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करीब 2400 साल पहले एक शख्स जिस पेड़ की डाल पर बैठा था, उसे ही काट रहा था. उसे लोग महामूर्ख कहते थे. बाद में यही महामूर्ख दुनिया भर में महाकवि कालिदास के रूप में जाने गए. उन्होंने खंडकाव्य 'मेघदूतम' की रचना की. 'मेघदूतम' में यक्ष अपनी यक्षिणी की विरह वेदना में बादल से रिक्वेस्ट करता है कि प्लीज मेरी यक्षिणी तक संदेश पहुंचा देना. यही मेघदूतम यानी बादल आज फिर चर्चा में है. दरअसल, अब बादल का एक स्ट्रैटजिक इस्तेमाल सामने आया है. पता चला है कि बादल हों तो लड़ाकू विमानों की आहट रडार को लगने नहीं देते. कालिदास को बादलों का ऐसा शानदार इस्तेमाल पता होता तो वो उसे महज पोस्टमैन का रोल नहीं देते. यकीनन आज कालिदास होते तो अपनी कम कल्पनाशीलता के लिए खुद को फिर से महामूर्ख कहने लगते.
एक बार त्रिपुरा के बीजेपी नेता और सीएम बिप्लब देब ने बताया था कि महाभारत में संजय इंटरनेट और सैटेलाइट के जरिए ही धृतराष्ट्र को दूर हो रहे युद्ध का आंखों देखा हाल सुना रहे थे. 2014 में पीएम मोदी कह चुके हैं कि दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी का कौशल भारत की देन है. सबसे पहले गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी हुई. 2014 में ही पीएम मोदी ने स्कूली बच्चों को समझाया था कि जलवायु परिवर्तन कुछ नहीं है, बल्कि बढ़ती उम्र और सहने की कम होती शक्ति के कारण ज्यादा ठंड महसूस होती है. लेकिन इस बार पीएम मोदी ने अपने कई सर्वज्ञानी नेताओं का ही नहीं, अपना भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है. आखिर लीडर वही तो होता है जो लीड ले ले.
कालिदास का ओरिजिनल आइडिया न जाने कितनों ने टीपा. किसी ने कहा - मेघा रे मेघा रे, न परदेस जा रे, आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे... तो किसी ने प्रेयसी को समझाया-चांद छिपा बादल में, शरमा के मेरी जाना, सीने से लग जा तू...अंग्रेजों के ‘दि रोलिंग स्टोन्स’ ने भी अपनी भड़ास निकालने के लिए बादलों को यूज किया, और कहा ‘गेट ऑफ माइ क्लाउड...’ लेकिन बादलों के स्ट्रैटजिक इस्तेमाल की कल्पना वो भी नहीं कर पाए.
बेचारे कालिदास, मेघदूतम लिखा तो सोचा कि लोग सवाल करेंगे कि भला बेजान बादल संदेश कैसे पहुंचा सकते हैं. सो डिसक्लेमर दे दिया.
धूमज्योति: सलिलमरुतां संनिपात: क्व मेघ:
संदेशार्था: क्व पटुकरणै: प्राणिभि: प्रापणीया:।
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन्गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनुषु।।
कालिदास को क्या पता था कि बादल बड़े-बड़े लड़ाकू विमानों को छिपा सकते हैं. तो क्या यक्ष का छोटा-मोटा संदेश यक्षिणी तक नहीं पहुंचा सकते? बेकार में यक्ष को काम का सताया हुआ कह दिया.
देश में आज भी किसान सरकार के बजाय बादलों की तरफ देखते हैं. उससे कहते हैं कि बरसो, तो खेतों की ओर चलें, कुछ बोएं, कुछ उगाएं, कुछ खाएं. विदर्भ से लेकर बुंदेलखंड तक के लोग बादलों से बतियाते हैं कि बरसो तो गला तर हो. चीन तो पॉल्यूशन हटाने के लिए खुद बादल बना रहा है. लेकिन दुश्मन देश को बादलों की आड़ में सबक सिखा सकते हैं, ये क्रांतिकारी आइडिया उसे भी नहीं आया.
बेचारे हेनरिक हर्ट्ज और क्रिश्चियन हल्समायर ने न जाने कितनी रातें,कितने दिन गंवा दिए ये जानने में कि इलेक्ट्रोमेग्नेटिक वेव्स जब किसी चीज से टकराते हैं तो वापस आते हैं. इनको पढ़कर उस चीज की दूरी, चाल, दिशा और आकार बारे में पता लगा सकते हैं. उनका तो ये भी कहना था कि खराब मौसम भी इन वेव्स को नहीं रोक पाता. न बादल और न ही कोहरा. उसके कहे पे रडार सिस्टम का पहला इस्तेमाल ही यही हुआ कि कोहरे के कारण समुद्र में जहाजों को टकराने से बचाया गया. लेकिन नए 'रॉ विस्डम' के सामने रडार पर काम करने वाले इन दोनों ही क्या सारे वैज्ञानिकों की बुद्धि बौनी हो गई होगी.
बादलों के कारण पाकिस्तान हमारे विमान नहीं देख पाया. चलिए ये तो अच्छा हुआ लेकिन बादल राष्ट्रवादी तो हैं नहीं. कहीं भी उड़कर चले जाते हैं. यही बादल उनका सपोर्ट कर दें तो? अगर उनके विमान बादलों में छुप-छुप कर हम पर हमला करने आएं तो क्या होगा. हमारे रडार तो उन्हें पकड़ पाएंगे नहीं?
चीनियों से और भी खतरा है. वो वैसे ही जब तब हमारी सीमा में घुस जाते हैं. अगर उन्हें बादल के इस गुण के बारे में पता चल गया तो गजब ही हो जाएगा. क्योंकि वो तो बादल बनाते भी हैं. पता नहीं किस चीज को छुपाने के लिए कब, कहां और कितने बादल बना दें और घुसे चले आएं बादलों की ओट में.
अब उड़ाने वाले तो उनकी इस बात का भी मजाक उड़ा रहे हैं. उन्हें कोई काम तो है नहीं. खलिहर हैं. जो शख्स सारी-सारी रात जगकर देश के लिए एक से एक आइडिया सोचता रहता है, उसके पास उनके मजाक पर जवाब देना का टाइम कहां? जिन लोगों को इंटरव्यू में ‘आम कैसे खाते हैं’ ‘कितने घंटे सोते हैं’ जैसी छोटी जानकारियों से शिकायत थी, उन्हें नए इंटरव्यू में कुछ नया और बड़ा हाथ लगा है, ये सोचना चाहिए.
लगता है कि इस चुनाव, बादलों की ऐसी ही ओट में बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे, इकनॉमी की खस्ताहालत जैसे मुद्दे छुप गए और मेनस्ट्रीम मीडिया का रडार जवाबदेही के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ नहीं पा रहा.
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