देश भर में मजदूर लॉकडॉउन होने के चलते मजदूर पैदल ही अपने गांव-कस्बों की तरफ जाने को मजबूर हैं. इस बीच कर्नाटक सरकार ने 48 घंटे के लिए ट्रेन रोक दीं. इसके चलते बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों ने झारखंड, बिहार जैसे दूर-दराज के इलाकों में पैदल चलना शुरू कर दिया. द क्विंट ने इन मजदूरों का हाल-चाल जानने की कोशिश की.
उत्तप्रदेश के प्रवासी मजदूर आदर्श अपनी बात कहते हुए भावुक हो जाते हैं. वो कहते हैं कि उनकी जेब में पांच रुपये तक नहीं बचे. आदर्श ने सुबह से खाना भी नहीं खाया. अपनी बेबसी बताते हुए उनका गला रुंध जाता है.
प्रवासी मजदूर राजेश पासवान आधे रास्ते में पहुंच चुके हैं, वो बताते हैं कि अब वापसी विकल्प नहीं है. वापस जाने के लिए भी उतना ही चलना होगा. इसलिए आगे बढ़ेंगे.
प्रवासी मजदूर भुवन बताते हैं कि उनसे दस तारीख को किराया मांगने के लिए मकान मालिक आ जाते. इसलिए उन्होंने साधन न होने के चलते पैदल ही अपने राज्य बिहार की ओर साथियों के साथ चलना शुरू कर दिया.
कई मजदूरों ने इसलिए पैदा चलना शुरू किया क्योंकि उन्हें डर था कि अगर वे लॉकडॉउन में ट्रेन के लिए रुक भी जाते हैं, तो भी मुश्किल है कि उनका नंबर आएगा. मजदूर रास्ते में मिलने वाले मददगारों के भरोसे ही जी रहे हैं.
कई मजदूर कर्नाटक-आंध्रप्रदेश के बॉर्डर पर बचकर निकलने में कामयाब रहे, तो कुछ को पुलिस ने वापस लौटा दिया. पुलिस को साफ निर्देश है कि बिना सही कागजातों के किसी को आंध्रप्रदेश में ना आने दिया जाए.
मजदूरों की सिर्फ एक ही आशा है कि वे किसी तरह घर पहुंच जाएं!
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