इराक के मोसुल में काम करने गए 40 भारतीयों को अगवा कर लिया. इसके बाद आईएस ने 15 जून को सभी भारतीयों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी. लेकिन हरजीत किस्मत से बच गया.’

‘घर के हालात खराब थे. पैसे की तंगी थी. इसलिए मैं पैसे कमाने के लिए इराक गया था. 11 महीने हमने खूब काम किया...कोई दिक्कत नहीं आई. 11 महीने बाद जहां हम रह रहे थे, वहां से काफी दूर लड़ाई छिड़ गई. इसके बाद लोकल लोग वहां से भाग गए. वहां काम करने के लिए भारतीय और बांग्लादेशी ही बचे.’
हरजीत मसीह

10 जून 2014 को मोसूल पर आईएस ने कब्जा कर लिया. इसके बाद स्थानीय लोग वहां से भाग गए. लेकिन हरजीत और उसके साथी यूनिवर्सिटी लेक टॉवर की कंस्ट्रक्शन साइट पर ही फंस गए. कुछ ही दिनों में आईएस आतंकी वहां फंसे भारतीय और बांग्लादेशियों तक पहुंच गए.

हरजीत ने बताया,

दोपहर का वक्त था, कंस्ट्रक्शन साइट पर जो खाना लेकर आता था, उसे हम लोगों ने घेर लिया. हम लोगों ने कहा कि हमें पैसा दो, अब हम इधर काम नहीं करेंगे. हमें वापस जाना है. इसी दौरान दो बांग्लादेशी आईएस के पास चले गए और वो आईएस के लोगों को साइट पर बुला लाए.

हरजीत ने बताया, आईएस के लोगों ने आकर हमारी कंपनी को घेर लिया. उन्होंने ठेकेदार को बोला कि इनके पैसे क्यों नहीं दे रहे हो. इस पर ठेकेदार ने कहा कि ठीक है मैं इनके पैसे दे दूंगा और इन्हें इनके देश पहुंचा दूंगा.

इसके बाद रात को करीब 10 बजे आईएस के लोग वापस हमारी साइट पर आ गए. करीब 10-15 मिनट तक वो हमारे साथ वहां रुके. इसके बाद उन्होंने कहा कि अपने बैग लो और हमारे साथ चलो. हम तुम्हें तुम्हारे देश छोड़ देंगे. हम लोग डरे हुए थे, हम लोगों ने कहा कि जैसा ये बोल रहें है, वैसा करो.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘ISIS ने हमें अगवा कर लिया था’

इसके बाद आईएस के आतंकी 40 भारतीयों और बांग्लादेशियों को यूनिवर्सिटी लेक टॉवर्स से मोसुल की अल-कुदूस बिल्डिंग और फिर वहां से 12 जून को अल-मंसूर इंडस्ट्रियल एरिया लेकर पहुंचे.

दो दिन बाद 15 जून को आईएस के लोग वापस आए. उन्होंने कहा कि जो लोग बांग्लादेशी हैं वो एक तरफ हो जाएं और भारतीय दूसरी तरफ. हमें नहीं मालूम कि उन्होंने बांग्लादेशियों को क्यों छोड़ दिया. मुझे तो ये लगता है कि वो लोग नमाज पढ़ते थे, इसीलिए उन्हें छोड़ दिया होगा, क्योंकि वो मुसलमान थे.

इसके बाद उन्होंने हम सभी 40 भारतीयों को एक पूरी तरह से बंद वैन में डाला और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. हमने काफी कोशिश की, कि दरवाजा खुल जाए. हमें सांस भी नहीं आ रही थी. इसी दौरान उन्होंने एक जगह गाड़ी खड़ी कर दी.

हमें नीचे उतार कर लाइन में खड़ा कर दिया गया. हमें घुटनों के बल बैठने को कहा गया. मैं बीच में था...वो लोग कुछ ही दूरी पर हमारे पीछे खड़े थे. जैसे ही हम घुटनों के बल बैठे, पीछे से उन्होंने गोलियां चला दीं. मेरे आसपास के लोग जैसे ही नीचे गिरे, मैं भी गिर गया. सिर्फ दो मिनट ही गोली चली होगी...मुझे नहीं पता वो कब वहां से चले गए... मैं काफी देर तक वहां सांस रोके पड़ा रहा. काफी देर बाद जब मैंने सिर उठाकर देखा, तो वो जा चुके थे. दूर-दूर तक कोई नहीं था. मेरे आस-पास सभी लोग मरे पड़े थे. मैं वहां से जान बचाकर भाग निकला.

हालांकि, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में दिए गए अपने बयान के दौरान हरिजीत मसीह की थ्योरी को झूठा करार दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विदेश मंत्री ने कहा- हरजीत की कहानी झूठी

सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में बताया कि हरजीत मसीह ने जो कहानी सुनाई थी, वो झूठी है. सुषमा ने कहा कि हरजीत ने अपना नाम बदलकर अली कर लिया और वह बांग्लादेशियों के साथ इराक के इरबिल पहुंचा, जहां से उसने उन्हें (सुषमा स्वराज) को फोन किया था. स्वराज ने कहा कि ISIS के आतंकियों ने एक कंपनी में काम कर रहे 40 भारतीयों को एक टेक्सटाइल कंपनी में भिजवाने को कहा था. उनके साथ कुछ बांग्लादेशी भी थे. यहां पर उन्होंने बांग्लादेशियों और भारतीयों को अलग-अलग रखने को कहा. लेकिन हरजीत मसीह ने अपने मालिक से मिलकर अपना नाम अली कर लिया और बांग्लादेशियों के साथ शामिल हो गया. यहां से वह इरबिल पहुंचा. सुषमा ने बताया कि यह कहानी इसलिए भी सच्ची लगती है क्योंकि इरबिल के नाके से ही हरजीत मसीह ने उन्हें फोन किया था.

सुषमा ने बताया, 'हरजीत की कहानी इसलिए भी झूठी लगती है क्योंकि जब उसने फोन किया तो मैंने पूछा कि आप इरबिल कैसे पहुंचे? तो उसने कहा- मुझे कुछ नहीं पता.' सुषमा ने आगे कहा, 'मैंने उनसे पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि आपको कुछ भी नहीं पता? तो उसने बस यह कहा कि मुझे कुछ नहीं पता, बस आप मुझे यहां से निकाल लो.'

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×