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अगर आप आम (mango price) खाने के शौकीन हैं तो इस बार जरा जेब ढीली करने के लिए तैयार रहिए. क्योंकि ‘फलों के राजा’ आम के भाव बढ़ने वाले हैं. क्योंकि आम को ये बात शायद रास नहीं आई कि तेल, गैस और नींबू सब महंगा हुआ जा रहा है तो वो कैसे पीछे रहे. इसलिए इस बार आम की मिठास जैसी भी हो लेकिन महंगाई भरपूर होने की उम्मीद है. ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि इस बार आम महंगा होगा, इसका कारण है देश के सबसे ज्यादा आम उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बेहद कम पैदावार. और कम पैदावार के कई कारण हैं जो हम इस स्टोरी में आपके सामने रखने जा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद का नाम तो आपने सुना ही होगा, वहां का आम काफी फेमस है. मलिहाबाद के अलावा उन्नाव का हसनगंज, हरदोई का शाहबाद, सहारनपुर का बेहट, बाराबंकी, प्रतापगढ़, बुलंदशहर और अमरोहा समेत 14 इलाके ऐसे हैं जो उत्तर प्रदेश में आम की पट्टी के नाम से जाने जाते हैं. लेकिन हर जगह इस बार आम की फसल बेहद कम बताई जा रही है.
मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि, इस बार आम की फसल हर साल के मुकाबले करीब 80 प्रतिशत कम है. उन्होंने बताया कि
जब हमने उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में बागों में जाकर उन बागवानों से बात की जो हर साल आम के बाग की फसल किसान से खरीदकर रखवाली करते हैं और पकाकर फसल बेचते हैं. तो उनमें से सबने कहा कि इतनी कम फसल हमने कभी नहीं देखी.
अमरोहा जिले के गांव मूंढा इम्मा में बुलंदशहर से आकर आम की फसल खरीदने वाले शब्बीर अपने बाग की रखवाली कर रहे थे. पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वो 45 साल से आम आम की पसल खरीदने और बेचने का काम कर रहे हैं. लेकिन इतनी कम फसल कभी हुई हो उन्हें याद नहीं पड़ता. हमने सारी दवाई वही लगाई जो हर बार लगाते थे, फूल भी इस बार पेड़ों पर काफी आया था लेकिन बाद में सब गिर गया और हमें बर्बादी की ओर ले गया.
मूंढा इम्मा में ही शब्बीर के बगल वाला बाग लेकर रखवाली करने वाले हेमराज ने कहा कि
थोड़ी आगे जब हम बढ़े तो एक गांव कटाई पड़ा जहां ठेके पर बाग लेने वाले मुनव्वर से हमारी मुलाकात हुई. उन्होंने कहा कि, हमारे एक बाग में तो इस बार बेहतर फसल है लेकिन बाकी का हाल बुरा है.
मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने क्विंट हिंदी से कहा कि मार्च अप्रैल में टेंपरेचर ज्यादा हो गया, जो सर्दी उस वक्त आम को मिलनी चाहिए थी वो नहीं मिली. जिससे जो फूल पेड़ पर आया था वो गिर गया.
इंसराम अली ने आगे कहा कि, दवाओं की डुप्लीकेसी बहुत ज्यादा बढ़ गई और सरकार उसे रोक नहीं पाई. जिससे जो कीड़ा बाद में पैदा हुआ वो मरा ही नहीं. उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत नुकसान दवाओं की डुप्लीकेसी ने पहुंचाया है. इसको लेकर हमने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को लिखा भी और भारत सरकार के सेक्रेट्री संजय अग्रवाल से हमारी दो राउंड बात भी हुई. उन्होंने वादा किया था कि हम इसको रुकवा देंगे लेकिन वो दवाओं की डुप्लीकेसी रुक नहीं पाई.
मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने कहा कि किसान चाहते हैं कि आम के नुकसान पर इस बार मुआवजा दिया जाये. क्योंकि सरकार फलों पर मुआवजा नहीं देती.
अगर सरकार आम के नुकसान पर मान लीजिए मुआवजा देती है तो एक पेंच फंसेगा कि वो आम किसान किसे माने. क्या सरकार आम किसान उसे माने जिसके नाम पर बाग है या फिर उसे जिसने फसल ठेके पर ली. क्योंकि आमतौर पर उत्तर प्रदेश में क्या होता है कि किसान दो साल के लिए ठेके पर आम की फसल पहले ही बेच देते हैं. ठेकेदार बाद में दवाई से लेकर सारे काम करता है और फायदे नुकसान का मालिक होता है. तो गिरदावरी के वक्त ये तय कर पाना आसान नहीं होगा कि मुआवजा किसे दिया जाये.
उत्तर प्रदेश का दशहरी आम दुनियाभर में फेमस है. यहां सबसे ज्यादा दशहरी आम ही होता है. जो फिलीपींस, मलेशिया, हांगकांग, सिंगापुर और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में खूब जाता है. इसके अलावा यूपी में लखनऊ का सफेदा, चौसा, बॉम्बे ग्रीन, लंगड़ा और फजली आम की पैदावार बड़े पैमाने पर होती है.
आम महंगा होने के कई कारण हैं, पहला तो यही है कि फसल बेहद कम हुई है तो डिमांड के हिसाब से सप्लाई कम होगी तो महंगाई बढ़ना तय है. इसके अलावा डीजल के रेट भी बढ़ गए हैं, जिसकी वजह से ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो गया है. इसका असर भी आम की महंगाई पर पड़ेगा. उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार आम हर साल से 30-35 प्रतिशत महंगा बिक सकता है.
भारत में कम उत्पादन का असर दुनिया पर पड़ना भी तय माना जा रहा है क्योंकि दुनिया का करीब 41 फीसदी आम भारत में ही पैदा होता है. तो अगर भारत में फसल कम हुई तो पूरी दुनिया प्रभावित होगी.
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