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कर्नाटक में 8,000 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टरों को राज्य सरकार ने बड़ी राहत दी है. ये डॉक्टर अपने स्टाइपेंड, सैलरी को लेकर असंतोष जाहिर कर रहे थे. अब प्रदेश सरकार ने इसे बढ़ाने का फैसला किया है. कर्नाटक में डॉक्टरों के स्टाइपेंड में आखिरी बार साल 2015 में बदलाव किया गया था और इन 'कोरोना वॉरियर्स' की शिकायत थी कि दूसरे राज्यों की तुलना में इन्हें काफी कम मेहनताना मिलता है.
अब राज्य में इंटर्न डॉक्टरों का स्टाइपेंड बढ़ाकर 30 हजार रुपये कर दिया गया है. 1 से 3 साल तक के पीजी स्टूडेंट्स के लिए मानदेय 40,000 रुपये, 45,000 रुपये और 50,000 रुपये तक बढ़ा दिया गया है.
पिछले कुछ महीनों से ये डॉक्टर अपनी सैलरी बढ़ाने की मांग कर रहे थे. वहीं दूसरी तरह यूपी के इंटर्न डॉक्टर भी लगातार अपना मेहनताना बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. वो यूपी सरकार को लेटर लिख चुके हैं साथ ही सोशल मीडिया पर भी अपनी बात रख रहे हैं.
गोरखपुर BRD मेडिकल कॉलेज के ही एक इंटर्न डॉक्टर ने कहा,
यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन के स्टेट प्रेसिडेंट डॉक्टर नीरज कुमार मिश्रा सवाल पूछते हैं कि कर्नाटक के लिए तो ये अच्छा फैसला है जिसकी तारीफ होनी चाहिए, लेकिन कोई यूपी के डॉक्टरों की भी सुनने के लिए तैयार है?
उत्तर प्रदेश में प्राइवेट, गवर्नमेंट मिलाकर 40 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं. यहां 2500 से ज्यादा इंटर्न डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इंटर्नशिप करने वाले इन डॉक्टरों को महज 7500 रुपये हर महीने का स्टाइपेंड दिया जाता है, जो देश में सबसे कम है. या कहें तो एक दिहाड़ी कामगार से भी कम मेहनताने में इन्हें काम करना पड़ रहा है.
दूसरे प्रदेशों में इससे दो दो गुना या ढाई गुना ज्यादा स्टाइपेंड है. मसलन, सेंट्रल मेडिकल कॉलेजों में 23 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जा रहा है. वहीं पश्चिम बंगाल में 16,590, कर्नाटक में अब 30,000, पंजाब में 15 हजार और बाकी के राज्यों में भी स्टाइपेंड उत्तर प्रदेश से ज्यादा ही है.
कोरोना वायरस की इस महामारी में ये डॉक्टर फ्रंटलाइनर्स की भूमिका में हैं. अस्पतालों में स्क्रीनिंग का जिम्मा भी इनके हाथ में ही होता है. यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन के स्टेट प्रेसिडेंट नीरज कुमार मिश्रा बताते हैं कि एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेटर भी लिखा है, जिसमें बताया गया है कि आपदा के इस दौर में इंटर्न डॉक्टर पूरी शिद्दत से जुटे हैं लेकिन स्टाइपेंड के नाम पर उन्हें एक दिहाड़ी कामगार से भी कम स्टाइपेंड पर काम करना दुखद है.
बता दें कि इन इंटर्न डॉक्टरों को नॉर्मल वर्क ऑवर में 12 से 16 घंटे का काम करना होता है, इमरजेंसी ड्यूटी के दौरान 24 घंटे की ड्यूटी होती है. ये डॉक्टर तकरीबन वो सारे काम करते हैं जो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर्स करते हैं. जैसे पेशेंट की सैंपलिंग, पेशेंट को एडमिट करना और मैनेजमेंट पार्ट के काम करने होते हैं. ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये महज 250 रुपये हर रोज का मेहनताना डिजर्व करते हैं?
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