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हैदरपोरा एनकाउंटर: ''मैंने खुद आतंक से लड़ाई लड़ी, मेरा बेटा आतंकी नहीं''

आमिर मागरे के पिता अब्दुल को आतंक के खिलाफ लड़ाई में मदद के लिए सरकार के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>हैदरपोरा एनकाउंटर के विरोध में प्रदर्शन करते लोग</p></div>
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हैदरपोरा एनकाउंटर के विरोध में प्रदर्शन करते लोग

फोटो- ट्विटर

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श्रीनगर (Srinagar) के हैदरपोरा एनकाउंटर (Hyderpora) में 2 संदिग्ध आतंकवादियों समेत 4 लोगों की मौत हो गई है. जम्मू-कश्मीर पुलिस का कहना है कि आतंकी आमिर मागरे और बिलाल भाई एनकाउंटर में मारे गए हैं, जबकि उनके सहयोगी अल्ताफ भट और मुदस्सिर गुल की मौत क्रॉस फायरिंग में हुई है.

आतंकी बताए जा रहे आमिर के पिता अब्दुल लतीफ मागरे ने पुलिस की इस थ्योरी पर सवाल उठाए हैं. अब्दुल लतीफ जल शक्ति डिपार्टमेंट में काम करते हैं और 2012 में उन्हें एक आतंकी को मारने के लिए राज्य सरकार के द्वारा बहादुरी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.

आमिर के पिता को मिल चुका है बहादुरी पुरस्कार

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार रमबन जिले के गूल तहसील के रहने वाले अब्दुल को 2006 में आंतक विरोधी ऑपरेशंस में मदद के लिए सेना भी सम्मानित कर चुकी है. अब्दुल ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि पुलिस ने उन्हें बेटे की मौत की जानकारी फोन पर दी.

आमिर पुलिस के दावे पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ''मैंने आतंकवाद जब चरम पर था, तब लड़ाई लड़ी. मेरा खुद का बेटा आतंकी कैसे हो सकता है? मेरा बेटा मेरी तरह राष्ट्रवादी था.''

नहीं मिला बेटे का शव

अब्दुल श्रीनगर गए थे, लेकिन बेटे का शव उन्हें नहीं मिल सका. उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बेटे का शव वापस सौंपने और मामले में न्याय दिलाने की गुजारिश की है.

4 बेटों और 1 बेटी समेत अब्दुल मागरे के कुल 5 बच्चे थे. मुठभेड़ में मारा गया आमिर बच्चों में दूसरे नंबर पर है. उनका एक बेटा दिल्ली में रहकर मजदूरी करता है, एक गुजरात में इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और एक बेटा 12वीं क्लास में है.

बकौल अब्दुल, आमिर 6-7 महीने पहले ही श्रीनगर शिफ्ट हुआ था, वहां वह मुठभेड़ में मारे गए डेंटिस्ट के साथ काम करता था. अब्दुल का दामाद मुठभेड़ में मारे गए बिजनसमैन अल्ताफ भट के साथ काम करता था. बेटी और दामाद भट के उसी मकान में रहते थे जहां एनकाउंटर हुआ. 10 दिन पहले दोनों गूल आ गए थे.
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जब लश्कर के आतंकी को कर दिया था ढेर

बताया जाता है कि 2005 में अब्दुल के घर में घुस लश्कर के एक आतंकी में उनके भाई की हत्या कर दी थी, जिसके बाद घायल अब्दुल ने परिवार के साथ मिलकर बहादुरी दिखाते हुए उस आतंकी को वहीं मार गिराया था. इसी के बाद उन्हें बहादुरी पुरस्कार मिला था.

घटना के बाद कुछ सालों के लिए वह परिवार समेत उधमपुर शिफ्ट हो गए थे, हालांकि 2011 में थाथार्का वापस लौटे, उनकी सुरक्षा के लिए घर बाहर एक पुलिस चौकी भी बनाई गई थी.

आपको बता दें कि इस मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजन शव वापस सौंपने की मांग जम्मू-कश्मीर सरकार और पुलिस से कर रहे हैं. हैदरपुरा एनकाउंटर पर उठ रहे सवालों के बीच पीडीपी नेता महूबबा मुफ्ती और नैशनल कॉन्फ्रेंस नेता उनर अब्दुल्ला ने मामले की जांच की मांग की है.

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