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यूपी और एमपी ने अपने यहां श्रम कानूनों में ढील दी है. मकसद बताया है कि कोरोना के कारण आए आर्थिक संकट के दौर में इडस्ट्री को बूस्ट चाहिए. इंडस्ट्री लेबर कानून में हुए बदलावों का स्वागत कर रही है, लेकिन मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने वालों का कहना है कि कानून में जो बदलाव हुए हैं वो हमें 100 साल पीछे ले जाते हैं.
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लेबर कानूनों में क्या बदलाव हुए वो आप यहां पढ़ सकते हैैं.
इंडस्ट्री का मानना है कि कोरोना वायरस के बाद जो लॉकडाउन हुआ है उससे इंडस्ट्री की कमर टूट गई है. प्रोडक्शन एक झटके में बंद पड़ गया. अब कोरोना में नई व्यवस्था के साथ काम फिर से शुरू हो रहा है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग, कम वर्कफोर्स जैसी सावधानियों के साथ काम करना पड़ रहा है. भोपाल के एसोसिएशन ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के आदित्य मोदी बताते हैं कि कोरोना आने के बाद से इंडस्ट्री में बहुत सारी परिस्थितियां बदली हैं. इसके बाद सरकार ने जो लेबर कानूनों में बदलाव लाए हैं ये काफी अच्छे हैं और प्रैक्टिकल हैं.
मजदूरों के अधिकारों की बात करने वाले संगठन इसे एक पैटर्न का हिस्सा बता रहे हैं. उनका मानना है कि सरकार जिन लेबर कानूनों को कई साल से खत्म करने की कोशिश कर रही थी, अब वही करने के लिए उसे कोरोना संकट का बहाना मिल गया है. ये भी मानते हैं कि इकनॉमी को फिर से पटरी पर लाया जाए लेकिन ये काम मजदूरों के अधिकारों के कीमत पर नहीं होना चाहिए.
माइग्रेंट लेबर एक्टिविस्ट राजेंद्र नारायण बताते हैं कि लेबर कानूनों में जो बदलाव हुए हैं वो हमें करीब 100 साल पीछे ले जाते हैं. ये संशोधन कई तरह के शोषण का दरवाजे खोलता है. राजेंद्र का मानना है कि अभी तक जो कानून थे अगर अब वो नहीं रहेंगे तो मजदूरों के पास अपने अधिकारों के लिए लड़ने का कोई आधार नहीं रह जाएगा.
ट्रेड यूनियन संगठन AICCTU के जनरल सेक्रेट्री राजीव ढीमरी बताते हैं कि सरकार पिछले 6 साल से 44 लेबर कानूनों को खत्म करके 4 कोड बनाने की कोशिश कर रही है. इस पर मजदूर संगठनों की सरकार से काफी वक्त तक चर्चा भी हुई. हम मानते थे ये मजदूर को दास बनाने वाला कानून हो जाएगा. राजीव बताते हैं कि केंद्र ने राज्य सरकारों को छूट दे दी कि आप इसमें बदलाव करते रहें. हम जानते हैं कि कोरोना संकट आने के पहले से ही इकनॉमी की हालत खस्ता थी. अब कोरोना के बाद स्थितियां भयानक रूप से बिगड़ गई हैं. लेकिन इसका भार मजदूर वर्ग पर डाला जा रहा है. अब इकनॉमी के संकट का बहाना लेकर मजदूरों के अधिकारों को छीनने का काम किया जा रहा है.
वकील संजॉय घोष भी राज्य सरकारों के इस फैसले को चौंकाने वाला बताते हैं. उनका मानना है कि इस तरह से पहले कभी नहीं हुआ है. इससे मजदूरों का शोषण बढ़ेगा और इंडस्ट्री का एम्पलॉई पर होने वाला खर्च घट जाएगा. अभी तक हमारे पास संशोधन क्या-क्या हुए हैं उसकी पूरी जानकारी नहीं है. ये कानून बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं और अगर इसमें बदलाव किया जाता है तो ये ठीक नहीं है
तमाम लेबर संगठनों का कहना है कि अभी लेबर कानून में बदलावों को हम पढ़कर समझ रहे हैं कि इसके कितने दुष्परिणाम हो सकते हैं लेकिन जब ये अमल में लाए जाएंगे तो इसमें से कई सारी दिक्कतें उभरकर आने वाली हैं. इन संशोधनों का ऑपरेशनल हिस्सा काफी मुश्किल भरा रहने वाला है.
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