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"यहां जिंदगी और मौत का सवाल है. मैं चुराचांदपुर में अपनी पोस्टिंग पर वापस जाने और एक स्थायी जीवन जीने के बजाय, बिना नौकरी के इंफाल में रहना पसंद करूंगा. भले ही मुझे आधा पेट खाना खाना पड़े."
यह बात मणिपुर (Manipur Violence) पुलिस के एक असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से कही. इस स्टोरी के शेष भाग में, उनकी पहचान को बचाए रखने के लिए उनका जिक्र हम 'ऑफिसर M' के नाम से करेंगे.
'ऑफिसर M' उन कई मैतेई पुलिस अधिकारियों में से एक है, जो संघर्षग्रस्त मणिपुर के पहाड़ी जिलों में तैनात थे. कई मैतेई पुलिस अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए खाड़ी इलाके में वापस आ गए हैं. आखिरकार, राज्य ने वह देखा है जिसे केवल मैतेई और कुकी का वास्तविक जातीय विभाजन कहा जा सकता है.
3 मई की शाम को भड़की हिंसा के बाद के दिनों में जनसंख्या का पूर्ण स्थानांतरण हुआ है. वे मैतेई जो चुराचांदपुर जैसे पहाड़ी जिलों में स्थित या तैनात थे, वे इंफाल और उसके आसपास के क्षेत्रों में भाग गए हैं. जबकि इसके विपरीत, इंफाल में जिन कुकीज के घर और नौकरियां थीं, वे सभी पहाड़ियों पर लौट आए हैं.
उदाहरण के लिए, चुराचंदपुर के पुलिस अधीक्षक कार्तिक मल्लादी ने द क्विंट को बताया कि विभिन्न रैंकों के कई पुलिस अधिकारी, यानी लगभग 60 मैतेई, चुराचंदपुर छोड़ चुके हैं. जबकि लगभग वैसे 400 कुकी, जो "अन्य मेइती बहुल जिलों से आए हैं" वे स्थानीय बल की मदद कर रहे हैं.
द क्विंट ने ऐसे ही एक कुकी पुलिस अधिकारी कांस्टेबल, 'ऑफिसर K' से बात की. 'ऑफिसर K' मोइरांग जिले में अपनी पोस्टिंग से चुराचांदपुर लौटे थे. जबकि 'ऑफिसर M' एक मैतेई पुलिस अधिकारी हैं, जो अपनी पोस्टिंग के स्थान चुराचांदपुर को छोड़कर इंफाल लौट आये थे.
इंफाल में पैदा हुए 'ऑफिसर M' पिछले 35 साल से चुराचांदपुर के तुइबोंग में एसपी कार्यालय में तैनात थे. 3 मई को जब हिंसा भड़की, तो तुइबोंग में किराए पर लिए गए उनके दोनों घर "राख में बदल गए".
इन दोनों प्लॉट में उनके परिवार के 15 सदस्य रह रहे थे.
'ऑफिसर M' ने बताया, "4 मई को, हमले की अगली सुबह, एसपी ने मुझे मेरे पूरे परिवार को मिनी सचिवालय ले जाने के लिए कहा. वो जगह बेहद भीड़भाड़ वाला थी, हम में से 15 लोग एक छोटे से कमरे में थे. हम 4 तारीख को नहीं निकल सकते थे क्योंकि हमारे चारों ओर जो कुछ था वो जल रहा था. इसलिए दो दिनों के लिए मेरे परिवार ने मिनी सचिवालय में शरण ली. उस बीच मैंने चुराचांदपुर से कुछ मेइती लोगों को निकालने में मदद की, विशेषकर महिलाओं और वृद्ध नागरिकों को".
दूसरी तरफ 'ऑफिसर K' ने बताया कि उनका अनुभव भी कुछ अलग नहीं था. उन्हें मोइरांग पुलिस स्टेशन में तैनात किया गया था, और 3 मई को, "एक मेइती भीड़ ने गेट तोड़ दिए और मोइरांग में पुलिस स्टेशन के अंदर घुस गए. हमें पहले से सूचना थी कि भीड़ रास्ते में है, और इसलिए हमें अपने सभी हथियारों को छिपाने के लिए इन्फॉर्म किया गया था. जब वे आए, तो उनका ध्यान हम कुकी अधिकारियों पर था. वे चिल्लाने लगे, क्या यहां कोई कुकी पुलिस अधिकारी है?'
उन्होंने बताया कि उनके थाने में काम करने वाले उनके मैतेई दोस्तों ने सुरक्षा के लिए उन्हें जाने के लिए कहा था. 'ऑफिसर K' ने कहा, "लेकिन फिर भी, उन्होंने हमें कोई सुरक्षा नहीं दी. हम मोइरांग थाने से बिना किसी की मदद के खुद ही भाग निकले. हमारे साथ तीन कुकी नागरिक भी थे. उन्हें भीड़ ने बेरहमी से पीटा. हम मैतेई अधिकारी नहीं थे लेकिन हमने उन्हें बचाया और उन्हें प्राथमिक उपचार दिया."
द क्विंट ने चुराचंदपुर के एसपी मल्लादी से पूछा कि मैतेई इलाकों से भागे कुकी पुलिस कर्मियों को सिस्टम में कैसे शामिल किया जा रहा है.
उन्होंने बताया, "अब तक, चुराचंदपुर जिले को छोड़ने वाले मैतेई 'अनौपचारिक/ अनऑफिशियल' रूप से अपने आस-पास के जिला एसपी को रिपोर्ट कर रहे हैं. इसी तरह, घाटी में तैनात कुकी पुलिस अपनी पोस्टिंग छोड़ चुके हैं और चुराचांदपुर या कांगपोकपी, जैसी जगहों पर आ गए हैं."
एसपी मल्लादी ने आगे तर्क दिया, "उन्होंने हमें रिपोर्ट किया है. यदि आवश्यक हो, तो हम उन्हें लॉ-ऑर्डर मेंटेन करने के लिए उनका उपयोग करेंगे. एक पुलिस वाला एक पुलिस वाला होता है, चाहे वह कहीं भी हो, चाहे वह यहां हो या वहां. हम उनका उपयोग कर रहे हैं क्योंकि हमारा वर्कफोर्स वैसे भी कम है और वे हथियार चलाने के लिए पहले से ट्रेंड हैं."
चुराचांदपुर एसपी मल्लादी के मुताबिक, जान बचाकर भागे हुए इन पुलिस अधिकारियों में से कई अपने साथ अपनी वर्दी नहीं लाए हैं. जिसने भी अपनी वर्दी पहन रखी है, उसे तुरंत ड्यूटी पर तैनात कर दिया गया है और जिनके पास वर्दी नहीं है, उन्हें जल्द से जल्द वर्दी सिलाने को कहा गया है.
'ऑफिसर K' ने द क्विंट को बताया कि भीड़ के हमले के समय मोइरांग पुलिस स्टेशन में लगभग 10 कुकी पुलिस अधिकारी तैनात थे, साथ ही अनुमानित 60 मेतेई पुलिस अधिकारी भी थे. उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि भविष्य क्या होगा. उन्होंने कहा, "क्या मुझे यहां एक आधिकारिक पोस्टिंग मिलेगी, या मैं अगले कुछ महीने किसी तरह के पैरा-मिलिट्री के रूप में बिताऊंगा, मुझे नहीं पता."
यहां तक कि 'ऑफिसर M' को भी उनकी अगली पोस्टिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि उनके एसपी उनका समर्थन कर रहे हैं और उन्हें इंफाल में रहने के लिए कह रहे हैं. उन्होंने कहा, "मुझे यह भी नहीं पता कि मुझे कोई सरकारी लाभ मिलेगा या नहीं. क्योंकि आधिकारिक तौर पर अभी भी मेरी पोस्टिंग चुराचंदपुर में है, लेकिन यहां मैं इंफाल में बैठा हूं."
'ऑफिसर K' ने कहा, "3 मई को हिंसा शुरू होने से पहले, मोइरांग में हमारे पुलिस स्टेशन में मैती और कुकी एक-दूसरे के साथ बहुत कोऑपरेटिव थे. सब कुछ ठीक था. हम साथ में चाय भी पीते थे. और अब, यह पूरी तरह से अलग है. इस स्थिति को ठीक होने में लंबा समय लगेगा. मुझे नहीं पता कि मैं उस दिन को देखने के लिए जीवित भी रहूंगा या नहीं."
दोनों अधिकारी M और K, अब अनौपचारिक रूप से अपने मूल जिलों में काम कर रहे हैं. ठीक दर्जनों अन्य पुलिस अधिकारियों की तरह जो अपने जातीय समुदाय के वर्चस्व वाले सुरक्षित जिले में भाग गए हैं.
एसपी मल्लादी ने आखिर में कहा, "किसी को वापस नहीं लौटाया गया है, और किसी को भी वापस नहीं लौटाया जाएगा."
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