उत्तर प्रदेश सरकार ने 7 मई को अगले 3 साल के लिए कारोबारों को लगभग सभी लेबर लॉ के दायरे से बाहर रखने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी है.
अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, एक प्रेस स्टेटमेंट में बताया गया है कि सरकार ने ''उत्तर प्रदेश टेंपररी एग्जेम्प्शन फ्रॉम सर्टेन लेबर लॉज ऑर्डिनेंस 2020'' को मंजूरी दे दी है.
स्टेटमेंट में कहा गया है कि राज्य में केवल बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996, वर्कमैन कम्पनसेशन एक्ट 1923, बॉन्डेड लेबर सिस्टम (अबॉलिशन) एक्ट 1976 और पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936 का सेक्शन 5 लागू होगा.
स्टेटमेंट में यह भी बताया गया है कि श्रम कानूनों के बच्चों और महिलाओं से संबंधित प्रावधान भी जारी रहेंगे. बाकी श्रम कानून निष्प्रभावी हो जाएंगे. इनमें औद्योगिक विवादों को निपटाने, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों की स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति और ट्रेड यूनियनों, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून शामिल हैं.
उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी आरके तिवारी के बताया कि इस अध्यादेश को अब केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए उसके पास भेजा जाएगा.
बताया जा रहा है कि यह अध्यादेश राज्य में पहले से मौजूद कारोबारों और स्थापित हो रही नई फैक्ट्रियों, दोनों पर लागू होगा.
प्रेस स्टेटमेंट में कहा गया है, ''COVID -19 के प्रकोप के चलते राज्यों में बागवानी और आर्थिक गतिविधियां गंभीर रूप से प्रभावित और धीमी हुई हैं.''
इस मामले पर आरके तिवारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ''विचार यह है कि मौजूदा परिस्थितियों में, जहां हमें पहले के रोजगारों को बचाने और उन श्रमिकों को रोजगार देने की जरूरत है जो राज्य में वापस आ गए हैं, कारोबार और उद्योग को कुछ ढील देनी होगी.''
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