advertisement
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों के तहत धीरे-धीरे पैसेंजर ट्रेनों को शुरू करने का मोदी सरकार का फैसला राज्यों के विरोध के कारण बेपटरी हो सकता है.
मुख्यमंत्रियों के साथ पीएम मोदी की चौथी वीडियो कांफ्रेंस के दौरान इस मसले पर केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच बड़ा मतभेद नजर आया. पैसेंजर ट्रेन शुरू करने के केन्द्र सरकार के फैसले पर कई राज्यों ने आपत्ति जताई, जिसमें बीजेपी से कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा से लेकर, एनडीए से बिहार के सीएम नीतीश कुमार और तमिलनाडु के सीएम ई के पलानीस्वामी, और सियासी तौर पर तटस्थ माने जाने वाले तेलंगाना के के. चन्द्रशेखर राव और आंध्र प्रदेश के जगन रेड्डी तक शामिल थे.
अब आप इसे अनजाने में किया गया विरोध भी कह सकते हैं, लेकिन इससे ये तो साफ हो गया कि केन्द्र सरकार ने ये निर्णय बिना सोचे-समझे और जल्दबाजी में लिया, राज्यों से इस बारे में कोई राय नहीं ली गई, ताकि स्टेशन तक आने और वहां से निकलने के कोई इंतजाम किए जाएं (क्योंकि सार्वजनिक परिवहन बंद हैं), ताकि प्लेटफॉर्म पर स्क्रीनिंग और लोगों के क्वॉरंटीन किए जाने जैसी जो भी एहतियाती सुविधाएं राज्य सरकारें मुहैया कराना चाहें करा सकें.
हालांकि अब तक रेलवे ने कुछ ट्रेनों को हरी झंडी दिखाकर विदा जरूर कर दिया है. अगले पांच दिनों के लिए बुकिंग पूरी हो चुकी हैं. लेकिन ऐसी सलाह दी गई है कि जब तक ये पूरा मामला सुलझ नहीं जाता रेलवे अगले हफ्ते के लिए टिकटों की बुकिंग नहीं करेगा.
धीरे-धीरे मुख्यमंत्रियों के बीच ये आम राय बनती जा रही है कि वीडियो कांफ्रेंस की ये पूरी प्रकिया व्यर्थ है, अगर केन्द्र सरकार पीएम के साथ बैठक से ठीक पहले मनमाने तरीके से एकतरफा फैसले लेता रहता है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजय ने आखिरी बैठक में शामिल ना होकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी. इस बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुलकर अपनी खीझ निकाली. ‘अगर आप ऐसे ही बैठक से ठीक पहले फैसले लेते रहेंगे, तो फिर इस बैठक का क्या मतलब रह जाता है?’ ममता ने मीटिंग में अपनी बात यहीं से शुरू की.
हैरानी की बात ये है कि नीतीश कुमार भी बरस पड़े. ट्रेन चलाए जाने के फैसले पर उनसे कोई चर्चा नहीं किए जाने से वो खफा थे, खास तौर पर इसलिए क्योंकि वो खुद भी रेल मंत्री रह चुके हैं. ‘मेरी राय ली जानी चाहिए थी,’ नीतीश ने सरकार को याद दिलाया. उन्होंने पैसेंजर ट्रेनों के दोबारा चलाए जाने के फैसले को एक ‘भूल’ बताया.
जहां ट्रेन का मसला मीटिंग पर पूरी तरह हावी रहा, मुख्यमंत्रियों ने कई दूसरों मसलों पर भी केन्द्र से अपनी शिकायतें दर्ज कराई.
एक बार फिर अपने सभी साथियों की तरफ से ममता हीं ज्यादा बोलीं. ‘हम सब मिलकर लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ केन्द्रीय मंत्री बैठकर सिर्फ राजनीति कर रहे हैं. ये संघीय ढांचे के लिए ठीक नहीं है,’ ममता ने साफ किया.
इन सबके बीच केन्द्र से मिलने वाली मदद का मुद्दा वो मसला था जिसे उठाकर ममता ने सभी मुख्यमंत्रियों के दिल की बात पीएम मोदी के सामने रख दी. ‘अब तक हुई सभी बैठकों में राज्य की जरूरतों का मुद्दा उठाया गया. लेकिन अभी तक हमें कोई भी वैकल्पिक सहारा नहीं मिला है,’ ममता ने शिकायत की.
यह मसला पीएम और मुख्यमंत्रियों की पिछली सभी मीटिंग में उठाया जा चुका है, पहले मुख्यमंत्रियों ने मोर्चे पर सबसे आगे खड़े स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षा उपकरण, प्रवासी मजदूरों की देखभाल के लिए आर्थिक मदद, जीएसटी की बकाया राशि के भुगतान (जिसका केन्द्र ने अभी आंशिक भुगतान किया है), कर्ज की सीमा बढ़ाने जैसे मुद्दे सामने रखे. ज्यादातर मुख्यमंत्रियों की तकलीफ यह है कि उनकी सारी मांगों को अनसुना कर दिया गया है.
केन्द्र से आर्थिक मदद के अभाव में, राज्य सरकारें पैसे की उगाही के लिए और स्वायत्तता की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि आपदा प्रबंधन कानून के तहत केन्द्र ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं वो बेहद सख्त हैं और इससे महामारी और प्रशासन से जुड़े दूसरे मसलों से निपटने की उनकी क्षमता बाधित होती है.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर इस बारे में खूब बोले. उन्होंने कहा कि ग्रीन, ऑरेंज और रेड जोन निर्धारित करने का अधिकार राज्यों के पास होना चाहिए, इसमें केन्द्र की कोई दखल नहीं होनी चाहिए. ताकि उनके पास यह अधिकार हो कि किस इलाके में कौन सी आर्थिक गतिवधियों को शुरू करने की इजाजत दी जाए.
लेकिन मुख्यमंत्रियों द्वारा कई तरह के मसले उठाने की वजह से कोई आम सहमति नहीं बन पाई, और पीएम मोदी ने करीब 7 घंटे चली मैराथन बैठक को ठीक वैसे ही खत्म किया जैसे पहले की बैठकों में हुआ था. पीएम ने सभी मुख्यमंत्रियों से 15 मई तक लॉकडाउन से बाहर निकलने का ब्लूप्रिंट तैयार कर उन्हें भेजने को कहा.
पीएम के इस अनुरोध पर राजनीतिक समीक्षकों के दिमाग में एक सवाल उठा, आखिर पिछली मीटिंग में मांगे गए रोडमैप का क्या हुआ.
(लेखिका दिल्ली में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेखिका के अपने विचार हैं और इससे क्विंट का सरोकार नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)