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"मेरी बेटी के पिता नहीं हैं. इसलिए मैं चाहती हूं कि वो पढ़े-लिखे और अपने जीवन में कुछ करे. मैं उसकी शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकती. वो गंगा जमुना स्कूल में फ्री में पढ़ाई कर रही थी. यदि वह इंग्लिश मीडियम स्कूल में अच्छे से पढ़ाई करती है, तो उसे नौकरी के बेहतर अवसर मिलेंगे और अच्छा कमा पाएगी. आप तो जानते ही हैं कि बिना पिता के बड़ी होने वाली लड़कियों की स्थिति कैसी होती है". यह कहना है शिरीन बानो का. जिनकी 12 वर्षीय बेटी शहनाज़ इस सप्ताह मध्य प्रदेश के दमोह के गंगा जमना स्कूल (Ganga Jamna School in Madhya Pradesh's Damoh) में कक्षा 8 में होती.
इसके बजाय, गैर-मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहने हुए एक पोस्टर सामने आने से शुरू विवाद के बाद स्कूल अप्रत्याशित रूप से बंद हो गया है और शिरीन अपनी बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
अपने पति की मृत्यु के बाद अपने ससुराल वालों से अलग, शिरीन बानो अपने तीन बच्चों को पढ़ाने के लिए चूड़ियां और होजरी बेचने वाली एक छोटी सी दुकान चलाती हैं. उनके दो छोटे बेटे साहिल (12 साल) और आहिल (10 साल) का एडमिशन एक उर्दू माध्यम के सरकारी स्कूल में हुआ है.
27 मई: स्कूल के बाहर 10वीं की परीक्षा पास करने वाले स्टूडेंट्स के पोस्टर लगाए जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया. पोस्टर में मुस्लिम और हिंदू, दोनों समुदाय की लड़कियां हिजाब पहने दिखीं. पोस्टर अगले दिन सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
30 मई: जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) एसके मिश्रा के निर्देशानुसार जिला अधिकारियों ने स्कूल का निरीक्षण किया और किसी भी कथित 'गड़बड़ी' के लिए उसे क्लीन चिट दे दी.
31 मई: मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पोस्टर को लेकर हुए विवाद की जांच के आदेश दिए.
1 जून: जिला कलेक्टर (डीसी) से उच्च स्तरीय जांच शुरू करने की मांग को लेकर हिंदू संगठनों ने विरोध किया.
2 जून: डीसी ने एक जांच समिति का गठन किया और स्कूल की मान्यता रद्द कर दी. उसी दिन, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इकबाल का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि स्कूल प्रशासन "एक ऐसे व्यक्ति की कविता पढ़ा रहा है जो देश के विभाजन के बारे में बात करता है".
3 जून: सीएम चौहान ने एसडीएम और सीएसपी रैंक के अधिकारियों को जांच कमेटी में शामिल करने का आदेश दिया.
4 जून: राज्य की बाल सुरक्षा और कल्याण समिति के अधिकारियों ने स्कूल का दौरा किया और सभी डॉक्युमेंट्स को जब्त कर लिया.
5 जून: छात्रों के धर्म परिवर्तन के आरोपों ने गति पकड़ी.
7 जून: पुलिस ने मामला दर्ज किया और स्कूल के प्रबंधन के 11 सदस्यों के खिलाफ तीन छात्रों के बयानों के आधार पर FIR दर्ज की. उसी दिन, स्थानीय बीजेपी नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया और डीईओ एसके मिश्रा पर स्याही फेंकी.
9 जून: एसके मिश्रा का तबादला कर दिया गया और उनकी जगह एसके नेमा को नियुक्त किया गया.
10 जून: स्कूल की प्रिंसिपल अफशा शेख, गणित के शिक्षक अनस अतहर और सुरक्षा गार्ड रुस्तम अली को गिरफ्तार किया गया. उन्हें स्थानीय अदालत में पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
11 जून: मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) ने कथित तौर पर बिना अनुमति के स्कूल के कुछ हिस्सों का निर्माण करने पर स्कूल को नोटिस दिया और संबंधित डॉक्यूमेंट पेश करने को कहा.
13 जून: सीएमओ ने कहा कि स्कूल प्रबंधन द्वारा आवश्यक मंजूरी नहीं दिए जाने के बाद स्कूल के कुछ हिस्सों को तोड़ना शुरू किया गया.
14 जून: विशेष किशोर न्याय अदालत ने तीनों आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी.
शहनाज की तरह, स्कूल में अधिकांश धर्मों के छात्र वंचित परिवारों से आते हैं. दमोह के फुटेरा वार्ड में इंग्लिश मीडियम का एकमात्र स्कूल होने के कारण ज्यादातर पैरेंट्स अब अपने बच्चों का एडमिशन दूसरे स्कूलों में कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
शिरीन ने कहा, "मेरे पति की 2012 में एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. उनकी मृत्यु के बाद, स्कूल ने हमारी परिस्थितियों को देखते हुए 12वीं कक्षा तक मेरी बेटी की ट्यूशन फीस माफ कर दी थी."
37 वर्षीय महमूद खान मजदूर हैं और उनकी भी ऐसी ही चिंताएं हैं. उनका बेटा अल्फ़ाज रजा (12 साल) भी इसी स्कूल में पढ़ता है,
महमूद खान ने पिछले साल अल्फाज के लिए साल भर की फीस के रूप में 9,600 रुपये का भुगतान किया था.
महमूद खान ने आरोप लगाया कि "स्कूल को बदनाम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित रहें, लोगों के मन में डर पैदा किया जा रहा है."
खान ने कहा, "हमने कभी भी स्कूल में किसी भी गलत शिक्षा के बारे में नहीं सुना. हर महीने स्कूल में आयोजित होने वाली पैरेंट्स मीटिंग में भी किसी भी माता-पिता ने कोई मुद्दा नहीं उठाया. उन बैठकों में सभी धर्मों के बच्चों के माता-पिता शामिल होते थे, लेकिन किसी ने कभी कोई मुद्दा या आपत्ति नहीं उठाई. केवल हिजाब पोस्टर मुद्दे के बाद, यह विवाद भड़क गया."
शिरीन की तरह, कई माता-पिता और सूत्र, जिनसे द क्विंट ने बात की, ने बताया कि कैसे स्कूल ने वर्षों से कई परिवारों के वित्तीय संकट को ध्यान में रखा है.
महमूद खान ने कहा, "स्कूल प्रबंधन सभी धर्मों के कई स्टूडेंट्स की फीस माफ कर देता था, सिर्फ मुसलमानों की ही नहीं. मैं पिछले साल बीमार हो गया था और छह महीने तक काम नहीं कर सका. मैं अपने बेटे का नाम कटाने के लिए स्कूल गया था क्योंकि मैं फीस नहीं दे सकता था. लेकिन स्कूल प्रबंधन ने फीस अपने ऊपर ले लिया और साल की बाकी फीस माफ कर दी. उन्होंने मेरे बेटे की फीस COVID-19 महामारी के दौरान भी माफ कर दी थी. उन्होंने कहा कि यह बच्चों के भविष्य का सवाल है."
उन्होंने कहा, "मेरी भतीजी भी उसी स्कूल में पढ़ती है. उसके पिता को एक मामले में उम्रकैद की सजा मिली थी, जिसके बाद हम उसे स्कूल से हटाने गए थे. लेकिन उन्होंने उसकी 12वीं कक्षा तक की फीस माफ कर दी."
पोस्टर विवाद के तेज होने के बाद, दमोह के पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) एसके मिश्रा का 9 जून को तबादला कर दिया गया और एसके नेमा को नए डीईओ के रूप में नियुक्त किया गया.
एसके नेमा ने कहा, "स्कूल की मान्यता अस्थायी रूप से रद्द की गई है, स्थायी रूप से नहीं. यहां तक कि अगर इसे स्थायी रूप से मान्यता रद्द कर दी जाती है, तो भी डीईओ का कार्यालय छात्रों को अन्य स्कूलों में दाखिला दिलाने में मदद करेगा."
यह पूछे जाने पर कि क्या बच्चों को उसी स्कूल में बहाल किया जाएगा, एसके नेमा ने कहा कि "दोनों विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं" लेकिन अभी कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है.
एसके नेमा ने कहा, "परिवारों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. नया शैक्षणिक वर्ष पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है. मैं विश्वास दिलाता हूं कि जुलाई तक छात्रों के लिए समाधान आ जाएगा."
भले ही डीईओ के कार्यालय ने सहायता का आश्वासन दिया है, लेकिन अभी तक इसके लिए कोई स्पष्ट समयरेखा नहीं है.
इस बीच शिरीन ने कहा, "मैं अपनी बेटी के लिए बाप और मां दोनों हूं. मैं केवल इतना चाहती हूं कि अधिकारी उसे कहीं एडमिशन दिलाने में मेरी मदद करें."
(इनपुट्स- इम्तियाज चिश्ती)
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