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ओडिशा में आदिवासियों पर कार्रवाई: बॉक्साइट खनन, UAPA और वन अधिनियम

दक्षिण ओडिशा के बॉक्साइट-समृद्ध जिलों में दलित-आदिवासी कार्यकर्ताओं पर सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई के क्या कारण हैं?

हिमांशी दहिया
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>ओडिशा स्थित नागरिक अधिकार संगठनों के अनुसार, खनन विरोधी प्रदर्शनों में सबसे आगे रहने वाले दलित-आदिवासी समुदाय के कम से कम 30 लोगों को  अगस्त महीने में पुलिस ने गिरफ्तार किया है.</p></div>
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ओडिशा स्थित नागरिक अधिकार संगठनों के अनुसार, खनन विरोधी प्रदर्शनों में सबसे आगे रहने वाले दलित-आदिवासी समुदाय के कम से कम 30 लोगों को अगस्त महीने में पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

(फोटो: द क्विंट)

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ओडिशा (Odisha) के रायगड़ा (Rayagada) जिले के बंतेजी गांव की रहने वाली कृष्णा नाइक और उनके पति निरंजन नाइक 13 अगस्त की सुबह अपने घर पर सो रहे थे, तभी उन्होंने दरवाजे को जोर-जोर से पीटने की आवाज सुनीं. द क्विंट से बात करते हुए 26 साल की कृष्णा ने कहा कि "मैं और मेरे पति सो रहे थे, तभी लगभग 20-25 पुलिसकर्मी दरवाजा तोड़ कर जबरन हमारे घर में घुस आए और मेरे पति को उठा लिया. उन्होंने मेरे पति को कपड़ा तक पहनने नहीं दिया. मैं रोने लगी और कपड़ा लेकर बाहर भागी और उसे ले जाकर दे दिया."

उस सुबह के 20 दिन बाद भी कृष्णा को अपने पति की कोई खोज खबर नहीं है. उन्होंने आगे बताया कि "जब वे (पुलिस) उसे ले जा रहे थे, तो मैंने उनसे गिरफ्तारी का कारण पूछा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया."

निरंजन, ओडिशा के दलित और आदिवासी समुदायों के उन 22 लोगों में से हैं जिन्हें पुलिस ने रायगड़ा और पड़ोस के कोरापुटा और कालाहांडी जिले से गिरफ्तार किया है. इन जिलों को ओडिशा का बॉक्साइट बेल्ट भी कहा जाता है.

12 अगस्त को काशीपुर पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज की थी. FIR में निरंजन और 150 अन्य ज्ञात और अज्ञात लोगों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत दंगा, अपहरण, घातक हथियार रखने, हत्या का प्रयास, अपमानजनक और मानहानिकारक शब्दों का प्रयोग और आपराधिक धमकी के तहत मामला दर्ज किया गया था. FIR में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1932 और शस्त्र अधिनियम 1959 के तहत भी धाराएं जोड़ी गई थी.

स्थानीय कार्यकर्ताओं और वकीलों ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय के खिलाफ हुई हालिया FIR एक बड़े राज्यव्यापी कार्रवाई का हिस्सा है. इससे पहले भी 6 अगस्त को खनन विरोधी प्रदर्शन से जुड़े 9 आदिवासियों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

प्रख्यात सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा (Prafulla Samantara) भी कथित तौर पर 29 अगस्त को रायगड़ा जिले में अपने होटल के कमरे से लापता हो गए थे. वो वहां बॉक्साइट खनन के खिलाफ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करने गए थे. एक दिन बाद, वह रायगड़ा से 200 किमी दूर गंजम जिले के बेरहामपुर शहर में अपने घर पर मिले थे.

2017 गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार विजेता सामंतरा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगते हुए कहा कि, "यह घटना स्पष्ट रूप से राजकीय आतंकवाद का मामला है. राज्य सरकार कॉर्पोरेट के हितों के लिए काम कर रही है. मेरी स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है और मुझे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है."

प्रख्यात सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतारा ने 2017 में गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार जीता था.

(फोटो: X/प्रफुल्ल सामंतारा)

ओडिशा स्थित गणतांत्रिक अधिकार सुरक्षा संगठन के अनुसार, अकेले अगस्त महीने में कम से कम 25 दलित-आदिवासी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

बीते दिनों 27 अगस्त को गणतांत्रिक अधिकार सुरक्षा संगठन ने एक बयान जारी कर कहा, “हम दक्षिण ओडिशा में प्रस्तावित खनन क्षेत्रों में चल रहे सरकार की दमनकारी कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हैं, जिसके तहत राज्य के तीन जिलों से कम से कम 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. अपनी जमीन, जंगल और प्रकृति की रक्षा करना अपराध नहीं है."

दशकों पुराना खनन विरोधी संघर्ष

ओडिशा में आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी का 22.85 प्रतिशत है, जो इसे पूरे भारत में तीसरा सबसे बड़ा आदिवासी बहुल राज्य बनाता है.

इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो ओडिशा में खनन के खिलाफ पहला सफल आंदोलन (गंधमर्दन बचाओ आंदोलन) 1987 में देखने को मिला था. स्थानीय लोगों द्वारा पांच साल तक चलाए गए इस आंदोलन के चलते भारत एल्युमीनियम कंपनी (BALCO) को पश्चिमी ओडिशा के गंधमर्दन पहाड़ों से 213 मिलियन टन बॉक्साइट का खनन रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

इसके परिणामस्वरूप गोपालपुर में टाटा स्टील प्लांट, चिल्का झील पर टाटा श्रिम्प मोनोपोली और कोरापुट में आदित्य बिड़ला समूह के स्वामित्व वाली हिंडाल्को द्वारा बॉक्साइट खनन जैसी परियोजनाओं का विरोध शुरू हुआ.

कोरापुट, रायगढ़ा और कालाहांडी जिले ओडिशा के बॉक्साइट बेल्ट के रूप में जाने जाते हैं.

(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)

इसके अलावा 2004 में मांझी और कोंध जनजातियों ने कालाहांडी और रायगढ़ा जिलों की नियमगिरि पहाड़ियों में वेदांत एल्यूमिना लिमिटेड द्वारा बॉक्साइट खनन परियोजना का विरोध किया था. लगभग 8,000 की आबादी वाले विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) डोंगरिया कोंध जाति का संघर्ष इस खनन परियोजना के खिलाफ आज भी हिंसा, जबरन अपहरण और लंबी कानूनी लड़ाई के साये में जारी है.

12 अगस्त को क्या हुआ था?

12 अगस्त को सुबह लगभग 7.30 बजे माइथ्री इंफ्रास्ट्रक्चर एंड माइनिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के लिए काम करने वाले अधिकारी रायगड़ा जिले के काशीपुर में सिजिमाली हिल के दौरे के लिए निकले थे. यह जगह राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन 400 किमी दूर पड़ती है.

काशीपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR के अनुसार इन अधिकारियों ने साइट पर जाने से पहले, पुलिस स्टेशन का दौरा किया और एक लिखित रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि उन्हें वेदांता द्वारा सिजिमाली बॉक्साइट खदान के संचालन का जिम्मा सौंपा गया है.

आपको बता दें कि 23 नवंबर 2022 को ओडिशा में खान एवं भूविज्ञान के निदेशक ने एक टेंडर जारी कर बॉक्साइट और लाइम्स्टोन (चूना पत्थर) के खनन के लिए बोलियां आमंत्रित की थी. द क्विंट को प्राप्त टेंडर दस्तावेज के अनुसार, निम्नलिखित के लिए बोलियां आमंत्रित की गई थी:

  • कोरापुट में बल्लाडा बॉक्साइट ब्लॉक

  • कालाहांडी और रायगढ़ा में सिजिमाली बॉक्साइट ब्लॉक

  • कालाहांडी और रायगढ़ा में कुटरुमाली बॉक्साइट ब्लॉक

  • नुआपाड़ा में गैरामुरा लाइम्स्टोन ब्लॉक

  • मल्कानगिरी में उस्कलवागु लाइम्स्टोन ब्लॉक

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इसके बाद 21 फरवरी 2023 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर वेदांता ने कहा था कि उसे सिजिमाली बॉक्साइट ब्लॉक के लिए पसंदीदा बोलीदाता घोषित किया गया है, जिसमें लगभग 311 मिलियन टन बॉक्साइट का अनुमानित भंडार है.

वेदांता को टेंडर मिलने के बाद उसने इस खदान को कथित तौर पर माइथ्री इंफ्रास्ट्रक्चर एंड माइनिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को सब-लीज पर दे दिया. दर्ज FIR के अनुसार, "खदान विरोधी प्रदर्शनकारियों से प्रतिरोध की आशंका को देखते हुए माइथ्री अधिकारियों ने काशीपुर पुलिस से अनुरोध किया था कि कुछ पुलिसकर्मियों को उनके साथ साइट पर जाने की अनुमति दी जाए."

माइथ्री इंफ्रास्ट्रक्चर एंड माइनिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के एक कर्मचारी पिटिबाश नायक की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई FIR के अनुसार, “सुबह करीब 10 बजे माइथ्री के अधिकारी पुलिस कर्मियों के साथ पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे. चोटी पर पहुंचकर जब वे साइट का निरीक्षण कर रहे थे तभी पड़ोसी गांवों- बंतेजी, कंटामल, अलीगुना, बंदेल, तलंबा पदर, खुरीगांव और सियादिमल के लगभग 200 लोगों ने कुल्हाड़ी, लाठी, तलवार जैसे घातक हथियारों से लैस होकर हम लोगों को घेर लिया और साइट का आगे निरीक्षण नहीं करने दिया.”

सिजिमाली पहाड़ी पर ग्राम सभा की बैठक.

(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)

FIR में आगे यह भी आरोप लगाया गया है कि माइथ्री के कर्मचारियों और पुलिस अधिकारियों को “हिंसक भीड़ ने अधिकारियों को मारने के इरादे से बंधक बना लिया था और इसी क्रम में उन्होंने उन पर कुल्हाड़ियों से वार किया था.”

हालांकि स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि इस मामले में मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां की जा रही हैं. जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने स्थानीय लोगों के इन दावों का खंडन किया. नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिसकर्मी ने द क्विंट को बताया कि “इस मामले में गिरफ्तारियां मनमानी नहीं हैं. जिन लोगों के ऊपर आरोप लग रहे हैं और जांच कर उन्हें जेल भेजा जा रहा है, वह लोग निश्चित तौर पर अपने बचाव में ऐसी बातें कहेंगे.”

‘हिरासत में प्रताड़ना’ और ‘गैर-न्यायिक गिरफ्तारियों' के गंभीर आरोप

स्थानीय लोगों और खनन विरोधी कार्यकर्ताओं ने FIR में किए गए दावों का खंडन किया है.

मामले की जानकारी रखने वाले काशीपुर निवासी और खनन विरोधी कार्यकर्ता 28 वर्षीय लक्ष्मण नाइक के अनुसार “खनन अधिकारी और पुलिसकर्मी इस घटना को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं. मेरी जानकारी के अनुसार प्रदर्शनकारियों और माइथ्री अधिकारियों के बीच बहस और विवाद हुआ था. प्रदर्शनकारियों द्वारा अधिकारियों को शारीरिक रूप से चोट पहुंचाने का कोई प्रयास नहीं किया गया था, जैसा कि FIR में दावा किया जा रहा है. हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने अधिकारियों से एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करवाया कि वे स्थानीय लोगों से परामर्श किए बिना खनन स्थल पर नहीं आएंगे, जिस पर उन्होंने हस्ताक्षर किए और इसके बाद उन्हें जाने दिया गया.”

लक्ष्मण ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए आगे कहा कि “अगर उनके पास अपने आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, तो वे आधी रात में उन लोगों का ही अपहरण क्यों कर रहे हैं जो खनन विरोधी आंदोलनों के नेता हैं?"

काशीपुर के ग्रामीण भी लक्ष्मण के इन आरोपों का समर्थन करते हैं.

द क्विंट से बात करते हुए उमाकांत नाइक की पत्नी इंदु नाइक ने कहा कि “मेरे पति गैराज में मैकेनिक का काम करते हैं. जब हम सो रहे थे तब पुलिस ताला तोड़कर घर में घुसी और मेरे पति को अपने साथ ले गई. वो रात करीब 12.30 बजे आए और उसे 1 बजे ले गए."

हालांकि, उमाकांत FIR में नामित मुख्य आरोपियों में से नहीं है, लेकिन शिकायतों में उसे साइट पर मौजूद बाकी प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल किया गया है.

उपेंद्र बाग पर 6 अगस्त को UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था.

(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)

नियमगिरि सुरक्षा समिति के 53 वर्षीय सदस्य उपेंद्र बाग वर्तमान में जेल हैं. कल्याण सिंहपुर थाने में उनके खिलाफ IPC की अलग-अलग धाराओं और UAPA के तहत के FIR दर्ज हैं. उनपर पुलिस स्टेशन पर हमला करने का भी आरोप है. उन्होंने हिरासत में प्रताड़ना का गंभीर आरोप लगाया है.

द क्विंट के पास मौजूद चार मिनट और 13 सेकंड लंबे ऑडियो क्लिप में, वर्तमान में रायगड़ा सिविल जेल में बंद उपेंद्र ने आरोप लगाया है कि “मेरे हाथ और पैर बुरी तरह से दर्द कर रहे हैं इनका हिलना-डुलना मुश्किल सा हो रहा है. पुलिस द्वारा 3-4 दिनों से लगातार पिटाई के कारण मेरी नजर धुंधली सी हो गई है. हर कोई इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहा है, लेकिन मुझे नहीं पता है कि मैं क्या करूं. मुझे दर्द हो रहा है, मेरा हिलना-डुलना मुश्किल हो रहा है, मैं बस यहीं पड़ा हूं."

6 अगस्त को हुई गिरफ्तारी के बाद से उपेंद्र के 27 वर्षीय बेटे रशिको बाग को अपने पिता से मिलने की दो बार अनुमति दी गई है. रशिको ने द क्विंट से बात करते हुए आरोप लगाया है कि “मेरे पिता बहुत दर्द में हैं. उन्होंने (पुलिस ने) अब उन्हें पीटना बंद कर दिया है, क्योंकि उन्हें यह एहसास हो गया है कि अगर अब उन्हें और पीटा तो वह मर जाएंगे. उन्हें शिकायत दर्ज करने के लिए कलम और कागज तक की अनुमति नहीं दी जा रही है.”

(द क्विंट ने प्रतिक्रिया के लिए संबंधित पुलिस से संपर्क किया है। पुलिस की प्रतिक्रिया आने के बाद यह स्टोरी अपडेट की जाएगी।)

वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023 ने खनन कार्यों का मार्ग कैसे आसान किया?

लोकसभा ने इस साल 26 जुलाई को वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 पारित किया, जिसने कुछ वन भूमि को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों से छूट दी.

यह अधिनियम संशोधित वन में रहने वाली जनजातियों के अधिकारों का सीधा-सीधा उल्लंघन है, जो उन्हें 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए हैं. वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार स्थानीय समुदाय को अपनी ग्राम सभाओं के माध्यम से वनों के परिवर्तन की अनुमति देने का अधिकार है.

नए संशोधनों के अनुसार, यदि कोई भूमि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के दायरे के बाहर आती है, तो उस भूमि के परिवर्तन के लिए ग्राम सभा से सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है.

डोंगरिया कोंध जनजाति के सदस्य.

(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)

नियमगिरि के डोंगरिया कोंध ने 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई जीती थी. उड़ीसा माइनिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम पर्यावरण और वन मंत्रालय मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने वेदांता की बॉक्साइट खनन परियोजना पर उक्त समुदाय से सहमति प्राप्त करने के लिए प्रभावित ग्राम सभाओं के बीच जनमत संग्रह कराने का आदेश दिया था, जिस समुदाय ने सर्वसम्मति से इसके खिलाफ मतदान किया था.

ओडिशा में दलित और आदिवासी समूहों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन मुलनिवासी समाजसेवक संघ (एमएसएस) से जुड़े कार्यकर्ता मधुसूदन ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि “ये नए नियम बड़े कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं, जिसका असर दलितों और वनवासियों पर पड़ रहा है.”

मधुसूदन ने आगे बात करते हुए कहा कि “वेदांता या माइथ्री ग्राम सभाओं से मंजूरी लिए बिना खनन प्रक्रिया कैसे शुरू कर सकते हैं या साइट का निरीक्षण कैसे कर सकते हैं? ये नए नियम उन्हें इस प्रक्रिया को बायपास करने की अनुमति देते हैं लेकिन आदिवासी इसके खिलाफ लड़ेंगे.”

वह आगे कहते हैं कि “हमें संदेह है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सत्तारूढ़ बीजेपी-बीजेडी गठबंधन कॉरपोरेट्स के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा है और यह सब उसी कारण से हो रहा है.”

आगे क्या?

द क्विंट से बात करते हुए आंदोलन के शुरुआती दिनों से जुड़े रहे लक्ष्मण नाइक ने बताया कि आदिवासी समुदाय का इरादा विकास कार्यों को रोकना कतई नहीं है. उन्होंने कहा कि “हम किसी भी तरह के विकास कार्यों के खिलाफ नहीं हैं. हम तो बस विकास कार्यों में उचित हिस्सेदारी चाहते हैं. वो लोग हमारी जमीनें बेहद सस्ते दामों पर ले रहे हैं और उसके बदले में हमसे नौकरी, स्कूल और कई अन्य चीजें देने का वादा कर रहे हैं, लेकिन हमें अंत में कुछ भी हासिल नहीं होता.”

उन्होंने आगे कहा कि “हम बस इतना चाहते हैं कि वे जनमत संग्रह के साथ-साथ सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद ही खनन जैसा कार्य शुरू करें.”

मधुसूदन के अनुसार, प्रदर्शनकारियों की प्रशासन के सामने तीन प्रमुख मांगें हैं:

  1. पुलिस 5 अगस्त से 31 अगस्त के बीच गिरफ्तार किए गए लोगों के ठिकाने की घोषणा करे, साथ ही इन गिरफ्तारियों की न्यायिक जांच शुरू करे.

  2. नियमगिरि और काशीपुर में खनन विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा किया जाए और UAPA और शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को खत्म किया जाए.

  3. खनन के प्रयोजनों के लिए कॉरपोरेट्स को भूमि पट्टे पर देने से पहले ग्राम सभाओं से परामर्श किया जाए.

(द क्विंट ने ओडिशा के उप महानिरीक्षक (DIG) और पुलिस अधीक्षक (SP), रायगड़ा से संपर्क किया है. उनका जवाब आने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.)

(द क्विंट में हम सिर्फ अपने पाठकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच का कोई विकल्प नहीं है.)

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