ADVERTISEMENTREMOVE AD

मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप, बिन स्टाइपेंड बेहाल स्कॉलर

हमें फेलोशिप मिले 7-8 महीने हो चुके हैं. जैसे ही मैं अपनी थीसिस जमा कर रहाी थी, मेरी फेलोशिप आनी बंद हो गई.

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मैं असम की एक शोध छात्रा हूं और मुझे अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के तहत दी जाने वाली मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship) का लाभ मिलता है. मेरे जैसे पीएचडी स्कॉलर, जो एक ही फेलोशिप के तहत काम कर रहे हैं, उन्हें पिछले कुछ महीनों से स्टाइपेंड नहीं मिला है.

हम में से कुछ लोगों को अपनी फेलोशिप प्राप्त किए सात से आठ महीने हो चुके हैं. जब मैं थीसिस जमा कर रही थी तो मेरी फेलोशिप आनी बंद हो गई. थीसिस तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है, और मुझे पेंशन पर जी रहे अपने पिता से पैसा लेना पड़ा.

पीएचडी छात्र आमतौर पर 25-35 आयु वर्ग के होते हैं. हम पीएचडी करने की हिम्मत करते हैं क्योंकि हमारे शोध को फण्ड देने के लिए इस तरह की कई योजनाएं हैं. हम इस उम्र में अपने माता-पिता से पैसे नहीं मांग सकते. जब फेलोशिप में अचानक रुकावट आती है, तो यह बहुत मुश्किल हो जाता है.

सिर्फ मैं ही नहीं देश भर में करीब 4,000 रिसर्च स्कॉलर हैं, जो इसी स्थिति से गुजर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
"हम फेलोशिप में हो रही देरी के कारण पीड़ित हैं. हम मंत्रालय को बताना चाहते हैं कि हमारा शोध दांव पर है, और अगर हमें यह फेलोशिप समय पर नहीं मिलती है, तो यह हमें विभिन्न तरीकों से प्रभावित करेगा. क्योंकि हमें किराया देना होता है. हम अपने शोध के लिए किताबें नहीं खरीद पा रहे हैं. हम फील्डवर्क नहीं कर पा रहे हैं."
जीशान अहमद शेख, रिसर्च स्कॉलर

उत्तर प्रदेश की एक रिसर्च स्कॉलर मारिया खान को दिसंबर 2021 से फेलोशिप नहीं मिली है. उसी के बारे में बोलते हुए, उन्होंने यह भी बताया कि यह स्थिति उनके लिए आर्थिक रूप से कितनी कठिन हो गई है.

"हमें बताया गया है कि हमारी फेलोशिप जल्द ही वितरित की जाएगी. यदि आप एक शोधकर्ता हैं तो आपके शोध के संबंध में फील्डवर्क करना होता है. फील्डवर्क के लिए आपको उन जगहों पर जाना होगा और पैसा खर्च करना होगा.
मारिया खान, रीसर्च स्कॉलर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हमने यूजीसी और मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश की है लेकिन हमें बिना किसी सकारात्मक प्रतिक्रिया के दोनों पक्षों के बीच फंसाया जा रहा है.

"पिछले छह महीनों में, हमने कॉल, ईमेल आदि पर यूजीसी से संपर्क करने की कोशिश की है. हमने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से भी संपर्क करने की कोशिश की है. हम निराश हैं. हम अपना शोध सही तरीकेे से करने में असमर्थ हैं.
हारून राशिद, रिसर्च स्कॉलर

फेलोशिप नहीं मिलने के कारण कुछ छात्र पीएचडी छोड़ने की कगार पर हैं. मैं अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि कृपया इस मामले को देखें और हमारी फेलोशिप राशि को जल्द से जल्द वितरित करें.

क्विंट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से संपर्क किया है और उनके जवाब का इंतजार है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×