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दिल्ली पुलिस के लिए गिरफ्तारी के बारे में इतनी उच्च स्तर की गोपनीयता बनाए रखना बहुत विरला है, खासकर तब, जब वे उन्हें बनाए रखने में कामयाब हुए हैं - जिसे पुलिसिया भाषा में, 'अच्छा काम' कहा जाता है.
15 दिसंबर को दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में नागरिक संशोधन कानून 2019 (CAA) और राष्ट्रीय रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) के विरोध में प्रदर्शन हुए. 17 दिसंबर को पुलिस ने इस सिलसिले में 10 कथित आरोपियों को गिरफ्तार किया था.
अब तक, हम सब इन 10 गिरफ्तार लोगों के बारे में दो बातें जानते हैं:
एक, उनमें से कोई भी जामिया यूनिवर्सिटी में छात्र नहीं हैं.
दो, पुलिस रिकॉर्ड में इन सभी का नाम पहले से दर्ज है.
और भी दिलचस्प बात यह है कि इन 10 कथित आरोपियों में से किसी का भी नाम उन दो एफआईआर में नहीं है जो जामिया विरोध प्रदर्शन के आसपास जामिया नगर और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशनों में दर्ज किए गए थे. बल्कि, जामिया नगर एफआईआर में सात नामों के एक अलग सेट का उल्लेख किया गया है, जो हिरासत में नहीं हैं और फरार नहीं हैं.
जामिया नगर एफआईआर में सात लोगों का नाम है, जिनमें पूर्व कांग्रेस विधायक आसिफ खान, स्थानीय राजनेता और छत्र युवा संघर्ष समिति (CYSS), जामिया यूनिवर्सिटी के सदस्य शामिल हैं. जबकि दूसरी एफआईआर में कोई नाम नहीं है. CYSS आम आदमी पार्टी (AAP) की विंग है.
पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) चिन्मय बिस्वाल ने कहा, “गिरफ्तार किए गए सभी लोग विरोध में शामिल थे. फिलहाल हम उनके बारे में ज्यादा ब्यौरा साझा नहीं कर सकते हैं.“
पुलिस ने यह जानकारी साझा करने से भी इनकार कर दिया कि ये लोग पुलिस को किस तरह मिले या इन लोगों को सीसीटीवी फुटेज में विरोध करते हुए देखा जा सकता है या नहीं. यह दिल्ली पुलिस का असामान्य बर्ताव है.
एफआईआर में कहा गया है कि 15 दिसंबर को दोपहर 3:30 बजे के करीब, जामिया यूनिवर्सिटी कैंपस के बाहर आसिफ खान और एक स्थानीय राजनेता आशु खान के नेतृत्व में नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया.
एफआईआर में अन्य स्थानीय नेताओं के नामों का भी जिक्र किया गया है. ये नाम हैं - मुस्तफा और हैदर. इसके अलावा CYSS जामिया के सदस्यों - आसिफ तन्हा और कासिम उस्मानी और AISA जामिया के सदस्य चंदन कुमार का नाम भी एफआईआर में है.
एफआईआर में इन सभी के खिलाफ दंगे, आगजनी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और साजिश रचने जैसे आरोप लगाए गए हैं.
द क्विंट ने जामिया यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के छात्र कासिम उस्मानी से बात की, जिसका नाम एफआईआर में दर्ज है. उसने हमें बताया कि पुलिस ने अब तक उसे और एफआईआर में नामजद दो अन्य छात्रों को तलब नहीं किया है और न ही उनसे अब तक कोई पूछताछ की गई है.
दिल्ली पुलिस ने तुम्हें एफआईआर में नामजद क्यों किया?
“दिल्ली पुलिस ने एफआईआर में मेरा नाम इसलिए लिखा है क्योंकि मैं जामिया में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा था. उन्होंने एफआईआर को राजनीतिक रंग दे दिया है. इसीलिए उन्होंने जानबूझकर उल्लेख किया कि मैं CYSS का सदस्य हूं, जो आम आदमी पार्टी की छात्र शाखा है. वे बस इतना कह सकते थे कि मैं जामिया यूनिवर्सिटी का छात्र हूं.”
पुलिस ने एफआईआर में जिक्र किया है कि तुमने भड़काऊ भाषण दिए...
“मैं पुलिस को चुनौती देता हूं कि एक ऐसा क्लिप दिखाए, जिसमें मैंने कोई भड़काऊ भाषण दिया था. मैं पुलिस से ऐसा कोई सीसीटीवी फुटेज या वीडियो दिखाने का अनुरोध करता हूं, जहां मेरे या किसी जामिया छात्र द्वारा बसों को जलाया गया हो. पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है. सिर्फ यह साबित करने के लिए कि जामिया के छात्र हिंसा में शामिल थे और यूनिवर्सिटी कैंपस में दाखिल होने की अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए उन्होंने एफआईआर में हमारा नाम दर्ज किया है.”
जब क्विंट ने पुलिस से पूछा कि एफआईआर में जिनके नाम हैं, उन लोगों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है और उनके खिलाफ क्या सबूत हैं, तो दक्षिण पूर्व दिल्ली के डीसीपी ने यह कहा:
दोनों एफआईआर में शिकायतकर्ता संबंधित पुलिस स्टेशनों के स्टेशन हाउस ऑफिसर हैं. इसका मतलब है कि SHO ने वोरोध प्रदर्शनों को खुद देखा और प्रोटेस्ट को नियंत्रित करने के दौरान सबूतों को भी इकठ्ठा करने की कोशिश की. इसका मतलब यह भी है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले एसएचओ को कुछ सबूत जुटाने पड़े होंगे. फिर वे उस जानकारी को मीडिया के साथ साझा क्यों नहीं कर रहे हैं?
पुलिस द्वारा जानकारी साझा करने से इनकार करने पर ये सवाल भी उठते हैं:
जामिया के कई छात्र जो विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे, ने दिल्ली पुलिस द्वारा उनके साथ मारपीट या पिटाई की शिकायत की. द क्विंट को एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से पता चला कि किसी छात्र की शिकायत के आधार पर अब तक किसी भी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. लेकिन क्यों?
शिकायत वापस लेने के पीछे संभावित कारण क्या हो सकते हैं? हमने इस मुद्दे को समझने के लिए एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी से बात की. उन्होंने कहा-
दूसरे शब्दों में, अगर कोई शिकायतकर्ता पुलिसकर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर जोर देता है, तो पुलिस विरोध का हिस्सा होने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ क्रॉस-एफआईआर दर्ज कर सकती है.
कासिम उस्मानी ने द क्विंट को बताया कि एक पुलिस एफआईआर के आधार पर, उसने दिल्ली हाई कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है, जिसमें पुलिस द्वारा उसके खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई न करने और उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने की गुजारिश की गई थी, जिन्होंने जामिया के छात्रों के साथ मारपीट की थी. अदालत ने उनके आवेदन को मंजूर कर लिया और पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया.
जामिया में हुई हिंसा के बाद से देशभर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में तेजी आई है. बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस के साथ झड़पों में लगभग 20 नागरिकों की मौत हुई है, जबकि गैर-बीजेपी शासित राज्यों में कोई वारदात नहीं हुई. इन झड़पों के दौरान कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए.
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