Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019तारीख पर तारीख! देशभर की अदालतों में 5 करोड़ मामले लंबित- आंकड़ों में खुलासा

तारीख पर तारीख! देशभर की अदालतों में 5 करोड़ मामले लंबित- आंकड़ों में खुलासा

भारत के कई मुख्य न्यायाधीशों ने कोर्ट में लंबित मामलों के मुद्दे को उठाया है.

सैयद फहीम अहमद
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>केंद्रीय कानून मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि देश की अलग-अलग अदालतों में 5.07 करोड़ मामले लंबित हैं.</p></div>
i

केंद्रीय कानून मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि देश की अलग-अलग अदालतों में 5.07 करोड़ मामले लंबित हैं.

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

केंद्रीय कानून मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि देशभर की अदालतों में 5.07 करोड़ मामले लंबित हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) के मुताबिक, देश के अलग-अलग हिस्सों में 5.07 करोड़ मामलों का निपटारा होना बाकी है.

मेघवाल ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान BJD सांसद सस्मित पात्रा और AAP के संजीव अरोड़ा के सवालों के जवाब में यह जानकारी दी.

कानून मंत्री ने न्यायपालिका के प्रत्येक स्तर पर लंबित मामलों का पूरा ब्योरा भी पेश किया है.

राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की अदालतों में 1.18 करोड़ मामले लंबित हैं, जिसके बाद महाराष्ट्र है जहां 54 लाख मामले लंबित हैं. यह आंकड़े कानून मंत्रालय द्वारा सांसद राहुल कासवान, हिबी ईडन और खलीलुर रहमान के प्रश्नों के उत्तर में उपलब्ध कराए गए हैं.

मामलों के लंबित होने के क्या कारण हैं?

जब कानून मंत्री से मामलों के समाधान में देरी के कारणों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया कि लंबित मामलों के पीछे "भौतिक बुनियादी ढांचे और सहायक अदालती कर्मचारियों की उपलब्धता, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, हितधारकों जैसे बार, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों का सहयोग और नियमों और प्रक्रियाओं का उचित अनुप्रयोग" जैसे मुद्दे शामिल हैं.

कानून मंत्री ने अपने जवाब में कहा, "आपराधिक मामलों के लंबित रहने की स्थिति में, आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न एजेंसियों जैसे पुलिस, अभियोजन, फोरेंसिक लैब, हस्तलेखन विशेषज्ञ और मेडिको-लीगल विशेषज्ञों की सहायता पर काम करती है. संबद्ध एजेंसियों द्वारा सहायता प्रदान करने में देरी से मामलों के निपटारे में भी देरी होती है."

इस समस्या को बेहतर ढंग से समझने के लिए द क्विंट ने लखनऊ के वकील अरीब उद्दीन अहमद से बात की.

"मेरी राय में, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट मामलों को निपटाने की दर अच्छी है, लेकिन लंबित मामलों की समस्या तब शुरू होती है जब अदालत 'कानून' नहीं बना रही होती है."
वकील अरीब उद्दीन अहमद

उनके अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को सिर्फ "एक्सेस" देने पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि "कानून बनाने" पर भी ध्यान देना चाहिए, जिससे कि वह निचली अदालतों को लंबित मामलों को अधिक प्रभावी ढंग से निपटाने में मदद कर सके.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

एडवोकेट अहमद कहते हैं, "अपर्णा चंद्रा की किताब 'कोर्ट ऑन ट्रायल' का संदर्भ लिया जा सकता है, जहां लेखकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सुप्रीम कोर्ट जनता की अदालत हो सकती है, लेकिन सही मायने में नहीं, क्योंकि यह केवल वंचित लोगों को ही पहुंच प्रदान करता है, वहीं मामले का फैसला करते समय, कोई कानून नहीं बनाता है, जो अधीनस्थ आदालतों और विशेष रूप से हाई कोर्ट को कानून के अनुसार मामलों का निपटारा करने में मदद कर सके."

भारत के कई मुख्य न्यायाधीशों ने कोर्ट में लंबित मामलों के मुद्दे को उठाया है.

2016 में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी.एस. ठाकुर की आंखों में आंसू आ गए थे, जब उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया था कि देश के 21,000 न्यायाधीश करोड़ों मामलों को कैसे संभाल सकते हैं.

1 जून 2021 को जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और एम.आर. शाह ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उनके सामने आए 95 प्रतिशत मामले "बेतुके (frivolous)" थे. उन्होंने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "हम राष्ट्रीय महत्व के मामलों में उलझे हुए हैं, लेकिन फिर भी हमें यह सब पढ़ना पड़ रहा है."

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT