Manipur violence: "मुझे डर है कि मेरा ऑफिस मुझे जल्द ही टर्मिनेशन लेटर भेजेगा. मणिपुर में पिछले महीने से लागू इंटरनेट बैन के कारण मेरा काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है.”
द क्विंट से यह बात बिप्लब सिंह हुइद्रोम (बदला हुआ नाम) ने कही, जो पेशे से एक सॉफ्टवेयर फर्म में कम्युनिकेशन प्रोफेशनल हैं और कई अन्य लोगों की तरह पिछले तीन वर्षों से वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) मोड में काम कर रहे हैं.
बिप्लब सिंह हुइद्रोम मई 2020 में COVID-19 के बाद वापस मणिपुर जाने से पहले बेंगलुरु में काम कर रहे थे.
उन्होंने कहा, “मैंने 2020 में COVID के कारण अपने पिता को खो दिया और वास्तव में अब बेंगलुरु वापस जाने के बारे में नहीं सोच सकता क्योंकि फिर मेरी मां अकेली रह जाती."
"मेरा ऑफिस मुझे स्थायी रूप से घर से काम करने देने के लिए सहमत हो गया. मणिपुर में प्रशासन ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया समझ में नहीं आ रहा है. अगर वे सोशल मीडिया साइटों पर अफवाह फैलाने से चिंतित हैं, तो वे ऐसी साइटों तक पहुंच पर बैन लगा सकते हैं, लेकिन पूर्ण प्रतिबंध अतार्किक है"बिप्लब सिंह हुइद्रोम
ह्यूड्रोम की दुर्दशा उनके अकेले की नहीं है. इसे कई लोग झेल रहे हैं. 3 मई को मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से इंटरनेट सेवाओं पर लगे बैन ने अन्य बातों के साथ-साथ कई लोगों की आजीविका और शिक्षा से जुड़े प्लान्स को प्रभावित किया है.
यहां एक कि हाल ही में, ऑल मणिपुर रिमोट वर्किंग प्रोफेशनल्स के प्रवक्ता, मोइरांगथेम सुधाकर ने मीडिया को बताया कि इंटरनेट पर लगे बैन ने न केवल कई पेशेवरों को अपनी नौकरी खोने के कगार पर खड़ा कर दिया है, बल्कि कुछ ने इस स्थिति के कारण अपनी नौकरी भी खो दी है.
शुक्रवार, 9 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई से हिंसा प्रभावित मणिपुर में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के खिलाफ दायर एक याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इसपर मणिपुर हाई कोर्ट में पहले से ही सुनवाई चल रही है.
SC में दायर इस याचिका में कहा गया है कि लोगों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार है और संवैधानिक रूप से संरक्षित माध्यम (इंटरनेट) का उपयोग करके किसी भी व्यापार या व्यवसाय को चलाने का भी अधिकार है. लेकिन इसके उलट प्रशासन द्वारा लगाया गया इंटरनेट बैन 'पूरी तरह से असंगत' था.
कमिश्नर (गृह) एच ज्ञान प्रकाश द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, ब्रॉडबैंड सहित मोबाइल डेटा सेवाओं के निलंबन को 10 जून की दोपहर 3 बजे तक बढ़ा दिया गया है.
इंटरनेट पर बैन ने न केवल मणिपुर में काम करने वालों को प्रभावित किया है, बल्कि राज्य के छात्रों के साथ-साथ उन लोगों को भी प्रभावित किया है जो राज्य से संबंधित हैं लेकिन बाहर काम कर रहे हैं.
'अपने बेटे के भविष्य के लिए चिंतित हूं'
ग्रेस पैटे (बदला हुआ नाम) एक चिंतित मां हैं. उनके बेटा ने अभी-अभी सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा पास की है और वह मणिपुर से बाहर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता है.
“मेरा बेटा दिल्ली या बेंगलुरु से अपनी डिग्री हासिल करने का इच्छुक है. और आजकल इन कॉलेजों में एडमिशन के लिए सभी फॉर्म इंटरनेट के माध्यम से ही भरे जाते हैं."ग्रेस पैटे
ग्रेस पैटे चुराचांदपुर के एक कस्बे लमका की रहने वाली हैं. उन्होंने द क्विंट से आगे कहा, "लेकिन राज्य में नेट कट ऑफ होने के कारण हम मणिपुर के बाहर भारत के प्रमुख शहरों के कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑनलाइन फॉर्म नहीं भर पा रहे हैं. हमें न कट ऑफ मार्क्स की जानकारी मिल पा रही है और न ही फॉर्म भरने की अंतिम तिथि की."
'मुश्किल से गुजारा कर रहा क्योंकि माता-पिता मुझे पैसे नहीं भेज पा रहे हैं'
मणिपुर के वैसे भी कई छात्र हैं जो पढ़ने के लिए राज्य से बाहर आये हैं लेकिन इंटरनेट बैन के कारण उसके माता-पिता पैसे नहीं भेज पा रहे हैं. यही कारण है कि उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
“मेरा किराया पिछले दो महीनों से बकाया है क्योंकि मेरे माता-पिता इंटरनेट बैन के कारण मुझे पैसे नहीं भेज पा रहे हैं. वे किसी बैंक में जाकर मेरे अकाउंट में फिजिकली जमा भी नहीं कर सकते क्योंकि वे एक राहत शिविर में फंसे हुए हैं."
हैदराबाद के एक कॉलेज के छात्र विलियम टॉन्सिंग ने द क्विंट को बताया, "मेरे मकान मालिक ने धमकी दी है कि अगर मैं अगले हफ्ते तक किराया नहीं चुका पाया तो मुझे बाहर निकाल दिया जाएगा. मैंने अपने कुछ दोस्तों से पैसे उधार लिए हैं और मुश्किल से मैनेज कर पा रहा हूं."
चुराचंदपुर के रहने वाले टॉन्सिंग ने कहा कि उनकी स्थिति वास्तव में गंभीर है क्योंकि उनके पास घर वापस जाने के भी पैसे नहीं हैं.
मणिपुर में चल रही अशांति ने बड़े पैमाने पर पलायन शुरू कर दिया है. दोनों समुदायों के परिवार, कुकी और मैतेई, हिंसा से जान बचाकर भाग रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हिंसा में कम से कम 100 लोगों की जान चली गई है और 310 अन्य घायल हुए हैं. कुल 37,450 लोग वर्तमान में 272 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं.
मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद 3 मई को पूर्वोत्तर राज्य में पहली बार झड़पें हुईं और हिंसा भड़की.
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