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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
उम्मीद थी कि शायद 3 मई के बाद लॉकडाउन खत्म होगा, लेकिन सरकार ने तय किया है कि ये दो हफ्ते और जारी रहेगा... यानी अब 17 मई तक लॉकडाउन... केंद्र सरकार ने ये बड़ा फैसला लिया, उससे पहले एक और अच्छी खबर अलग-अलग जगह फंसे मजदूरों के लिए आई. केंद्र सरकार ने स्पेशल ट्रेन चलाने को हरी झंडी दिखा दी है. लेकिन इन सबके बीच कुछ चिंताएं, सवाल और जमीनी हकीकत को लेकर असमंजस भी है. सिर्फ उत्तर-प्रदेश, बिहार और झारखंड के ही 58 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं और राज्य सरकारों के सामने बड़ी चुनौती है.
आइए जानते हैं इन राज्यों की क्या तैयारी है.
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान ही करीब 6 लाख लोग वापस घर आ चुके हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बिहार, दिल्ली, बिहार, पंजाब, MP और झारखंड की तरह ही प्रवासियों के लिए नोडल ऑफिसर नियुक्त किए हैं.
साथ ही यूपी सरकार ने बाहर से आने वालों के लिए दो बार चेकअप करने की व्यवस्था की बात की है. वापस आने वाले लोगों को क्वॉरन्टीन सेंटर में रखा जाएगा. यूपी सरकार ने दावा किया है कि उन्होंने 15 लाख प्रवासियों के लिए रोजगार का इंतजाम भी कर लिया है. लेकिन सवाल ये है कि जिस उत्तर प्रदेश में 34 लाख बेरोजगार पहले से मौजूद हों, वहां 15 लाख लोगों के लिए रोजगार कैसे तैयार हो गया.
सीएम नीतीश कुमार के मुताबिक, बिहार के 25 से 30 लाख प्रवासी मजदूर बाहर हैं. जिसमें से करीब 22 लाख ने सरकार से मदद मांगी है. सरकार ने तैनात नोडल अधिकारियों से लोगों की लिस्ट तैयार करने को कहा है. नियम के मुताबिक, बाहर से आने वालों को दो हफ्ते तक क्वॉरन्टीन में रहना जरूरी है.
ऐसे में अगर 25 लाख लोग वापस आते हैं, तो क्या उनके क्वॉरन्टीन में रखने की बिहार सरकार के पास व्यवस्था है? लाखों की संख्या में आने वाले मजदूरों को सरकार के पास कब तक खिलाने की व्यवस्था है?
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, कि अभी सभी राज्य सरकारों से बात चल रही है, जो भी फैसला होगा वो खुद सामने आकर बताएंगे, साथ ही साथ केजरीवाल ने लोगों से सब्र बनाए रखने की अपील भी की. दरअसल, केंद्र सरकार का आदेश है किसी भी राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले लोगों की अच्छी तरह स्क्रीनिंग की जाए प्रवासी मजदूरों और छात्रों को वापस राज्यों में भेजने के लिए दिल्ली सरकार अब बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग की तैयारी में जुटी है, ये कहां होगा कैसे होगा?अभी इसे तय करना होगा. साथ ही दिल्ली के अलग-अलग कोने में रह रहे हर एक कामगारों को कैसे जानकारी दी जाए, कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए उन्हें स्क्रीनिंग के लिए बुलाया जाए और फिर घर भेजा जाए ये दिल्ली सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी.
लॉकडाउन में पहले भी देखा जा चुके है कि कैसे फेक न्यूज की वजह से दिल्ली के आनंद विहार में भारी भीड़ जुट गई थी, बांद्रा में मजदूरों का सैलाब उमड़ पड़ा. ऐसे में फेक न्यूज से लड़ना और सही व्यक्ति को सही जानकारी दे पाना ये भी केजरीवाल के लिए चुनौती है.
इस बीच दिल्ली में रहने परिवारों के लिए अच्छी खबर ये है कि केजरीवाल सरकार ने कोटा में तैयारी कर रहे बच्चों को वापस बुलाने के लिए 40 बसें भेज दी हैं.
एक और बड़ा मसला है जिससे दिल्ली समेत हर राज्य को इस ऐलान के बाद जूझना होगा.इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक, देश में हर साल करीब 90 लाख लोग एक राज्य से दूसरे राज्य रोजगार की तलाश में जाते हैं. इसमें कुछ सालों के आंकड़ों को जोड़ दें तो यह साफ है कि देशभर में लॉकडाउन की घोषणा के बाद करोड़ों ऐसे होंगे. ग्रीन जोन में कल कारखाने खोलने की इजाजत दी जा रही है. लेकिन सवाल ये है कि जब मजदूर अपने गांव जा रहे हैं तो फैक्ट्रियों में काम कौन करेगा?
महाराष्ट्र में करीब 5 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों ने राज्य सरकार के राहत शिविरों में सहारा लिया हुआ है. सरकार के अधिकारियों ने क्विंट को बताया कि जिला कलेक्टर्स को ऐसे सभी प्रवासी मजदूरों की सूची बनाने के लिए कहा गया है. वो किस राज्य से हैं, कहां रहते हैं, घर का पता, फोन नंबर की लिस्ट बनाने के बाद, वो जिस राज्य के रहने वाले हैं, वहां के जिला अधिकारी को इस बारे में जानकारी दी जाएगी. वहां से हरी झंडी आने के बाद ये प्लान किया जाएगा कि उन्हें कैसे भेजना है. अधिकारियों का कहना है कि मजदूरों को जिस राज्य में भेजना है, वहां की सरकार की सुविधाओं, क्वॉरन्टीन फैसिलिटी को देखते हुए प्लान बनाना होगा.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि राहत शिविरों में रह रहे मजदूरों का डेटा सरकार के पास है, लेकिन राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे भी मजदूर फंसे हैं, जो राहत शिविरों में नहीं हैं. तो ऐसे में सरकार कैसे इन तक पहुंचेगी?
अब बात झारखंड की... यहां के करीब 8 लाख मजदूर बाहर हैं. 1200 मजदूर हैदराबाद से शुक्रवार की रात श्रमिक स्पेशल ट्रेन से रांची लौट रहे हैं. लेकिन सब लोगों को लाना टेढ़ी खीर है. 2.9 लाख मजदूरों ने झारखंड सरकार ऐप पर खुद को रजिस्टर्ड किया है. बाकी के नंबर जुटा कर जिन राज्यों में वो हैं, वहां से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है. जाहिर है इसमें लंबा वक्त लग सकता है.
जो लोग हैदराबाद से हटिया पहुंच रहे हैं, उनके लिए 60 बसों का इंतजाम किया गया है, जिनसे उन्हें उनके गृह जिला भेजा जाएगा. वहां वो ब्लॉक लेवल पर बने क्वॉरन्टीन सेंटर में रहेंगे. लेकिन बिहार की तरह झारखंड में भी मेडिकल सिस्टम की हालत खस्ता है. पूरे राज्य में आईसीयू बेड महज 239, नॉन आईसीयू बेड सिर्फ 1603 और वेंटिलेटर सिर्फ 206 है, तो इतनी बड़ी तादाद में मजदूरों के आने के बाद संक्रमण फैला तो सरकार किस तरह संभालेगी... बड़ा सवाल है.
ऐसे ही कई सवाल देश के दूसरे राज्यों के भी हैं. चलिए जानते हैं महाराष्ट्र की क्या तैयारी है.
महाराष्ट्र में जहां सरकार के सामने कई सवाल हैं, तो पड़ोसी राज्य गुजरात का हाल भी कुछ अलग नहीं है. गुजरात में, खासतौर पर सूरत में लाखों प्रवासी मजदूर फंसे हैं. सूरत से मजदूरों के प्रदर्शन को लेकर भी कई खबरें आई थीं. यहां जो मजदूर फंसे हैं, उनमें से ज्यादातर ओडिशा से हैं. कुछ दिन पहले ही, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और गुजरात के सीएम विजय रुपाणी के बीच इसे लेकर बात हुई थी कि मजदूरों को कैसे वापस भेजा जाए.
गुजरात के अधिकारियों ने बताया कि प्रवासी मजदूर जहां रहते हैं, वहां बस स्टॉप बनाए जा रहे हैं और उन्हें बसों में बैठाने से पहले उनकी स्क्रीनिंग की जा रही है. ये भी खबर सामने आई है कि कुछ जगहों पर प्राइवेट बसों के जरिए आवाजाही हो रही है और ये बसें मजदूरों से पैसे ले रही हैं. लेकिन एक महीने से ज्यादा से बेरोजगार बैठे मजदूर किराए के लिए पैसा लाएं तो कहां से लाएं.
नोडल अधिकारी धनंजय दिवेदी ने बताया है कि राज्य, मजदूरों को टुकड़ों में आने के लिए कह रहे हैं. इसलिए इंटर-स्टेट पास भी इसी तरह से दिए जाएंगे. पास देने के लिए इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि प्रवासी जिस राज्य में जा रहे हैं, वहां क्वॉरन्टीन सुविधाओं का क्या हाल है. इस पास के लिए लोग अब ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं.
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