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समाजवादी पार्टी के संस्थापक और तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव का आज सोमवार, 10 अक्टूबर की सुबह गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में निधन (Mulayam Singh Yadav Dies At 82) हो गया. 'नेताजी' 82 वर्ष के थे. यूपी और राष्ट्रीय स्तर पर जमीन की राजनीति करके 'घरतीपुत्र' का नाम कमाने वाले मुलायम सिंह यादव 10 बार विधायक और सात बार लोकसभा सांसद चुने गए. एक वक्त पर उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में भी देखा गया- लेकिन मुलायम को मुलायम बनाने वाले लोगों की फेहरिस्त में राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) और चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) से लेकर शिवपाल यादव और अमर सिंह जैसे कद्दावर नेताओं का नाम शामिल है. आइए जानते हैं कि इन सबसे किस तरह से मुलायम सिंह यादव को यूपी की राजनीति का सिरमौर बनाने में अपना-अपना योगदान दिया था.
मुलायम सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के सैफई में 22 नवंबर 1939 को हुआ था. जवानी में पहलवान बनने का सपना देखने वाले मुलायम सिंह यादव पर समाजवादी राजनीति के कद्दावर नेता राममनोहर लोहिया का प्रभाव केवल 14 साल की उम्र में पड़ा. लोहिया के समाजवादी विचारों का प्रभाव ही था कि पहली बार इसी उम्र में नेताजी जेल गए थे.
आगे अपने कॉलेज के दिनों में मुलायम सिंह पर राम मनोहर लोहिया और राज नारायण के समाजवादी विचारों का प्रभाव और बढ़ा. वे अपने कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष बने. यही वह दौर था जब लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) जातिवाद के उन्मूलन, कीमतों में बढ़ोतरी और अंग्रेजी भाषा के खिलाफ अभियान चला रही थी.
मुलायम ने 1967 में जसवंतनगर से SSP के टिकट पर चुनावी राजनीति की शुरुआत की और इस सीट से विधायक बने.
राममनोहर लोहिया के बाद मुलायम सिंह यादव कद्दावर किसान नेता चौधरी चरण सिंह के शागिर्द बने. अक्टूबर 1967 में लोहिया की मौत के बाद मुलायम ने चरण सिंह की भारतीय कृषक दल (BKD) जॉइन कर ली थी. 1974 में BKD के टिकट से ही मुलायम दोबारा विधायक बने थे. 1974 में ही सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय कृषक दल का विलय हो गया और नई पार्टी का नाम रखा गया- भारतीय लोक दल (BLD). आगे 1977 में BLD भी जनता पार्टी के साथ मिल गई. इन सबके बीच चौधरी चरण सिंह की छत्रछाया में मुलायम सिंह यादव राजनीति के गूढ़ दाव-पेंच सीखते गए.
1979 में चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी छोड़ा और लोक दल के नाम से नई पार्टी बना ली. मुलायम यादव तब भी उनके साथ ही रहे. चरण सिंह के दत्तक पुत्र मुलायम सिंह 1980 में विधानसभा चुनाव हार गए तो चरण सिंह ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया और यूपी में लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष भी नियुक्त किया.
इस बीच उन्हें उम्मीद थी कि वे आने वाले वक्त में चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन 1980 के दशक के मध्य में चौधरी साहब के अपने अराजनीतिक बेटे अजीत सिंह को यह उत्तराधिकार सौंपा. 1987 में चरण सिंह की मौत हो गई. लोक दल दो धड़े में टूटा- एक हिस्सा चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के साथ चला गया. दूसरा मुलायम सिंह यादव के साथ.
किसी जमाने में अमर सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति के चाणक्य और मुलायम सिंह यादव की परेशानियों के फिक्सर कहे जाते थे. भारत के नामचीन उद्योगपतियों में शुमार रहे अमर सिंह ने जब राजनीति में एंट्री मारी तो मुलायम सिंह यादव के करीबियों में शुमार हो गए. दोनों की पहली मुलाकात का किस्सा भी मजेदार और प्रसिद्ध है. मुलायम और अमर सिंह की जब पहली बार मुलाकात हुई, उस वक्त मुलायम देश के रक्षामंत्री थे. साल था 1996. जिस फ्लाइट में मुलायम सिंह सफर कर रहे थे, उसी में अमर सिंह भी सवार थे और दोनों की मुलाकात हो गई. इस अनौपचारिक मुलाकात से शुरू हुई दोनों के बीच नजदीकियां.
राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि अमर सिंह ने SP को यूपी की राजनीति के शीर्ष पर पहुंचाने और मुलायम यादव को यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई. 'हर मर्ज का इलाज' रखने वाले अमर सिंह का फिल्म इंडस्ट्री में भी इतनी पहुंच थी कि उन्होंने अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन तक को सपाई बना दिया.
शिवपाल सिंह यादव का नाम मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रखने वालों में आता है. शिवपाल मुलायम के सबसे छोटे भाई हैं. एक वक्त था जब यूपी में सिर्फ मुलायम ही मुलायम थे और पार्टी के अंदर शिवपाल यादव की तूती बोलती थी. अखिलेश यादव की एंट्री के पहले शिवपाल को मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी माना जाता था. हालांकि जो काम चौधरी चरण सिंह ने अपने बेटे अजीत सिंह के लिए किया, वो ही मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश के लिए किया. आखिरकार अपने भतीजे अखिलेश यादव से कई मुद्दों पर विवाद के बाद शिवपाल यादव ने SP से नाता तोड़कर अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बना ली है.
यूपी की राजनीति को करीब से फॉलो करने वाले पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि मुलायम सिंह की राजनीतिक पारी को पहला लिफ्ट देने वाले किरदार कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया थे. कभी ब्रिटिश हुकूमत से आजादी की लड़ाई के लिए कमांडर साहब (अर्जुन सिंह भदौरिया) ने चंबल घाटी में लाल सेना बनाई थी. आजादी के बाद अर्जुन सिंह भदौरिया कांग्रेसी खेमे में शामिल नहीं हुए बल्कि उन्होंने आचार्य नरेंद्रदेव, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया के सोशलिस्ट खेमे में शामिल होकर समाजवाद का दामन थामा.
मुलायम सिंह यादव अपने कॉलेज जीवन में अर्जुन सिंह भदौरिया के करीब आए और भदौरिया ने ही उन्हें समाजवादी विचारधारा का ककहरा सिखाया. एक और नाम है जिसका जिक्र यहां जरूरी है- नत्थू सिंह का. 1967 का विधानसभा चुनाव हुआ तो जसवंत नगर से नत्थू सिंह को टिकट दिया गया, लेकिन अपनी उम्र की दुहाई देकर नत्थू सिंह ने अपनी जगह मुलायम सिंह को टिकट देने को कहा था. मुलायम सिंह अपना पहला ही विधानसभा चुनाव जीत गए और उसके बाद 8 बार यहां से विधायक बने.
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Published: 10 Oct 2022,01:25 PM IST