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''1962 में युद्ध के बाद चीन और भारत अपने सीमा विवाद को सुलझाने में नाकाम रहे हैं. सीमा पर गश्त के दौरान अक्सर गतिरोध होता रहता है. अगर सैन्य टकराव और भिड़ंत को रोका नहीं गया तो एक स्थानीय संघर्ष पैदा हो सकता है.'' साल 2010 में भारतीय सेना के एक कर्नल ने एक आर्टिकल में यह बात कही थी.
अधिकारी हरिंदर सिंह, जो अब एक लेफ्टिनेंट जनरल और कॉर्प्स कमांडर हैं, को अब उसी तरह के स्थानीय संघर्ष को टालने का अहम टास्क मिला है, जिसके बारे में उन्होंने 10 साल पहले लिखा था.
6 जून को भारत और चीन के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी सीमा पर तनाव कम करने के लिए बैठक करेंगे, खासकर उस हिंसक झड़प के बाद जो पिछले दिनों लद्दाख की पेंगोंग झील के नजदीक दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई थी. लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह इस बैठक में भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करेंगे.
लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह लेह बेस्ड 14 कॉर्प्स के कमांडर हैं, जिसे 'फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स' के तौर पर भी जाना जाता है. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में कॉर्प्स की जिम्मेदारी संभाली थी.
'फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स' की कमान संभालने से पहले उन्होंने सेना के मुख्यालय में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस (DGMI) के तौर पर काम किया था. उन्होंने उत्तरी कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन की कमान भी संभाली है, जो घाटी में काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन्स के लिए जिम्मेदार है.
साल 2010 में सिंह ने चीन को लेकर लिखा था, ''भले ही सामरिक स्तर पर स्थिरता की कुछ धारणा बनी हुई है, चीन का सामरिक स्तर पर चिह्नित राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य मुखरता का प्रदर्शन जारी है... हाल के सालों में, तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में चीनी रेलवे और रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर का पश्चिमी विस्तार भारत की सैन्य इरादों से संबंधित चिंताओं पर जोर देता है. इसलिए, भारतीय सेनाओं को चीन के खिलाफ दीर्घकालिक रक्षा के लिए उचित रूप से तैयार रहना होगा.''
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