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अगर आप राजधानी दिल्ली में रहते हैं तो आपने कभी न कभी पुलिस की गाड़ी या फिर कहीं पुलिस के बैनर पर लिखा जरूर देखा होगा- दिल्ली पुलिस सदैव आपकी सेवा में... वहीं दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों को अगर किसी सभा में सुना होगा तो वो हमेशा कहते हैं कि अपराधियों को पकड़ने में दिल्ली पुलिस का कोई तोड़ नहीं है. ये भारत की सबसे स्मार्ट पुलिस है.
लेकिन दिल्ली पुलिस की ये स्मार्टनेस फिलहाल फीकी नजर आ रही है. जेएनयू में नकाबपोश गुंडों के पीछे पुलिस का पूरा सिस्टम लगा है, लेकिन अब तक सब लापता हैं. घटना के 72 घंटे बीतने के बाद भी पुलिस गहन जांच में जुटी है.
अब दिल्ली पुलिस को ठीक ढंग से समझने के लिए आप पूरी क्रोनोलॉजी समझिए... पुलिस इस बात के लिए बदनाम होती है कि हमेशा घटना होने के बाद पुलिस मौके पर पहुंचती है. लेकिन दिल्ली पुलिस दावा करती है कि सूचना मिलते ही घटना पर पहुंचकर एक्शन लिया जाता है. अब बात करते हैं कुछ हफ्ते पहले दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी के पास नागरिकता कानून को लेकर हुए प्रदर्शन की.
आरोप लगे लेकिन पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था का दावा करते हुए कहा कि हमें जो सही लगा वही किया. साथ ही बताया गया कि भीड़ को खदेड़ते हुए पुलिस कैंपस के अंदर घुस गई और लॉ एंड ऑर्डर को दुरुस्त किया.
अब आते हैं जेएनयू वाले मामले पर, जहां पर दिल्ली पुलिस ने जामिया वाली गलती बिल्कुल भी नहीं दोहराई. दिल्ली पुलिस आदेश का इंतजार करती रही, कैंपस में गुंडों को देखकर भी हाथों में लाठियों पर हाथ मलती रही, क्योंकि पुलिस को जेएनयू प्रशासन की तरफ से आदेश जो नहीं मिला था. पुलिस की आंखों के सामने ही करीब 50-60 नकाबपोश गुंडों की भीड़ तोड़फड़ करके निकल गई और पुलिस एक भी गुंडे को नहीं पकड़ पाई. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं... ऐसा दिल्ली पुलिस ने खुद सोमवार को दर्ज अपनी एक एफआईआर में लिखा है. पुलिस ने हिंसा को लेकर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर में लिखा है,
करीब 3:45 पर दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर को एक सूचना मिली कि कुछ लोग जेएनयू के पेरियार हॉस्टल में तोड़फोड़ कर रहे हैं. इस पर तुरंत पुलिस पेरियार हॉस्टल पहुंची. जहां 40-50 अनजान लोग, जिन्होंने मुंह पर कपड़े बांधे थे और हाथ में डंडे लिए थे, पेरियार हॉस्टल के बाहर मारपीट कर रहे थे. लेकिन हुड़दंगी पुलिस टीम को देखकर भाग गए.
पुलिस ने आगे अपनी एफआईआर में लिखा है,
करीब 7 बजे इंस्पेक्टर को सूचना मिली कि साबरमती हॉस्टल में कुछ हुड़दंगी लोग घुस गए हैं और मारपीट कर रहे हैं. इंस्पेक्टर हमराही स्टाफ के साथ साबरमती हॉस्टल पहुंचे, जहां करीब 50-60 लोग हाथों में डंडे लिए तोड़फोड़ कर रहे थे. इसके बाद उन्हें पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम से चेतावनी दी गई, जिसके बाद वो फिर से भाग गए.
यानी पुलिस के सामने ही नकाबपोश गुंडों ने तोड़फोड़ की थी, लेकिन तब पुलिस ने चेतावनी देने के अलावा उन्हें पकड़ने की कोशिश तक नहीं की. पुलिस ने इन 60 लोगों में से एक भी युवक को हिरासत में नहीं लिया. अगर कोशिश की होती तो एफआईआर में लिखा होता.
जेएनयू के पूरे मामले में दिल्ली पुलिस को लेकर एक बात तो साफ हो गई कि उन्होंने यूनिवर्सिटीज के लिए अब हम कुछ नहीं करेंगे वाला रवैया अपनाना शुरू कर दिया है. चाहे उनकी आंखों के सामने कोई लोग मारपीट कर रहे हों या फिर तोड़फोड़ हो रही हो, ऑर्डर मिलने तक हाथ बांधे रखेंगे.
नकाबपोश गुंडों के भागने के बाद जेएनयू के गेट पर भी पुलिस का ऐसा रवैया दिखा. पुलिस के सामने कुछ लोगों ने स्वराज इंडिया के फाउंडर योगेंद्र यादव से हाथापाई कर ली. उनके साथ बदसलूकी हुई. लेकिन पुलिस को समझ नहीं आया कि वो आखिर करे तो क्या करे? इस दौरान योगेंद्र यादव ने कहा था,
सिर्फ योगेंद्र यादव ही नहीं बल्कि कुछ बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकारों के साथ भी वहां खड़ी भीड़ ने हाथापाई की और उनके कैमरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. उन्होंने भी पुलिस पर मूक दर्शक बनने का आरोप लगाया.
अब पुलिस पर लगे इतने गंभीर आरोपों के बाद पुलिस ने सामने आकर बताया कि इस मामले में एक एफआईआर दर्ज कर ली गई है. दंगा करने और तोड़फोड़ आदि के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ ये मामला दर्ज किया गया है.
इस दौरान पुलिस ने बताया कि वो अब सीसीटीवी कैमरे खंगालकर इस गुत्थी को सुलझा देंगे और इस केस को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच देख रही है. अब क्राइम ब्रांच का नाम और सीसीटीवी की जांच की बात सुनते ही लोग धड़ाधड़ गिरफ्तारियों का इंतजार करने लगे. कई घंटे बीत गए, लेकिन नकाबपोश गुंडों की कोई खबर नहीं आई. 50-60 की भीड़ में आए नकाबपोश गुंडे 'मिस्टर इंडिया' की तरह गायब हो गए.
वहीं दूसरी बात उस वॉट्सऐप ग्रुप की हुई, जिसमें कहा गया था कि जेएनयू चलते हैं और सबक सिखाते हैं. पुलिस ने इस ग्रुप में दिख रहे नंबर घुमाने शुरू किए, लेकिन ज्यादातर स्विच ऑफ मिले. कुल मिलाकर पुलिस ने मुट्ठी भरकर रेत तो उठाई लेकिन अंत में बचा कुछ नहीं.
अब 72 घंटों से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, नकाबपोश गुंडों को लेकर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने कुछ भी नहीं कहा है. हर तरफ से सवाल उठने के बाद और पुलिस पर लगातार बढ़ते दबाव के बाद सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि कुछ नकाबपोशों की पहचान हो गई है और बाकी की भी पहचान कर ली जाएगी.
लेकिन दिल्ली पुलिस जैसी एक्टिव और स्मार्ट पुलिस पर अभी भी आरोप लग रहे हैं कि आखिर क्यों अब तक पुलिस के हाथ खाली हैं? आखिर क्यों पुलिस ने अभी तक एक भी नकाबपोश को गिरफ्तार नहीं किया है? आखिर क्यों पुलिस इस मामले पर वैसी तेजी नहीं दिखा रही, जैसे लॉ एंड ऑर्डर सुधारते वक्त दिखाती है. जैसी जामिया में दिखाई थी. कुछ लोग तो दिल्ली पुलिस की उस तेजी को भी याद कर रहे हैं जब पीएम मोदी की भतीजी का पर्स चोरी हुआ था और पुलिस ने कुछ ही घंटों के भीतर सैकड़ों सीसीटीवी कैमरों की मदद से आरोपियों को धर दबोचा था.
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