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NSD से पढ़ाई कर चुके एक मशहूर रंग कर्मी और लेक्चरर जीतराई हांसदा को झारखंड की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. जीतराई पर बीफ पर पोस्ट लिखकर धार्मिक भावना भड़काने का आरोप है. हांसदा की गिरफ्तारी का बड़ा विरोध हो रहा है. सोशल मीडिया से लेकर झारखंड की सियासत तक में इसकी चर्चा हो रही है. सवाल है क्या वाकई जीतराई हांसदा ने कोई गैरकानूनी काम किया है? क्या वाकई उन्होंने किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाई है? 'जाहेर डांगरी' क्या है और क्या वाकई झारखंड के आदिवासी आज भी इसे मनाते हैं?
जीतराई ने 2017 में एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि आदिवासी बीफ खाते हैं. 'जाहेर डांगरी' जैसे पर्व त्योहार पर बलि भी देते हैं. हांसदा ने अपनी पोस्ट में गोहत्या कानून को जबरन आदिवासियों पर लागू करने पर का विरोध करते हुए लिखा था कि अगर आदिवासियों को देश का हिस्सा मानते हैं तो ऐसे कानून बनाना बंद कीजिए.
जीतराई की गिरफ्तारी को अवैध बताया जा रहा है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि जीतराई ने कोई कानून नहीं तोड़ा. सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि उन्हें पोस्ट लिखने के दो साल बाद और चुनाव खत्म होने के बाद गिरफ्तार किया गया. उनकी रिहाई के लिए सोशल मीडिया पर मुहिम चला रहे लोगों का आरोप है कि आदिवासी वोट न कटें, इसलिए पुलिस प्रशासन चुनाव तक रुका रहा और चुनाव खत्म होते ही गिरफ्तारी की गई.
अब सवाल ये है कि क्या वाकई झारखंड में आदिवासी बीफ खाते हैं? झारखंड में आदिवासी इलाकों में काम करने वाली सोशल वर्कर देवला मुर्मू बताती हैं कि जिस 'जाहेर डांगरी' का जिक्र जीतराई हांसदा ने किया है वो आदिवासी इलाकों में आम बात है. गांवों में पांच या बारह साल के बाद ये आयोजन होते हैं. जिसमें रिश्तेदारों को बुलाया जाता है, पूरे गांव के लोग जमा होते हैं और बलि देते हैं फिर मिल बैठकर खाते-पीते हैं. जाहेर का मतलब संथालों की पूजा की जगह और डांगरी मतलब बैल.
पश्चिम बंगाल में विद्यासागर यूनिवर्सिटी में संथाली विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और आदिवासी रीति रिवाजों के एक्सपर्ट डॉ. रतन हेम्ब्रम कहते हैं कि बीफ खाना और मांसाहार आदिवासियों की पहचान से जुड़ा है. अगर इसपर रोक लगी तो आदिवासी खत्म हो जाएंगे. डॉ. हेम्ब्रम का दावा है कि पहले पुलिस प्रशासन ऐसे आयोजनों में सुरक्षा मुहैया कराती थी लेकिन अब उल्टा हो रहा है.
झारखंड में जिस आजसू के साथ आज बीजेपी गठबंधन में है उसकी स्थापना करने वाले सूर्य सिंह बेसरा इसी तरह का एक केस साल भर से लड़ रहे हैं. बेसरा कहते हैं कि जीतराई हांसदा ने कोई गलत बात नहीं कही है, उन्हें इस मामले में कॉलेज से निलंबित करना भी गलत था.
बेसरा जो आज झारखंड पिपुल्स पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष हैं, बताते हैं कि पिछले साल बिरसा मुंडा जयंती पर उन्होंने झारखंड के लातेहार में एक जनसभा में कहा था कि बीफ खाना आदिवासी परंपरा से जुड़ी चीज है. इसी बात पर उनके खिलाफ गैर जमानती मुकदमा किया गया. उनके यहां कुर्की की गई. फिलहाल बेसरा जमानत पर हैं.
आदिवासी समुदाय से आने वाले झारखंड के बीजेपी नेता रमेश हांसदा का भी कहना है कि जीतराई ने कोई गलत बात नहीं कही, लेकिन गलत वक्त पर कही. जब देश भर में इस मुद्दे पर बवाल मचा था तो उन्हें ऐसी फेसबुक पोस्ट नहीं करनी चाहिए थी.
2015 में जब एक्टर ऋषि कपूर ने धर्म और खानपान को जोड़े जाने पर सवाल उठाया और बताया कि वो हिंदू हैं फिर भी बीफ खाते हैं तो उन्हें भी ट्रोल किया गया था. हालांकि उनपर भी गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई नहीं हुई.
सवाल ये है कि जीतराई हांसदा ने किस कानून का उल्लंघन किया. झारखंड में गोहत्या पर बैन है. इस बैन का उल्लंघन जरूर कानून तोड़ना माना जाएगा लेकिन क्या इस बैन के खिलाफ कोई बोल भी नहीं सकता? हांसदा पर धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने और अफवाह फैलाने का आरोप है. लेकिन हांसदा ने अपनी पोस्ट में सिर्फ ये कहा कि बीफ खाना आदिवासियों की परंपरा है. अपने समुदाय के बारे में बात करने से किसी दूसरे की धार्मिक भावना कैसे आहत हुई? जब आदिवासी बीफ खाते आए हैं और खाते हैं तो अफवाह फैलाने जैसी भी कोई बात नहीं हुई.
हांसदा को दो साल बाद क्यों गिरफ्तार किया गया? इसपर जमशेदपुर पुलिस का कहना है कि वो फरार थे. लेकिन 3 अक्टूबर, 2018 के अपने आदेश में रांची हाईकोर्ट ने हांसदा को भगोड़ा मानने से इंकार किया था. पुलिस कोर्ट को ये तक बताने में नाकाम रही कि उसने हांसदा को गिरफ्तार करने के लिए क्या किया? हांसदा के वकील का भी यही कहना है कि हांसदा लगातार सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे. तो क्या ये आरोप सही है कि गिरफ्तारी के लिए चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रहे थे?
जैन शुद्ध शाकाहारी होते हैं. जब वो कोलकाता में दुर्गा पूजा में हर तरफ बकरे की बलि देखते हैं तो उनकी धार्मिक भावना आहत नहीं होती क्या? जब कोई शाकाहारी देश के बाजारों में पशुओं का वध देखता है तो उसकी भावना आहत नहीं होती क्या? और सवाल ये भी है कि आदिवासियों की धार्मिक भावना का क्या? क्या संविधान में हर धर्म को बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया है? जवाब शायद दुनिया भर में मशहूर संथाली लेखक सौभेंद्र हांसदा की सलाह में है. सौभेंद्र बताते हैं कि ये मुद्दा संवेदनशील है लेकिन जिस देश में मल्टी कल्चरल सोसाइटी है वहां इतनी सहिष्णुता तो होनी ही चाहिए एक दूसरे की परंपरा की कद्र कर सकें.
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