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Hathras stampede: टूटी हुई चप्पले, बिखरी हुई चूड़िया, कीचड़ में पड़े पहचान पत्र. यह कहानी है हाथरस के सिकंदराराऊ के फुलरई गांव की जहां एक सत्संग में मची भगदड़ ने 100 से ज्यादा लोगों की जिंदगी ले ली.
2 लाख से ज्यादा लोग नारायण साकार उर्फ 'भोले बाबा' नाम के कथावचक को सुनने आये थे. मरने वालों में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं.
ऐसे में सवाल है कि क्यों लोगों की इतनी बड़ी भीड़ ऐसे कार्यक्रमों में आती थी? ऐसा क्या था जो लोग अपनी जान की परवाह किये बिना ऐसे कार्यक्रम में आते हैं? उनमें से अधिकतर महिलाएं ही क्यों थीं? ऐसे बाबाओं को सुनने वाले ज्यादातर लोगों की आर्थिक हालत कैसी है?
भोले बाबा को मानने वाले और भगदड़ में घायल हुए लोग अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए हैं. कई भक्तों में नाराजगी है तो किसी की उम्मीद अब भी कायम है.
कोतवाली सदर हाथरस कीं कांस्टेबल शीला मौर्य भी इस घटना में घायल हो गईं. वे कहती हैं कि "गर्मी की वजह से लोग अचानक भाग रहे थे. वो बाहर को आ रहे थे लेकिन जगह नहीं थी निकलने की. फिर एक के ऊपर एक गिरने लगे. भीड़ ज्यादा थी. वे धक्के देकर निकल रहे थे. सबको निकलने की जल्दी थी कि मैं आगे निकलू और मैं. उसके बाद मैं भी गिर गई और मेरे ऊपर काफी महिलायें गिरीं. मुझे पता नहीं कितनी. मुझे पीठ में और चेहरे पर काफी चोट लगी है."
माया देवी की उम्र लगभग 80 साल है. वो भी नारायण साकार की अनुयायी हैं. उनका मानना है कि बाबा की कोई गलती नहीं है.
माया देवी के पूरे बदन में चोट लगी है.
किसी की आस्था उसे सत्संग ले आई तो कोई मोहल्ले की महिलाओं के साथ बस यूं ही चली आई. लेकिन सवाल यह है कि आखिर किसी बाबा के पास लोग क्यों इतनी संख्या में आते हैं?
भोले बाबा की अनुयायी मंजु देवी कहती हैं, "हमारे कष्ट दूर हो रहे हैं. परमात्मा के पास जाने से तो हमारे लिए लाभ ही है. हमारे बच्चों को दो टाइम का खाना मिल रहा है. यही सब कुछ हमारे लिए लाभ है."
नारायण साकार उर्फ भोले बाबा के अनुयायी उनको परमात्मा मानते हैं.
लेकिन रेखा ऐसा नहीं मानतीं. वे आगे कहती हैं, "कोई परेशानी दूर नहीं होती है. हम किराये के मकान में रह रहे हैं. पिछले 14-15 साल से इनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि प्रभु जी हमारा घर बनवा दो. लेकिन अभी तक तो हमारा घर बना नहीं है. अब भी किराये पर ही रह रहे हैं."
किरण देवी भी नारायण साकार की अनुयायी हैं. वे कहती हैं,
प्रेमी देवी भी खुद को नारायण साकर की अनुयायी बताती हैं. वे कहती हैं, "इसबार मैं पहली बार गई थी. सभी लोग बाबा की तारीफ करते थे. मैंने सोच मैं भी देख कर आऊं, इसलिए मैं भी देखने चली गई और पहली बार ही यह घटना हो गई. बाबा बीमारी या फिर नशे की लत ठीक कर देते हैं. मेरा एक बेटा शराब पीता है. इसलिए मैं भी चली गई कि मेरे बेटे की लत भी छूट जाए."
बताया जाता है कि नारायण साकार पहले पुलिस विभाग में थे लेकिन नौकरी छोड़ने के बाद वो कथावचक बन गए और फिर पिछले कई सालों से लोग अपनी परेशानी और दुख दूर कराने बाबा की शरण में पहुंचने लगे. जब हमने बाबा को मानने वालीं अलग-अलग महिलाओं से बात की तो उन सब में एक बात कॉमन थी- सब करीब करीब एक जैसी आर्थिक हालत से गुजर रही थीं.
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