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तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के निधन को लेकर देश की प्रमुख हॉस्पिटल चेन अपोलो हॉस्पिटल जांच के दायरे में है. पूर्व मुख्यमंत्री का निधन किन परिस्थितियों में हुआ, इसकी जांच-पड़ताल करने के लिए जस्टिस ए अरुमुघस्वामी आयोग को स्थापित किया गया था. इस कमीशन ने ये निष्कर्ष निकाला है कि जयललिता के इलाज में अपोलो के डॉक्टरों ने कुछ गंभीर चूक की थी. बता दें कि जयललिता अपनी मौत के 75 दिन पहले से चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती थीं.
मद्रास हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए अरुमुघस्वामी की अध्यक्षता में आयोग ने जांच-पड़ताल की थी. जिस हॉस्पिटल की सेवाओं का उपयोग हजारों लोग करते हैं? उस अस्पताल की गलतियां आयोग ने किस आधार पर ढूंढ निकाली हैं, आइए जानते हैं.
मुख्य रूप से पांच कारणों से आयोग ने अस्पताल में जयललिता के इलाज को संदिग्ध माना है :
अंतर्निहित हार्ट कंडीशन के लिए जयललिता का सर्जिकल इलाज नहीं किया गया था.
कथित तौर पर जयललिता को उनके इलाज के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर अंधेरे में रखा गया था.
कथित तौर पर सरकार को जयललिता की हेल्थ कंडीशन की वास्तविक स्थिति के बारे में सूचित नहीं किया गया था.
कथित तौर पर हॉस्पिटल के अधिकारियों ने जयललिता की वास्तविक स्वास्थ्य स्थिति का खुलासा नहीं करके जनता को गुमराह किया.
कथित तौर पर हॉस्पिटल ने मौत का सही समय रिकॉर्ड नहीं किया और इसे रिकॉर्ड करने में कई घंटे की देरी हुई.
22 सितंबर 2016 को चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल में जयललिता को एडमिट कराया गया था, जहां लगभग 75 दिन उनका इलाज चला और हॉस्पिटल में ही 5 दिसंबर 2016 को उनकी मौत हो गई थी. जब उनकी मौत हुई तब वह 68 वर्ष की थीं.
2015 के अंत में कथित तौर पर जलयालिता को दिल की बीमारी (लेफ्ट वेंट्रिकुलर (एलवी) डिसफंक्शन) का पता चला था. आयोग ने नोट किया है कि इस संबंध में "सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट के बिना अस्पष्ट सबूत हैं". आयोग के अनुसार, 22 सितंबर 2016 को जब जयललिता को अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था, तब शुरुआती तौर पर यह डायग्नोस हुआ था कि जयललिता सेप्सिस, कम्युनिटी-एक्वॉर्ड निमोनिया और एक्यूट LV फेल्योर से पीड़ित थीं. आयोग के मुताबिक 29 सितंबर 2016 को जयललिता के हार्ट पर "सुराख और वेजीटेशन (असामान्य वृद्धि)" डेवलप हुई, जबकि हॉस्पिटल ने उनका सेप्सिस और निमोनिया का इलाज किया.
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स), नई दिल्ली के डॉक्टर डॉ नितीश नाइक और डॉ देवा गौरौ वेलायौदम अयोग की ओर से विटनेस (गवाह) थे. इन्होंने अपनी गवाही में सबूत देते हुए यह भी कहा कि सर्जरी ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिससे वेजीटेशन (या हार्ट वाल्व का बैक्टीरियल इंफेक्शन) की समस्या को हल किया जा सकता है, "भले ही सर्जरी करते समय मरीज की हेल्थ कंडीशन को ध्यान में रखा जाए."
इसके अलावा, न्यूयॉर्क स्थित माउंट सिनाई हॉस्पिटल के डॉ शमीन शर्मा ने भी सर्जरी की सिफारिश की थी. डॉ शर्मा को जयललिता के रिश्तेदारों ने बुलाया था. आयोग ने नोट किया है कि डॉ शमीन शर्मा ने सर्जरी करने की पेशकश की थी, लेकिन अपोलो के डॉक्टरों ने उनके ऑफर को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि अपोलो के डॉक्टरों ने यूके के एक इंटेंसिव केयर मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ रिचर्ड बीले की सलाह ली थी.
आयोग ने पूछा है कि वेजीटेशन (या हार्ट वाल्व का बैक्टीरियल इंफेक्शन) की समस्या को सर्जरी से निपटाने के लिए कार्डियो-थोरेसिक सर्जन से परामर्श क्यों नहीं किया गया. हालांकि, यहां पर इस बात का उल्लेख किया जाना चाहिए कि आयोग ने यह पाया है कि अपोलो और एम्स के कुछ डॉक्टरों ने सर्जरी की जरूरत से इनकार किया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिया है कि यह एक गलत फैसला था.
आयोग ने यह भी पूछा है कि पूर्व सीएम को मेडिकल केयर के लिए विदेश में किसी भी मेडिकल सेंटर में क्यों नहीं भेजा गया. डॉ रिचर्ड बीले के बयान के आधार पर आयोग ने यह नोट किया कि डॉ रिचर्ड बीले ने विदेश में जयललिता का इलाज करने की सिफारिश की थी और यहां तक कि एक एयरबस में उसके साथ जाने के लिए राजी भी हो गए थे.
आयोग ने पाया है कि जब जयललिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया तब शुरुआती 15 दिनों के दौरान सेप्सिस के लिए उनका ट्रीटमेंट किया गया था, वहीं अगले 60 दिनों में केवल फेफड़े और हृदय की बीमारियों के लिए उनका उपचार किया गया था.
हालांकि आयोग ने यह पाया कि अपोलो हॉस्पिटल के डॉ बाबू अब्राहम ने इस एंजियोग्राम की जरूरत से इनकार किया था. आयोग के अनुसार डॉ बीले ने भी इलाज के शुरुआती चरण में एंजियोग्राम कराने की सलाह दी थी.
हालांकि उस समय अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने कथित तौर पर एंजियोग्राम को टालने का कारण स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन आयोग की रिपोर्ट में एक प्रमुख चिंता यह है कि एंजियोग्राम की संभावित जरूरत के बारे में जयललिता को अवगत नहीं कराया गया था. आयोग ने कहा कि हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री होश में थीं, लेकिन उन्हें यह बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी नहीं दी गई.
आयोग ने अपने बयान में यह भी कहा है कि हॉस्पिटल के किसी भी डॉक्यूमेंट पर जयललिता के हस्ताक्षर नहीं थे. उनकी सहयोगी वीके शशिकला और तत्कालीन मुख्य सचिव ने उनकी तरफ से इलाज के डाॅक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर किए थे.
आयोग के मुताबिक सिर्फ जयललिता ही इकलौती ऐसी नहीं थीं, जिन्हें कथित तौर पर मझधार में छोड़ दिया गया था. आयोग का कहना है कि अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) की सरकार और पार्टी में जयललिता के सहयोगियों को भी उनकी बीमारियों की सही प्रकृति और उन्हें दिए जाने वाले उपचार के बारे में पता नहीं था. आयोग का कहना है कि जयललिता के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में सरकार को विस्तृत जानकारी देने में तत्कालीन हेल्थ सेक्रेटरी जे राधाकृष्णन विफल रहे थे.
आयोग ने कहा :
आयोग ने पाया है कि जयललिता के स्वास्थ्य के बारे में ज्यादातर फैसले शशिकला और जयललिता के निजी चिकित्सक डॉ केएस शिवकुमार ने अपोलो हॉस्पिटल में डॉक्टरों के परामर्श से लिए थे. आयोग के अनुसार यहां तक कि उसके रिश्तेदारों को भी अहम फैसलों की जानकारी नहीं दी गई थी.
आयोग ने यह पाया कि जयललित का ट्रीटमेंट "गोपनीयता में डूबा हुआ" था. रिपोर्ट में कहा गया है :
आयोग ने दावा करते हुए कहा कि अगर जयललिता की गंभीर स्थिति के बारे में सरकार को पता होता तो कैबिनेट विदेश के मेडिकल सेंट में उनके ट्रीटमेंट करवाने का प्रस्ताव पारित कर सकती थी. आयोग ने कहा जहां एक ओर सरकार को लूप में नहीं रखा गया वहीं दूसरी ओर अपाेलो हॉस्पिटल ने जनता को भी गुमराह करने का काम किया.
अपोलो हॉस्पिटल के चेयरमैन सी प्रताप रेड्डी ने 12 नवंबर 2016 को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कथित तौर पर दावा करते हुए कहा था कि जयललिता के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और वह जब चाहें तब अस्पताल से जा सकती हैं. हालांकि आयोग ने इस बयान पर सख्ती से नाराजगी जताई है.
आयोग ने दावा करते हुए कहा कि उस समय के मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार, मरीज अस्पताल से जाने की स्थिति में नहीं था.
आयोग ने इस बयान को "बेहद निंदनीय" बताया, क्योंकि इसने लोगों को सीएम के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में गलत जानकारी दी थी. यह ध्यान में रखना चाहिए कि जब जयललिता की मौत हुई तब वह तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं. वह एक ऐसा समय था जयललिता के स्वास्थ्य की स्थिति से जुड़ी खबर का लाखों लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. राजनीति में कदम रखने से पहले पूर्व सीएम का एक शानदार फिल्मी करियर था, वे तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थीं.
आयोग ने सिफारिश की है कि सिर्फ उनके बयान के लिए, प्रताप रेड्डी के व्यवहार या आचरण की जांच होनी चाहिए.
आयोग की रिपोर्ट में है कि :
मरीज की मौत किस समय हुई इस तथ्य को रिपोर्ट में सही ढंग से दर्ज नहीं करने के लिए भी हॉस्पिटल को जिम्मेदार ठहराया गया है.
4 दिसंबर को जयललिता के कमरे में मौजूद नर्सिंग स्टाफ, ड्यूटी डॉक्टरों और तकनीशियनों के बयानों में आयोग ने यह पाया कि उसी दिन (4 दिसंबर को) दोपहर में जयललिता को दिल का दौरा पड़ा था. हालांकि, 4 दिसंबर को दोपहर 3.50 बजे तक डॉक्टर उन्हें सीपीआर या स्टर्नोटॉमी देकर बचा नहीं पाए.
इसके बाद जयललिता को अगले कई घंटों के लिए ईसीएमओ (एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन) पर रखा गया था. आयोग का कहना है कि अस्पताल का यह निर्णय सिर्फ "खुद को संतुष्ट करने के लिए" था. ईसीएमओ एक ऐसी मशीन है जो मरीज के हार्ट और फेफड़ों के कुछ कार्यों की जगह ले लेती है. आयोग ने पाया कि चूंकि ब्रेन डेथ नहीं हुआ था इसलिए हॉस्पिटल ने उन्हें ईसीएमओ पर रखा था.
आयोग ने पूछा है कि अगर उनके बचने की कोई संभावना नहीं थी या हार्ट ट्रांसप्लांट की भी संभावना नहीं थी, तो 4 दिसंबर को ही जयललिता को मृत घोषित क्यों नहीं किया गया. जब जयललिता ईसीएमओ में थी तब एम्स के डॉक्टरों की एक टीम ने भी उनकी जांच की थी.
आयोग ने पाया कि
5 दिसंबर 2016, रात 11:30 बजे को मौत के आधिकारिक समय के रूप में दर्ज किया गया था.
अरुमुघस्वामी कमीशन की टिप्पणियों ने एम्स द्वारा स्थापित एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का खंडन किया है. मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अपोलो हॉस्पिटल ने जयललिता के मामले में सभी आवश्यक ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल का पालन किया था. वहीं वीके शशिकला ने आयोग के निष्कर्षों का खंडन किया है और कहा है कि उन्होंने विश्वसनीय और योग्य डॉक्टरों की सलाह पर ही काम किया था.
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