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पश्चिम बंगाल (West Bengal) के दार्जिलिंग जिले में कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटना में 8 लोगों की मौत हो गई है. इस हादसे में करीब 50 लोग घायल भी हुए हैं. रेलवे के मुताबिक मरने वालों में तीन रेलवे कर्मचारी हैं.
कंचनजंघा एक्सप्रेस ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन से निकलकर किशनगंज रुट की ओर बढ़ रही थी तभी पीछे से इसे एक मालगाड़ी ने टक्कर मार दी. इस हादसे में कंचनजंघा एक्सप्रेस के तीन डब्बे पटरी से उतर गए. फिलहाल जो डब्बे पटरी पर थे उन्हें सियालदह की ओर रवाना कर दिया गया है.
भारतीय रेलवे ने प्रत्येक मृतक के परिजन को 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायल हुए लोगों को 2,50,000 रुपये और मामूली रूप से घायल हुए लोगों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है. यह हादसा सोमवार सुबह करीब 8.45 बजे हुआ है.
कंचनजंघा एक्सप्रेस एक्सीडेंट के बाद विपक्षी नेता सरकार और रेल मंत्रालय पर लगातार सवाल उठा रहे हैं.
इस हादसे पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, "पिछले 10 वर्षों में रेल दुर्घटनाओं में जो वृद्धि हुई है वो केंद्र सरकार की रेलवे के प्रति कुप्रबंधन और लापरवाही का नतीजा है. एक जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर हम इस लापरवाही पर सवाल उठाते रहेंगे और संसद में भी सरकार से जवाब मांगेंगे."
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में घायलों से मुलाकात की.
घायलों से मुलाकात के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "उन्हें (रेलवे मंत्रालय) यात्रियों की सुविधाओं की परवाह नहीं है. उन्हें रेलवे अधिकारियों, रेलवे इंजीनियरों, रेलवे तकनीकी कर्मचारियों और श्रमिकों की भी परवाह नहीं है. वे भी परेशानी में हैं."
इसके हादसे के बाद से ये सवाल उठने लगे कि क्या तकनीक की मदद से इस तरह के हादसों को टाला जा सकता है? इन सब के बीच 'कवच सिस्टम' (Kavach System) की भी चर्चा हो रही है. जिसे भारत में सुरक्षित ट्रेन संचालन की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा था. मार्च 2022 में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) की मौजूदगी में इसका सफल ट्रायल हुआ था. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर 'कवच' सिस्टम क्या है?
भारतीय रेलवे ने चलती ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 'कवच' नामक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) सिस्टम विकसित की है. कवच टेक्नोलॉजी को देश के तीन वेंडर्स के साथ मिलकर RDSO (Research Design and Standards Organisation) ने डेवलप किया है. भारतीय रेल ने यह कवच टेक्नोलॉजी खुद डेवलप किया है और इसे नेशनल ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) सिस्टम के रूप में अपनाया गया है. यह सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल - 4 मानकों की अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है.
'कवच' ट्रेन में लगा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस का एक सेट है, जो सिग्नलिंग सिस्टम के साथ-साथ पटरियों पर ट्रेनों की स्पीड को नियंत्रित करने में सक्षम है.
'कवच' न केवल लोको पायलट को सिग्नल पासिंग एट डेंजर (SPAD) और ओवर स्पीडिंग से बचने में मदद करता है बल्कि खराब मौसम जैसे घने कोहरे के दौरान ट्रेन चलाने में भी मदद करता है. इस प्रकार, कवच के जरिए ट्रेन संचालन की सुरक्षा और दक्षता को बढ़वा मिलता है.
अगर लोको पायलट ब्रेक नहीं लगा पाता है तो कवच स्वचालित/ऑटोमेटिक रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है.
कवच कैब में लाइन-साइड सिग्नल को दोहराता है जो हाई स्पीड और धुंधले मौसम के लिए बहुत उपयोगी है.
कवच दो इंजनों के बीच टक्कर को रोकने में भी सक्षम है. मतलब एक ही पटरी पर दो ट्रेनें आमने सामने आ जाएं तो एक्सीडेंट नहीं होगा.
आपातकालीन स्थितियों के दौरान एसओएस संदेश भेजता है
नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेन की आवाजाही की केंद्रीकृत लाइव निगरानी
लेवल क्रॉसिंग गेट्स पर कवच की मदद से ऑटोमैटिक हॉर्न बजने लगता है
4 मार्च 2022 को केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी में कवच सिस्टम का परीक्षण किया गया था. दक्षिण मध्य रेलवे के सिकंदराबाद डिवीजन में लिंगमपल्ली-विकाराबाद खंड पर गुल्लागुडा-चिटगिड्डा रेलवे स्टेशनों के बीच कवच प्रणाली का परीक्षण हुआ था. परीक्षण के दौरान दो ट्रेनें एक-दूसरे की ओर बढ़ रही थीं, जिससे आमने-सामने की टक्कर की स्थिति पैदा हो गई. 'कवच' प्रणाली ने स्वचालित ब्रेकिंग सिस्टम की शुरुआत की और ट्रेन को 380 मीटर की दूरी पर रोक दिया.
23 मार्च 2022 के रेल मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, भारतीय रेलवे ने दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली - विकाराबाद - वाडी, विकाराबाद - बीदर (250 KM) खंड के पूर्ण ब्लॉक खंड पर 'कवच' का परीक्षण किया था.
सफल परीक्षण के बाद दक्षिण मध्य रेलवे के मनमाड-मुदखेड़-धोन-गुंतकल और बीदर-परभणी सेक्शन में 1199 आरकेएम पर कवच का कार्य प्रगति पर था. तब तक दक्षिण मध्य रेलवे में लगभग 1098 आरकेएम नेटवर्क रूट को कवच के दायरे में लाया गया था.
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