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लोगों को अब कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कुछ दिन पहले कुछ ऐसी ही सलाह दी थी. लेकिन क्या वाकई में भारत के लोग कोरोना वायरस के साथ जीना सीख सकते हैं? ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि देशभर में ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं, जहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती देखी गईं.
देशभर में 24 मार्च को पहले लॉकडाउन का ऐलान हुआ था. जिसके बाद 14 अप्रैल को दूसरा लॉकडाउन और अब तीसरे लॉकडाउन का ऐला हो चुका है. लेकिन तीसरे लॉकडाउन के बाद कुछ इलाकों में कई तरह की छूट का ऐलान किया गया. स्टैंड अलोन दुकानें और सरकारी दफ्तरों को भी खोलने की इजाजत मिली. लगभग हर राज्य ने केंद्र के इस फैसले पर अमल किया और छूट का ऐलान कर दिया.
इस ऐलान के बाद लोगों ने वो कर दिखाया, जिसका अंदाजा शायद सरकारों को भी नहीं था. सबसे पहले बात करते हैं शराब की दुकानें खोलने वाले फैसले की. दिल्ली समेत कई राज्यों ने ऐलान किया कि इस छूट में शराब की दुकानों को खोलने की इजाजत दी जाएगी. लेकिन इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ा पालन जरूरी है.
देशभर के कई राज्यों से लॉकडाउन नियमों की धज्जियां उड़ाती तस्वीरें सामने आईं. जिसके बाद वही सीएम केजरीवाल इलाके को सील कर देने की चेतावनी देते हुए नजर आए, जो कोरोना के साथ जीने और दिल्ली को खोलने की बात कर रहे थे.
शराब की दुकानों के अलावा दिल्ली में सरकारी कर्मचारियों और प्राइवेट ऑफिस के कुछ कर्मचारियों को जाने की इजाजत मिली. जबकि इससे पहले लॉकडाउन में किसी को भी घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी. सिर्फ आवश्यक सेवाएं दे रहे लोग ही घरों से निकल सकते थे. ऐसे में दिल्ली के हजारों लोग छूट मिलते ही सड़कों पर गाड़ियां लेकर उतर गए. दिल्ली के कई इलाकों में लोगों को ट्रैफिक जाम से जूझना पड़ा.
इस सबका एक बड़ा कारण ये भी है कि भारत की आधारभूत संरचना ऐसी है ही नहीं. सरकार भी जानती है कि यहां लोग 3-4 महीने तक बिना कमाए नहीं रह सकते हैं. इसीलिए छूट देने के अलावा विकल्प नहीं है. वहीं दूसरी तरफ लोगों मे नियमों का पालन करने वाली आदत कभी नहीं रही. जिसके लिए कहीं न कहीं सिस्टम भी जिम्मेदार है, क्योंकि भारत में कड़े कानून तो बनते हैं, लेकिन पुलिसिंग में उनकी हवा निकलती नजर आती है. इसीलिए इसका दोष सिर्फ लोगों को देना भी ठीक नहीं होगा.
ऐसा नहीं है कि सभी लोग लॉकडाउन के नियमों को ताक पर रखकर बाहर निकल रहे हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास सुविधाएं नहीं हैं. लॉकडाउन में मिली छूट के दौरान ऐसे लोग बाहर काम के लिए या फिर अपने परिवार के खाने के लिए निकल रहे हैं. हर किसी के पास अपनी गाड़ी नहीं है तो उसे पैदल ही सड़कों पर निकलना पड़ रहा है.
लेकिन कुछ लोगों को नियम तोड़ने की आदत सी होती है. उनके लिए छूट का मतलब है आजादी, जो उनका मन करता है वो करने की आजादी. फिर चाहे वो शराब की दुकानों के आगे झुंड बनाकर टूट पड़ने की आदत हो या फिर किसी भी जगह पर भीड़ जमा करना हो... लॉकडाउन में छूट के बाद ऐसे कई मामले देखने को मिले.
सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश के अन्य राज्यों से भी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाने वाली खबरें सामने आईं. फिर चाहे वो महाराष्ट्र का मुंबई हो या फिर पश्चिम बंगाल... हर जगह यही हाल दिखा.
ये सब देखकर यही लगता है कि भले ही अब अर्थव्यवस्था को खोलने की बात हो या फिर कोरोना वायरस के साथ ही जीने की आदत डालने वाली सलाह, दोनों ही तभी मुमकिन हैं जब लोग और सरकार सावधानी से कदम उठाएं. क्योंकि देश "सावधानी हटी दुर्घटना घटी" वाले हालात में खड़ा है. अगर दी गई छूट में ऐसी ही भगदड़ रही और नियमों की धज्जियां उड़ती रहीं तो कोरोना बाकी देशों की तरह अपना असली कहर भारत में भी दिखा सकता है.
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