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ज्ञानवापी (Gyanvapi Mosque) मामले से संबंधित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट को 25 जनवरी को सार्वजनिक किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि "मौजूदा ढांचे (मस्जिद) के निर्माण से पहले (साइट पर) एक बड़ा हिंदू मंदिर (Hindu Temple) मौजूद था.
ASI ने 18 दिसंबर 2023 को अपनी रिपोर्ट वाराणसी जिला अदालत को सीलबंद लिफाफे में सौंपी. अदालत ने तथ्यों को सार्वजनिक करने की इजाजत देने का फैसला 24 जनवरी को किया था. ये फैसला अयोध्या में राम मंदिर के उद्धाटन और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के दो दिन बाद आया था.
हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच इस विवाद की वजह मस्जिद का 'वजू' का एरिया है. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि अदालत की ओर दिए आदेश के बाद हुए सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद परिसर में पाया गया एक ढांचा 'शिवलिंग' है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे एक 'फव्वारा' करार दिया था.
25 जनवरी को जब ASI की रिपोर्ट के नतीजे संबंधित पक्षों को उपलब्ध कराए गए तब हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, "एएसआई ने कहा है कि सर्वे के दौरान मौजूदा ढांचे पर कई शिलालेख देखे गए थे."
ASI की रिपोर्ट में साफ तौर से कहा गया है कि मंदिर (जो फिलहाल ज्ञानवापी मस्जिद है) में एक बड़ा कमरा था. इसके अलावा उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दिशा में कम से कम एक कमरा था.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि मंदिर के स्तंभों का मस्जिद के विस्तार के मकसद से दोबारा इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, इन स्तंभों थोड़े बदलाव किए गए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वेक्षण के दौरान कुल 34 शिलालेख मिले हैं. इनमें देवनागरी, तेलुगु, ग्रंथ और कन्नड़ लिपियों में शिलालेख शामिल हैं. ढांचे (मस्जिद) में पहले के शिलालेखों के इस्तेमाल की जानकारी मिलती है. इसके साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि पुराने हिस्से को तोड़कर मौजूदा हिस्से को तैयार किया गया था.
ASI की रिपोर्ट कहती है कि शिलालेखों पर जनार्दन, रुद्र और उमेस्वर जैसे देवताओं के नाम पाए गए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ASI के पास पत्थर पर उकेरी हुई एक शिलालेख थी. इसमें दर्ज था कि साल 1676-77 में मस्जिद का निर्माण हुआ है. इसके अलावा इस बात की भी जानकारी दी गई है कि मस्जिद का मरम्मत 1792-93 ईस्वी में हुई थी. ASI के पास इस पत्थर की तस्वीर साल 1965-66 से मौजूद है.
हालिया सर्वेक्षण के दौरान इस पत्थर को मस्जिद के एक कमरे से गायब कर दिया गया था. ASI की रिपोर्ट में कहा गया है, ''मस्जिद के निर्माण और मरम्मत से जुड़े सबूतों को तोड़ दिया गया.''
रिपोर्ट में औरंगजेब की जीवनी मासिर-ए-आलमगिरी का भी जिक्र है, जिसके मुताबिक काशी में विश्वनाथ के मंदिर को तबाह करने का आदेश 2 सितंबर 1669 को दिया गया था.
ASI रिपोर्ट में ज्ञानवापी में एक कमरे के अंदर पाए गए अरबी-फारसी शिलालेख में जिक्र किया गया है. कहा गया है मस्जिद औरंगजेब के शासन के 20 वें साल (1676-77 ईस्वी) में बनाई गई थी.
इसलिए पहले से मौजूद संरचना 17 वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दी गई थी और इसके कुछ हिस्से में बदलाव किया गया था और मौजूदा संरचना (मस्जिद) के निर्माण में इसका (मंदिर के मलबे, शिलालेखों या स्तंभों का ) दोबारा से इस्तेमाल किया गया था.
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