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केंद्र ने अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship) को इस साल से बंद करने का फैसला किया है. केंद्र के इस फैसले का छात्र संगठन विरोध कर रहे हैं. विपक्ष ने भी केंद्र के इस फैसले पर आपत्ति जताई है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार, 08 दिसंबर को कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन को एक लिखित जवाब में कहा कि यह फैसला इसलिए किया गया क्योंकि फेलोशिप अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप होती है. छात्रों ने स्मृति ईरानी का पुतला भी फूंका है. इस पर छात्र नेताओं और विपक्ष का क्या कहना है आइए आपको बताते हैं.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले की आलोचना की. अल्पसंख्यकों के लिए मौलाना आजाद फेलोशिप बंद कर दी गई है. ये है नरेंद्र मोदी का सबका साथ, सबका विकास. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि मुसलमान अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहते हैं लेकिन अत्यधिक गरीबी उन्हें रोकती है. यह मुसलमानों को उनकी गरीबी की सजा दे रहे हैं
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU), हैदराबाद के छात्रों ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (MANF) और प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप को बंद करने के खिलाफ कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया. छात्रों ने कई जगह अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी का पुतला भी फूंका.
क्विंट से बातचीत में जवाहरलाल नेशनल यूनिवर्सिटी छात्र संघ (JNUSU) के महासचिव सतीश चंद्र यादव ने कहा कि, "पहले से ही बेहद कम छात्रों को इसका फायदा मिल पा रहा रहा, सरकार को तो घटाने के जगह बढ़ाना चाहिए था."
स्मृति ईरानी के फेलोशिप ओवरलैप होने वाले बयान पर सतीश यादव कहते हैं कि,
सतीश चंद्र यादव ने कहा कि हमने UGC चेयरमैन के सामने इस बात को रखा है और हमने उनसे रिक्वेस्ट की है कि वह इस पर हमे जवाब दें अगर जवाब जल्द नहीं मिलता है तो हम इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे.
स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के अध्यक्ष वीपी सानू ने ट्वीट किया, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप उन उम्मीदवारों के लिए थी जो उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई और जैन में से एक हैं.
अन्य फेलोशिप योजनाओं के साथ अजीब 'ओवरलैप्स' का हवाला देकर मोदी ने इसे बंद कर दिया है.
आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) से जुड़े छात्रों ने भी मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप बंद करने के विरोध में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी और जेएनयू में विरोध प्रदर्शन किए.
इसके साथ ही NSUI के जामिया मिलिया इस्लामिया के अध्यक्ष एन.एस. अब्दुल हमीद ने कहा कि यह मुद्दा कई अल्पसंख्यक छात्रों को प्रभावित करेगा जिन्हें ओबीसी नहीं माना जाता है.
मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप 2009 में सच्चर समिति की सिफारिशों के एक भाग के रूप में शुरू की गई थी. इस योजना के तहत, सरकार छह अल्पसंख्यक समुदायों - मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई और जैन - से संबंधित छात्रों को पीएचडी और एमफिल शिक्षा प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है.
इस फेलोशिप के लिए पात्र होने के लिए, लाभार्थियों के माता-पिता या अभिभावकों की वार्षिक आय सभी स्रोतों से 6 लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.
UGC के मुताबिक, 2014-15 और 2021-22 के बीच मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप के माध्यम से लगभग 6,722 उम्मीदवार लाभान्वित हुए. इस सात वर्ष की अवधि में कुल 738.85 करोड़ रुपये की राशि वितरित की गई.
मौलाना आजाद नेशनल फैलोशिप बंद होने के विरोध में आइसा समेत कई अन्य छात्र संगठनों ने 12 दिसंबर को प्रोटेस्ट का काल दिया है.
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