Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019हिंदी दिवस बना रस्म अदायगी-सरकारें हिंदी भाषियों को 'लल्लू' समझती हैं

हिंदी दिवस बना रस्म अदायगी-सरकारें हिंदी भाषियों को 'लल्लू' समझती हैं

कानूनी अंग्रेजी तो हम वैसे भी नहीं समझ पाएंगे, लेकिन अधिकारिक हिंदी भी ऐसी लिखी जाएगी कि हम बिलकुल न समझ पायें.

हिलाल अहमद
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Hindi Diwas 2021</p></div>
i

Hindi Diwas 2021

(फोटो: Altered by The Quint)

advertisement

हिंदी दिवस (Hindi Diwas), अगर बच्चन जी के शब्दों में कहूं तो ‘रस्म अदायगी’ बन चुका है. हर साल इस दिन सरकारी स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में मास्टर, चपरासी, बाबू, और नेता कसम खाते हैं कि अगले साल फिर कसम खाएंगे कि हिंदी को मजबूत करना है. हिंदी के उत्थान की यह कहानी 1953 से जारी है, और ऐसा लगता है कि अनंत काल तक यूं ही जारी रहेगी.

मेरा निवेदन है कि इन बातों को व्यंग न समझा जाए. मैं स्वयं 1988 से लगभग हर साल इस दिन इस तरह की कसमें खाता रहा हूं. अब तो मुझे यह विश्वास सा हो गया है कि हम निष्ठावान हिंदी वालों की इस हिंदी भक्ति ने कुछ किया हो या न किया हो हिंदी दिवस को एक पर्व में तो बदल ही दिया है.

चलिए तंजिया बातें बंद करके, कुछ तथ्यपरक बाते करते हैं.

हिंदी दिवस, मूल रूप से हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने और उसके विकास विस्तार से संबधित है. (हालांकि कुछ ज्ञानी हिंदी भक्त इसे अंग्रेजी विरोध दिवस ज्यादा समझते समझाते रहे हैं.)

बात शुरू होती है संविधान सभा से. देश के बंटवारे के बाद भाषा का सवाल हिंदी-उर्दू तक सीमित नहीं रहा. यह जरूरत महसूस की गयी कि वास्तविक मानसिक आजादी के लिए आवश्यक है कि अंग्रेजी के अधिकारिक वर्चस्व को पूरी तरह समाप्त किया जाये.

लेकिन ये सवाल इतना आसान न था. गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों के दृष्टिकोण से देखे तो हिंदी को बिना व्यापक विचार विमर्श और चर्चा के आधिकारिक भाषा बनाए जाने का अर्थ था हिंदी को थोपना. इस मसले का हल निकाला कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और एन गोपाल आयंगर ने.

12 सितंबर 1949 को मुंशी और आयंगर ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसे 'मुंशी आयंगर' फॉर्मूला के नाम से जाना जाता है. इस फॉर्मूले के मुताबिक ये सुझाव दिया गया कि आजादी के पहले 15 वर्षों तक अंग्रेजी का इस्तेमाल ज्यों का त्यों जारी रखा जाये. इस काल में हिंदी को इतना विकसित किया जाये कि अंग्रेजी पर कोई निर्भरता न रहे.

संविधान सभा ने इस फॉर्मूले को अपनाया. संविधान में यह प्रावधान रखा गया कि 15 साल बाद संसद इस बात का फैसला करेगी कि आजाद भारत की आधिकारिक भाषा क्या हो.

1963 संसद ने आधिकारिक भाषा अधिनियम पास करके इस बात पर अपनी मुहर लगा दी कि अंग्रेजी तो अधिकारिक भाषा रहेगी ही हिंदी को अपने को विकसित करने के प्रयास जारी रखने होंगें. तब से अब तक संसद की राजभाषा समिति हिंदी के विकास में लगी हुई है.

दिलचस्प बात तो यह है कि हिंदी विकास की कहानी भारत के सरकारी विकास की कहानी बन चुकी है. हम यह तो जरूर कहते है कि हिंदी को अधिकारिक भाषा बनना चाहिए. लेकिन हम इस बात पर कोई चर्चा नहीं करते कि आजादी के सात दशक के बाद भी क्या हमने अपनी आधिकारिक भाषा को आम भाषा बनाया है? क्या अधिकारिक भाषा, चाहे उसे हिंदी में लिखे या अंग्रेजी में, अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुई है या नहीं?

मनोहर श्याम जोशी द्वारा रचित दूरदर्शन धारावाहिक हम लोग (1984-85) के पहले एपिसोड में एक रोचक प्रसंग आता है. लल्लू नामक बेरोजगार युवक सरकारी नौकरी का फॉर्म भर रहा है जो कि हिंदी में है. लेकिन लल्लू को यह अधिकारिक हिंदी समझ नहीं आ रही.

वह अपने छोटे भाई नन्हे को मदद के लिए बुलाता है और उस से पूछता है कि इस फॉर्म में इतनी मुश्किल हिंदी लिख कर यह फॉर्म बनाने वाला क्या कहना चाहता है. नन्हें दार्शनिक अंदाज मे एक गंभीर जवाब देता है:

“वो कहना चाहता है कि हे हिंदुस्तानी लल्लू, अगर तू अंग्रेजी में न समझा तो मैं तुझे हिन्दी मे भी नहीं समझने दूंगा”.

दूरदर्शन पर धारावाहिक हम लोग के पहले एपिसोड का एक दृश्य

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हिंदी, विशेषकर हम हिंदी प्रेमियों की हिंदी की हालत वास्तव में हिन्दुस्तानी लल्लुओं जैसी ही है. अधिकारिक अंग्रेजी अभी तक एलिट वकीलों और नौकरशाहों की जुबान है जिसके हिंदी अनुवाद को भारत सरकार हिंदी के विकास के रूप में देखती और दिखाती रही है.

राज्य हमें लल्लू मान कर चलता है. यानि कानूनी अंग्रेजी तो हम वैसे भी नहीं समझ पाएंगे, लेकिन अधिकारिक हिंदी भी ऐसी लिखी जाएगी कि हम बिल्कुल न समझ पायें. सीधी सी बात है, अगर हिंदी को एक मात्र अधिकारिक भाषा बना भी दिया गया होता, तो वह हम से उतनी ही दूर होती जितना हम हम कानूनी अंग्रेजी से हैं.

अच्छा ही है कि हिंदी दिवस ने इस राज को राज ही रहने दिया.

लेकिन एक सच्चा हिंदी वाला होने के नाते मैं भी इस चर्चा का अंत एक कविता से करूंगा (डरें नहीं कविता मेरी नहीं है, रघुबीर सहाय की है!)

“अंग्रेजों ने
अंग्रेजी पढ़ा कर
प्रजा बनाई
अंग्रेजी पढ़ा कर
अब हम
प्रजा बना रहे हैं”

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT