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क्या मेनस्ट्रीम नेताओं के बिना चल पाएगी कश्मीर की सियासत?

नेशनल कांफ्रेंस के सौ से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता चर्चा के लिए जमा हुए.

अहमद अली फय्याज
भारत
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क्या मेनस्ट्रीम नेताओं के बिना कश्मीर की सियासत चल पाएगी?
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क्या मेनस्ट्रीम नेताओं के बिना कश्मीर की सियासत चल पाएगी?
(फोटो : altered by Quint Hindi)

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5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 35-A और 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के ठीक 20 हफ्ते बाद, श्रीनगर में फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस के मुख्यालय, नवा-ए-सुबह, में एक बार फिर आम दिनों से अलग हलचल नजर आई.

नेशनल कांफ्रेंस के सौ से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता वहां राज्य को बांटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश बनाने और मुख्यधारा के नेताओं को हिरासत में लेने पर चर्चा के लिए जमा हुए थे.

फारूक अब्दुल्ला की हिरासत बढ़ाई गई

तीन पूर्व मुख्यमंत्री, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक और उमर अब्दुल्ला, और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, उन दर्जनों नेता और कार्यकर्ताओं में शामिल हैं जिन्हें अगस्त महीने से हिरासत में रखा गया है.

हालांकि पिछले चार महीनों में कुछ लोगों को या तो छोड़ दिया गया है या जेल से निकालकर उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया है, 82 साल के फारूक अब्दुल्ला की हिरासत जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई है.

जाहिर तौर पर सोमवार 23 दिसंबर को नेशनल कांफ्रेंस की बैठक में आए ज्यादातर लोगों ने फारूक की सेहत पर चिंता जताई और उनके परिवार, बेटे उमर, पार्टी कार्यकर्ता और दोस्तों से मिलने जुलने पर लगी रोक पर चर्चा की. मीटिंग में बोलने वाले हर शख्स ने इस पर नाराजगी जाहिर की और जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े नेता को इस तरह कैद करने पर सवाल उठाए.

5 अगस्त के बाद पहली बैठक में NC के 120 नेता और पदाधिकारी शामिल हुए

नेशनल कांफ्रेंस के स्टेट प्रेजिडेंट, शौकत मीर, जो कि वकील और जिलाधिकारी रह चुके हैं, ने कहा कि PSA के तहत सिर्फ ऐसे लोगों को पकड़ा जा सकता है जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा हों या फिर जघन्य अपराध में शामिल हों – इस कानून में कोर्ट में आरोप तय किए बिना दो साल तक हिरासत में रखने का प्रावधान है. बैठक में लोगों ने याद दिलाया कि NC नेता फारूक चार बार मुख्यमंत्री, दो बार केन्द्र में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और पांच बार भारतीय संसद में चुनकर आ चुके हैं.

“हमने एक मत से जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीने जाने, राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेश में बांटने, और मजहब के आधार पर नागरिक संशोधन कानून और एनआरसी कोठुकरा दिया. लेकिन इस पर पार्टी की कार्रवाई क्या होगी इसका फैसला पार्टी कीवर्किंग कमेटी करेगी, जब हमारे नेताओं को छोड़ा जाएगा और हमें मिलने की इजाजत दीजाएगी.”
- शौकत मीर, स्टेट प्रेजिडेंट, नेशनल कांफ्रेंस 

शौकत मीर ने द क्विंट को बताया. "फिलहाल राहत की बात यह है कि प्रशासन ने कश्मीर के 10 जिलों से आए हमारे 120 नेता और पदाधिकारियों की बैठक में कोई खलल नहीं दी."

मीर के मुताबिक पार्टी के करीब 30 बड़े नेता अभी जेल में हैं, जिसमें पूर्व मंत्री और विधायक शामिल हैं.

उन्होंने कहा, "पिछले चार महीनों में हमारी पार्टी के सैंकड़ों छोटे नेता और कार्यकर्ता पकड़े और छोड़े गए हैं. वो कहां और किस हालत में हमें कुछ नहीं पता, उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है,"

क्या महबूबा की गैरहाजिरी में PDP राजनीतिक चर्चा कर सकती है?

उसी दिन, पीडीपी के करीब एक दर्जन छोटे नेता और कार्यकर्ता 140 दिनों के बाद श्रीनगर के पार्टी मुख्यालय में मिले. बडगाम में पीडीपी के अध्यक्ष मुंतजर मोहिउद्दीन, जो कि उस मीटिंग में नहीं जा सके, ने द क्विंट को बताया कि यह मुलाकात 7 जनवरी को बिजबेहरा में पार्टी संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद के इंतकाल की चौथी बरसी, ‘फातिहा ख्वानी’, को लेकर हुई. उन्होंने कहा, "मेरे हिसाब से इसमें कोई सियासी चर्चा नहीं हुई क्योंकि यह महबूबा जी की गैरमौजूदगी में मुमिकन नहीं है."

मोहिउद्दीन के मुताबिक, पार्टी के करीब एक दर्जन बड़े नेता गिरफ्तार नहीं हैं. जिनमें महबूबा के भाई और पूर्व मंत्री तसादुक मुफ्ती और पार्टी से नाराज चल रहे दो राज्यसभा सांसद, मीर मोहम्मद फयाज और नजीर अहमद लावे शामिल हैं. खुद मोहिउद्दीन और पूर्व एमएलसी जफर इकबाल मनहास भी गिरफ्तार नहीं किए गए क्योंकि दोनों बीमार चल रहे थे और तीन महीने से जम्मू-कश्मीर से बाहर थे. पूर्व विधायकों में से तीन, नूर मोहम्मद भट्ट, मोहम्मद अशरफ मीर और यावर मीर को हाल ही में छोड़ दिया गया है. इन लोगों ने मीटिंग में शिरकत नहीं की.

PDP और NC के बड़े नेताओं के बीच कोई संपर्क नहीं

नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेताओं ने बताया कि रिश्तों में हल्की गर्माहट के संकेतों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा की दो सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कोई मेलजोल नहीं है, पिछले पांच महीनों में ना ही ऐसा कुछ दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं के बीच देखने को मिला है.

मोहिउद्दीन ने कहा. “सिर्फ महबूबा जी की मां उनसे कई बार मिली हैं. मुझे लगता है अदालत की इजाजत के बाद एक बार उनकी बेटी इल्तिजा और भाई (तसादुक) भी उनसे मिले हैं. हमने कई बार उनसे मिलने की कोशिश की लेकिन प्रशासन ने हमें इसकी इजाजत नहीं दी.”

मीर ने बताया फारूक, जो कि अपने घर में नजरबंद हैं, के परिवार के कुछ सदस्य परमिशन मिलने के बाद उनसे मिलने गए थे. मीर ने कहा, "परिवार के अलावा, हमारे दो सांसद (हसनैन मसूदी और मोहम्मद अकबर लोन) सितंबर में कोर्ट की इजाजत के बाद एक बार फारूक से मिले. उसके बाद, जम्मू से आए पार्टी प्रतिनिधिमंडल को भी डॉक्टर साहब (फारूक) से मिलने दिया गया. उनसे मुलाकात की हमारी तमाम गुजारिशों को खारिज कर दिया गया."

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लोन, फैसल जेल में हैं, कार्यकर्ता हताश हैं

पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष और मुफ्ती कैबिनेट में बीजेपी कोटा से पूर्व मंत्री सज्जाद गनी लोन और आईएएस-से-राजनेता बने शाह फैसल भी लगातार हिरासत में हैं. लोन की मां और बहन उनसे कोर्ट की इजाजत के बाद मिले, ऐसे ही फैसल की मां, पत्नी और दूसरे रिश्तेदार SKICC और MLA हॉस्टल में कई बार उनसे मिल चुके हैं. हालांकि उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि नौजवान फैसल सियासत में जमे रहेंगे या फिर अमेरिका जाकर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का काम करेंगे. फैसल को नई दिल्ली से फेलोशिप के लिए अमेरिका जाते वक्त हिरासत में ले लिया गया था.

लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस से बीजेपी के रिश्ते बिगड़ गए हैं और उन्होंने आर्टिकल 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासितप्रदेशों में बांटने की जमकर आलोचना की है.

पीपुल्स कांफ्रेंस अकेली क्षेत्रीय पार्टी थी जिसने ना सिर्फ 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के साथ गठबंधन किया बल्कि महबूबा सरकार की बर्खास्तगी के बाद भी पंचायत और नगर निगम के चुनावों में हिस्सा लिया. श्रीनगर के मेयर जुनैद अजीम मट्टू – जिनके खिलाफ मंगलवार को बीजेपी-प्रायोजित अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, भी लोन की पार्टी से आते हैं. पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने हाल में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल का चुनाव लड़ा लेकिन, दूसरी पार्टियों की तरह, पीपुल्स कांफ्रेंस में भी सियासी हलचल पूरी तरह बंद हो गई है.

सामान्य सियासी हलचल में आई शून्यता

नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की दो मीटिंग को छोड़ दें तो कश्मीर में दोबारा राजनीतिक गतिविधियां शुरू होना दूर की कौड़ी नजर आता है. इसके कई कारण हैं. जुलाई के बाद ना तो कांग्रेस और ना ही दूसरी कोई विपक्षी पार्टी ने कोई बैठक की है. केन्द्र में सरकार वाली बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में अपने कार्यकर्ताओं को रैलियां निकालने और चुनावी जीत का जश्न मनाने से मना कर दिया है.

इसके बावजूद, मुख्यधारा की दोनों पार्टियां, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी, ने शिकायत की है उनके कार्यकर्ताओं को ‘चुनकर निशाना’ बनाया जा रहा है, उन्हें ‘दमित’ किया जा रहा है.

शौकत मीर ने कहा, "दिन रात हमें खबरें मिलती हैं कि बीजेपी ने जम्मू में बयानबाजी की, रैलियां निकाली. बीजेपी के नेता कहते हैं कि वो अगले साल परिसीमन के जरिए जम्मू में चुनाव क्षेत्रों की तादाद बढ़वाएंगे, और उसके बाद विधानसभा के चुनाव कराए जाएंगे. दूसरे शब्दों में कहें तो वो अपने वोट बैंक को यह बता रहे हैं कि अगली विधानसभा में जम्मू का दबदबा होगा और मुख्यमंत्री भी वहीं से होगा. वो कैसे अपनी राजनीतिक गतिविधियां जारी रख रहे हैं? उनको कैसे मालूम परिसीमन आयोग की कार्रवाई कब होगी और उसका क्या नतीजा होगा? उनको कैसे पता चुनाव आयोग कब चुनाव की घोषणा करेगा."

झारखंड में BJP की हार से नेशनल कांफ्रेंस, PDP में राहत

नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी में इस वक्त झारखंड में बीजेपी की करारी हार के बाद खुशी का माहौल है. उनका मानना है कि महाराष्ट्र और झारखंड में सरकार बनाने में नाकाम होने के बाद और देशभर में CAA-NRC के खिलाफ हंगामे से जम्मू-कश्मीर में अप्रत्याशित बदलाव लाने के जिम्मेदार मोदी और शाह की जोड़ी कमजोर होगी. पीडीपी के एक नेता ने कहा, "बीजेपी एक के बाद एक राज्यों में हार रही है. दिल्ली और बिहार से कोई अच्छी खबर आने के संकेत नहीं दिख रहे. जहां 2017 में बीजेपी का देश के 71 फीसदी हिस्से और 69 फीसदी आबादी पर राज था. आज यह घटकर 35 और 43 फीसदी रह गई है."

बहुत कुछ आने वाले वक्त में घाटी के रवैये और भावना पर निर्भर करता है जहां अगस्त से अब तक हिंसा नहीं हुई है जबकि 3,000 से ज्यादा ‘पत्थरबाज’ गिरफ्तार किए गए, 300 से ज्यादा राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया, भारी तादाद में सुरक्षाबलों की तैनाती है, इंटरनेट बंद है, अलगाववादी नेताओं की साख गिर रही है, चरमपंथियों का मोहभंग हो रहा है, पाकिस्तान पर FATF का दबाव है, आर्थिक मंदी हो रही है वैगरह. बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है कि मोदी सरकार उमर और महबूबा जैसे कश्मीरी नेताओं को पर्याप्त जगह देती है या नहीं, या उन्हें ‘पाकिस्तान और अलगाववादियों का मुख्य मददगार ही मानती रहती है.’


(लेखक श्रीनगर में पत्रकार हैं. उनकी ट्विटर आईडी है- @ahmedalifayyaz )

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