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खरगोन में रामनवमी जुलूस के दौरान ऐसा क्या हुआ कि हिंसा भड़क गई?-ग्राउंड रिपोर्ट

Khargone Communal Violence: "पुलिस को दो बार फोन किया, लेकिन वो नहीं आए"- नवाब खान

विष्णुकांत तिवारी
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Khargone में रामनवमी जुलूस के दौरान ऐसा क्या हुआ कि हिंसा भड़क गई?-ग्राउंड रिपोर्ट</p></div>
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Khargone में रामनवमी जुलूस के दौरान ऐसा क्या हुआ कि हिंसा भड़क गई?-ग्राउंड रिपोर्ट

(फोटो-: Altered by The Quint)

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''अगर सरकार और पुलिस रामनवमी के जुलूस (Ram Navami procession) को मैनेज नहीं कर सकती तो वो परमिशन क्यों देती हैं? हमारा जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कौन करेगा?'' मध्य प्रदेश में खरगोन (Khargone, Madhya Pradesh) के संजय नगर इलाके की निवासी संगीता यादव रोते हुए ये सवाल पूछती हैं.

संगीता का घर उन 26 घरों में से है जिन्हें रविवार 10 अप्रैल को खरगोन में रामनवमी के जुलूस के दौरान शुरू हुए साम्प्रदायिक झगड़े में जला दिया गया.

लेकिन रविवार को हुए इस संघर्ष की जमीन उसी दिन पहले से ही तैयार की जा चुकी थी, जब सुबह करीब 11 बजे पहला जुलूस तालाब चौक से गुजरा था.

रघुवंशी समाज जिसकी आबादी खरगोन में बहुत कम है, इसके द्वारा आयोजित जुलूस जब तालाब चौक के करीब पहुंचा तो वहां पुलिस बैरिकेडिंग की वजह से उन्हें रुकना पड़ा. जुलूस में शामिल लोगों ने बैरिकेडिंग को लेकर ये दावा करते हुए आपत्ति जताई कि इसे लगाने से इतनी भी जगह नहीं छूटी है, जिससे जुलूस को घूम कर आ सके.

तनाव क्यों और कैसे बढ़ा?

क्विंट से बात करते हुए पहले जुलूस के आयोजक मनोज रघुवंशी ने कहा, रैली के सदस्य मांग कर रहे थे कि बैरिकेड को पीछे हटाया जाए जिससे जुलूस के लिए जगह बन सके.

उन्होंने आगे कहा, बैरिकेडिंग को लेकर हल्की सी मौखिक लड़ाई हुई थी और जिले के बीजेपी अध्यक्ष श्याम महाजन भी मौके पर पहुंचे थे. इसके बाद श्याम की एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस नीरज चौरसिया से तीखी बहस हो गई. हालांकि जब वरिष्ठ अधिकारी इसमें शामिल हो गए, तब हमें घूमकर आने के लिए जगह दे दी गई और इसके बाद हम शहर के राम मंदिर तक पहुंचे. हमने यहां भंडारा रखा और इसके बाद सब अपने अपने घर चले गए.

रघुवंशी ने दावा किया इस झड़प ने शायद उनके समुदाय के दूसरे लोगों को अलर्ट कर दिया और इसलिए जब दिन में दूसरी बार रैली निकाली गई तो इसके सदस्य बहुत ज्यादा उग्र हो गए.

जब दूसरे जुलूस में तालाब चौक के पास जामा मस्जिद के करीब लोग इकट्ठा हुए तब तक स्थिति तनावपूर्ण हो गई.

शाम के करीब 5 बजे जब चौक के पास जुलूस बढ़ने लगा तब यहां झगड़े शुरू हो गए. पुलिस ने चौक पर भीड़ को तितर बितर करने की कोशिश की. इसके बाद संजय नगर, काज़ीपुरा और तावड़ी इलाके में पथराव और आगजनी के कई मामले सामने आने लगे.

खरगोन पुलिस स्टेशन के इंचार्ज बीएल मंडलोई के मुताबिक, जुलूस को दोपहर दो से तीन बजे के बीच वहां से निकलना था, लेकिन इसमें शाम 5 बजे तक की देरी हुई

मंडलोई जिन्हें खुद भी इस पथराव में चोट लगी, उन्होंने बताया, जुलूस में 1000 से भी ज्यादा लोगों की भीड़ थी, जब तनाव बढ़ा और पथराव की घटना हुई, तब ये लोग मस्जिद के पास थे.

वहीं संगीता पूछती हैं कि जब सरकार जानती थी कि वो जुलूस को नियंत्रित नहीं कर पाएगी, तो सबसे पहले इसकी इजाजत ही क्यों दी गई? अब हमने जो सबकुछ खो दिया, वो कौन वापस करेगा? क्या सरकार इसकी भरपाई करेगी या वो राम भक्त जिन्होंने ये जुलूस निकाला था.

पुलिस को दो बार फोन किया, लेकिन वो नहीं आए

रामनवमी के दिन हुए संघर्ष के बाद खरगोन में आगजनी और पथराव की कई घटनाएं हुईं जिसमें संपत्ति, घरों और दोनों समुदाय के लोगों की आजीविका का भारी नुकसान हुआ है.

क्विंट से बात करते हुए संजय नगर इलाके की निवासी मंजू बाई ने कहा, हम नहीं जानते कि कब ये संघर्ष शुरू हुआ, लेकिन हमने देखा कि घरों पर पथराव किया जाने लगा और एक दो मंजिला घर को आग के हवाले कर दिया गया.

मंजू बाई ने बताया, मैं अपनी बेटी के साथ थी, मेरा बेटा जुलूस देखने गया था और मेरे पति काम पर गए थे. अचानक सबलोग चिल्लाने लगे, भागो, जान बचाओ. हमने ये सब सुना और इसके बाद जो चीज हमने देखी वो ये कि अचानक हमारे घर की पिछली तरफ से पत्थरों की बरसात होने लगी. मैं अपनी बेटी को लेकर अपना घर छोड़ जान बचाने के लिए भागी. जब वो आए और घर में रखा सबकुछ जला दिया, तब हम वहां नहीं थे.
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जहां मंजू बाई को अपना घर छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया गया. संजय नगर इलाके के लिए एक अन्य निवासी नवाब खान के साथ भी ऐसा ही हुआ. उन्हें भी अपना घर छोड़कर भागना पड़ा. जब दंगाइयों ने उनके घर में घुसने की कोशिश की.

नवाब खान कहते हें, दूसरे घरों से लोग निकलने लगे और उन्होंने खुद को लॉक करना शुरू कर दिया. हमें लगा कि कुछ होने वाला है, लेकिन जब तक हम कुछ समझ पाते, चारों तरफ से पथराव होने लगा. मैं घर में अकेला था और मैंने खुद को लॉक कर लिया. कुछ देर बाद जब वो घर के दरवाजे को पीटने लगे और घर को आग लगाने की कोशिश की तब मैंने पुलिस को फोन किया.

मैंने उन्हें दो बार फोन किया, लेकिन वो नहीं आए. वो कहते रहे कि हम आ रहे हैं, लेकिन रात 1 बजे तक कोई नहीं आया. इस वक्त तक तनाव बहुत बढ़ गया था. मुझे अपनी जान का डर लगने लगा और फिर मैं अपने घर के पिछले हिस्से से निकलकर वहां से भागा.

पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, संघर्ष के बाद 10 और 11 अप्रैल की बीच की रात को 26 घरों, 10 बाइकों और एक गोदाम को जला दिया गया.

ढहाए गए घर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने थे

इसके एक दिन बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया से कहा, मध्य प्रदेश की धरती पर दंगाइयो के लिए कोई जगह नहीं है. इन दंगाइयों की पहचान कर ली गई है और इन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.

इस बीच मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा, जिस घर से पत्थर आए हैं, उस घर को ही पत्थर का ढेर बनाएंगे. इन बयानों के बाद सोमवार 11 अप्रैल को जिला प्रशासन ने संघर्ष में शामिल होने का हवाला देकर 16 घरों और 29 दुकानों को ढहा दिया.

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, तोड़—फोड़ की ये कार्रवाई जिन घरों पर हुई है, वो सभी अल्पसंख्यक समुदाय के थे.

खसखसवाड़ी इलाके के निवासी अमजद खान का घर भी उन 12 घरों में से था जिन्हें जिला प्रशासन ने ढहा दिया. सांप्रदायिक संघर्ष की घटना के बाद उनके घर को तोड़ दिया गया. अमजद का दावा है कि उनका मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया था.

भरी हुई आवाज में अमजद खान कहते हैं, वो 5 से 6 बुलडोजर के साथ आए और उन घरों को तोड़ दिया जिसके लिए उन्होंने खुद मंजूरी और पैसे दिए थे.

मेरा घर कच्चा घर था और पीएम आवास योजना के तहत जो पैसे मिले, उससे मैंने इसे पक्का करवाया था. हर कोई कह रहा है कि मेरा घर पथराव करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के तहत तोड़ा गया, लेकिन मैंने कोई पथराव नहीं किया. मैं उस इलाके से एक किलोमीटर दूर रहता हूं. मैं दिहाड़ी मजदूर हूं और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मुझे हर दिन काम करना होता है. मैं एक दिन की भी छुट्टी नहीं ले सकता.

जिला प्रशासन का दावा है कि उन्होंने अवैध निर्माण को ढहाया है, जो अतिक्रमण की हुई जमीन पर बनाए गए थे.

खरगोन के जिलाधिकारी अनुग्रह पी का दावा है कि ये नाम पहले से लिस्ट में थे, वो लोग जिन्होंने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर घर या दुकानें बनाई हुई थीं और संयोग से इनमें से ज्यादातर दंगों में भी शामिल थे.

ये डिमोलिशन ड्राइव पूरी तरह से कानूनी है और सभी को पहले से नोटिस दिया जा चुका था.

यहां बता दें कि सदूल्ला बेग जिनका घर पिछले एक साल में दूसरी बार तोड़ा गया, उन्होंने कहा कि वो दंगाई नहीं हैं, बल्कि हर दिन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

उन्होंने रोते हुए कहा, ''मेरा घर पिछले साल ये कहकर ढहा दिया गया था कि इसका एक हिस्सा सरकारी जमीन पर बनाया गया है. वो आए, घर का अगला हिस्सा तोड़ दिया और घर की सीमा निर्धारित कर दी.

फिर इस बार भी वो आए और मेरा घर ढहा दिया. मैं अपने चार बच्चों के साथ रहता हूं, उन्होंने सबकुछ तबाह कर दिया. अब मैं अपने बच्चों को लेकर कहां जाऊं.''

मंगलवार 12 अप्रैल तक चली तोड़ फोड़ की इस कार्रवाई के अलावा हिंदू समुदाय की तरफ से 25 एफआईआर दर्ज की गई है. वहीं एक एफआईआर मुस्लिम समुदाय की शिकायत पर दर्ज की गई है.

पुलिस ने बताया कि कुल 89 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इनमें से 70 को जेल भेजा गया है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने खरगोन में अपना पहला क्लेम्स ट्रिब्यूनल बनाया है, जहां लोग, दोषियों से अपनी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए क्लेम कर सकते हैं.

खरगोन दंगों के बाद मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुकसान की वसूली अधिनियम 2021 के सेक्शन 4 के तहत इस ट्रिब्यूनल को बनाया गया है.

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Published: 13 Apr 2022,06:14 PM IST

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