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यूपी में इंटर्न डॉक्टरों को दिहाड़ी मजदूरों से भी कम मेहनताना  

कोरोना काल में 250 रुपये हर रोज पर काम करने वाले यूपी के इन इंटर्न डॉक्टरों का दर्द जानिए

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हम लोग हॉस्पिटल में हर रोज 10-12 घंटे इमरजेंसी ड्यूटी कर रहे हैं, हमें हर रोज का महज 250 रुपये स्टाइपेंड मिलता है
इंटर्न डॉक्टर, मोती लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज
हमें ड्यूटी में ज्यादा घंटे देने से कोई दिक्कत नहीं, हम अपने काम को लेकर संवेदनशील हैं लेकिन क्या सरकार भी संवेदनशील है.
इंटर्न डॉक्टर, राजकीय मेडिकल कॉलेज, आजमगढ़
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ये सवाल है उत्तर प्रदेश के इंटर्न MBBS डॉक्टरों की. ऐसे समय में जब कोरोनावायरस के कारण पूरा देश लॉकडाउन में हैं. सामने से जो इस महामारी का मुकाबले कर रहे है वो हैं डॉक्टर, नर्स और पूरी मेडिकल टीम, जिन्हें वॉरियर्स का नाम भी दिया जा रहा है. इनकी खूब तारीफें हो रहीं हैं, लेकिन यूपी के ये इंटर्न डॉक्टर्स कर्तव्य के साथ कुछ 'अधिकारों' की भी मांग कर रहे हैं.

MBBS की पढ़ाई में 4.5 साल का कोर्स होता है वहीं 1 साल की इंटर्नशिप होती है. इंटर्नशिप के दौरान इन्हें मेडिकल कॉलेजों के अलग-अलग डिपार्टमेंट में ड्यूटी करनी होती है.
कोरोना काल में 250 रुपये हर रोज पर काम करने वाले यूपी के इन इंटर्न डॉक्टरों का दर्द जानिए
MBBS की पढ़ाई में 4.5 साल का कोर्स होता है वहीं 1 साल की इंटर्नशिप होती है. इंटर्नशिप के दौरान इन्हें मेडिकल कॉलेजों के अलग-अलग डिपार्टमेंट में ड्यूटी करनी होती है.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

आखिर यूपी में ही क्यों इतना कम है स्टाइपेंड?

उत्तर प्रदेश में प्राइवेट, गवर्नमेंट मिलाकर 40 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं. यहां 2500 से ज्यादा इंटर्न डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इंटर्नशिप करने वाले इन डॉक्टरों को महज 7500 रुपये हर महीने का स्टाइपेंड दिया जाता है, जो देश में सबसे कम है.

दूसरे प्रदेशों में इससे दो गुना या ढाई गुना ज्यादा स्टाइपेंड है. मसलन, सेंट्रल मेडिकल कॉलेजों में 23 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जा रहा है. वहीं पश्चिम बंगाल में 16,590, पंजाब में 15 हजार और बाकी के राज्यों में भी स्टाइपेंड उत्तर प्रदेश से ज्यादा ही है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, स्टूडेंट मेडिकल नेटवर्क का तो कहना है कि प्रदेश के कुछ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में महज 6 हजार स्टाइपेंड दिया जा रहा है, वहीं कुछ कॉलेजों में तो बिना स्टाइपेंड ही इंटर्नशिप कराई जा रही है. एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेटर भी लिखा है जिसमें सारी दिक्कतों को साझा कर स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग की गई है.

द क्विंट ने यूपी के अलग-अलग मेडिकल कॉलेज के ऐसे इंटर्न डॉक्टरों से बातचीत की. इन सभी का कहना है कि पिछले 10 साल से ये स्टाइपेंड ज्यों का त्यों हैं, इसमें कोई इजाफा नहीं हुआ है. काम बढ़ता जा रहा है, लेकिन हमें दिया जाने वाला मानदेय वैसे का वैसा ही बना है.
कोरोना काल में 250 रुपये हर रोज पर काम करने वाले यूपी के इन इंटर्न डॉक्टरों का दर्द जानिए
द क्विंट ने यूपी के अलग-अलग मेडिकल कॉलेज के ऐसे इंटर्न डॉक्टरों से बातचीत की.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन के स्टेट प्रेसिडेंट नीरज कुमार मिश्रा बताते हैं कि एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेटर भी लिखा है, जिसमें बताया गया है कि आपदा के इस दौर में इंटर्न डॉक्टर पूरी शिद्दत से जुटे हैं लेकिन स्टाइपेंड के नाम पर उन्हें एक दिहाड़ी कामगार से भी कम स्टाइपेंड पर काम करना दुखद है.

रिस्क फैक्टर अगर हम देखें तो इंटर्न्स की जॉब प्रोफाइल के हिसाब से ये सबसे ज्यादा रिस्क में हैं. ये फ्रंटलाइनर्स हैं, ग्राउंड पर मौजूद हैं और सभी मरीजों को देखते हैं, हमारी यही अपील है कि इन लोगों को काम के रिस्क के हिसाब से और मोटिवेशन के लिए बाकी राज्यों या केंद्रीय मेडिकल कॉलेजों में मिलने वाले स्टाइपेंड के बराबर भी मिले. 
नीरज कुमार मिश्रा, स्टेट प्रेसिडेंट, यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन
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कोरोना वायरस से लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं ये वॉरियर

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एक इंटर्न डॉक्टर समझाते हैं कि आखिर कैसे कोरोना वायरस से लड़ाई में ये लोग फ्रंट में खड़े हैं.

कोविड-19 महामारी के वक्त हमें स्क्रीनिंग का जिम्मा मिला हुआ है. जो भी पेशेंट आते हैं, उनके लक्षण हम पूछ-जांचकर ये तय करते हैं कि उन्हें नॉर्मल वॉर्ड में भेजना है, आइसोलेशन में भेजना है या किसी और डिपार्टमेंट में.
इंटर्न डॉक्टर, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर
कोरोना काल में 250 रुपये हर रोज पर काम करने वाले यूपी के इन इंटर्न डॉक्टरों का दर्द जानिए
(फोटो: PTI)
प्रतीकात्मक तस्वीर

ये फिलहाल पूरे यूपी का प्रोटोकॉल है, कोरोना के वक्त लेवल-1 का काम इंटर्न के ही जिम्मे होता है, ऐसे में संक्रमितों से भी मुलाकात सबसे पहले हम लोगों की ही होती है. बता दें कि इन इंटर्न डॉक्टरों को नॉर्मल वर्क ऑवर में 12 से 16 घंटे का काम करना होता है, इमरजेंसी ड्यूटी के दौरान 24 घंटे की ड्यूटी होती है. ये डॉक्टर तकरीबन वो सारे काम करते हैं जो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर्स करते हैं. जैसे पेशेंट की सैंपलिंग, पेशेंट को एडमिट करना और मैनेजमेंट पार्ट के काम करने होते हैं. कुल मिलाकर सवाल बस यही है कि आखिर ऐसे दौर में इन कोरोना वॉरियर्स के साथ आखिर ऐसा बर्ताव क्यों हो रहा है?

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