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किशोर कुणाल:वो लेखक जिनकी किताब अयोध्या केस की सुनवाई में फाड़ी गई

सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने किताब के कुछ पन्नों और उसमें छपे मैप की कॉपी को फाड़ दिया था.

विराज गौड़
भारत
Published:
पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल
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पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल
(फोटो: महावीर मंदिर पटना / altered by Quint Hindi))

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हाई-प्रोफाइल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में अंतिम सुनवाई बुधवार 16 अक्टूबर को हुई. इसमें मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत एक किताब के कुछ पन्नों और उसमें छपे मैप की कॉपी को फाड़ दिया. सुनवाई के दौरान अंतिम क्षणों में ये किताब हिंदू पक्षों में से एक पक्ष ने कोर्ट में पेश की थी.

अयोध्या रीविजिटेड नाम की ये किताब 2016 का प्रकाशन है, जिसे आईपीएस अधिकारी से धार्मिक कार्यकर्ता बने किशोर कुणाल ने लिखा है. ये लगभग 800 पन्नों की किताब है.

यह किताब दावा करता है कि पहले मुगल सम्राट बाबर का अयोध्या में किसी मंदिर के ढहाने या बाबरी मस्जिद के निर्माण में कोई भूमिका नहीं थी. किताब में यह भी दावा है कि विवादित स्थल पर वाकई एक मंदिरमौजूद था.  

कौन हैं किशोर कुणाल?

किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूलिंग मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव से की. 20 साल बाद, उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास और संस्कृत में ग्रेजुएशन किया. वे 1972 में गुजरात कैडर से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बने और आनंद के पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात हुए. वहां से वे 1978 में अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त बने.

1983 में उन्हें प्रोमोशन मिला और वे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर पटना में तैनात हुए. कुणाल ने 1990 से 1994 तक गृह मंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के पद पर काम किया. यहां वे पहली बार अयोध्या विवाद के संपर्क आए.

एक आईपीएस अधिकारी के रूप में कुणाल पहले से ही धार्मिक कार्यों में शामिल थे. साल 2000 में पुलिस से रिटायर होने के बाद उन्होंने केएसडी संस्कृत यूनिवर्सिटी दरभंगा के कुलपति का पद संभाला. 2004 तक वे इस पद पर रहे. बाद में वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड (BSBRT) के प्रशासक बने और प्रचलित जातिवादी धार्मिक प्रथाओं में सुधार की शुरुआत की.

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उनकी किताब में क्या दावा है?

कुणाल ने अपनी किताब अयोध्या रीविजिटेड में लिखा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत अयोध्या के गवर्नर फिदाई खान ने साल 1660 में मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. इसके अलावा, विदेशी यात्रा वृत्तांतों का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया है कि एक मंदिर विवादित स्थल पर मौजूद था.

उन्होंने रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "पहली बार मैंने असली सबूतों के आधार पर यह दावा किया है कि विवादित स्थल पर एक मंदिर मौजूद था. इन सबूतों में 'रुद्रायमाला' के 'अयोध्या महात्म्य' में लिखे श्लोक भी शामिल हैं."

कुणाल की किताब अयोध्या रीविजिटेड में पहले पेज के कंटेंट का स्क्रीनशॉट (फोटो साभार: गूगल बुक्स / अयोध्या रीविजिटेड)

उनका कहना है कि मस्जिद के अंदर मैजूद जो शिलालेख बताते हैं कि यह बाबर द्वारा बनाया गया था, वे नकली हैं और उन्हें साल 1528 में मस्जिद के निर्माण के 280 साल उन्हें लगाया गया था.

“अयोध्या में किसी भी मंदिर को ध्वस्त करने या स्थल पर मस्जिद के निर्माण में बाबर की कोई भूमिका नहीं थी. मैंने इसे अकाट्य सूचना के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला है.’’
रेडिफ को दिए इंटरव्यू में किशोर कुणाल

बुधवार को अदालत में जिस मैप को फाड़ा गया, उसे किशोर कुणाल ने तैयार किया था. वे अपनी बात पर कायम हैं. द टाइम्स ऑफ इंडिया को उन्होंने बताया, "एक वकील के तौर पर धवन को पता है कि अगर नक्शा अदालत को सौंप दिया जाता है, तो वह केस हार जाएगा." उन्होने ये भी कहा कि उनकी किताब राम की जन्मभूमि के बारे में निर्णायक थी.

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