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कश्मीर में मीडिया पर पाबंदी: आलोचना के बाद बैकफुट पर प्रेस काउंसिल

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद ने अनुराधा भसीन की याचिका में हस्तक्षेप किया था.

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भारत
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प्रतीकात्मक फोटो
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प्रतीकात्मक फोटो
(फोटो: iStock)

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जम्मू-कश्मीर में मीडिया पर लगे प्रतिबंधों पर सरकार का साथ देने पर घिरी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया अब बैकफुट पर नजर आ रही है. मंगलवार को काउंसिल ने अपने सदस्‍यों को एक चिट्ठी भेजते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कश्‍मीर टाइम्‍स की संपादक अनुराधा भसीन की याचिका के संदर्भ में वह प्रेस की आजादी का पक्ष लेगा. बता दें कि 10 अगस्त को अनुराधा भसीन ने कश्मीर में कम्यूनिकेशन ब्लैकआउट के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

लेकिन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद ने अनुराधा भसीन की याचिका में हस्तक्षेप करते हुए सरकार के कदमों का समर्थन किया था और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई थी.

सुप्रीम कोर्ट मे अपने हलफनामे में PCI के अध्यक्ष ने कहा था, “प्रेस काउंसिल के मुताबिक पत्रकारों को राष्ट्रीय, सामाजिक और व्यक्तिगत हितों के मामलों में रिपोर्टिंग के दौरान सेल्फ-रेगुलेशन रखना चाहिए. इस याचिका का मकसद स्वतंत्र रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय हित भी ख्याल रखना है. अतः प्रेस की स्वतंत्रता और देशहित में मैं कोर्ट की मदद करना चाहता हूं.”

प्रेस काउंसिल ने अपने चिट्ठी में लिखा है,

“इन परिस्थितियों में, यह स्पष्ट किया गया है कि अगर अदालत में पूछा जाता है, तो काउंसिल यह बताएगी कि वो प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खड़ी है और मीडिया पर किसी भी तरह के प्रतिबंध को मंजूरी नहीं देती है.”
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PCI की चौतरफा आलोचना

जस्टिस चंद्रमौली प्रसाद के इस कदम के बाद उनकी चौतरफा आलोचना हुई थी. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पत्रकारों ने आपत्ति जताते हुए कहा, “वो 'गंभीर रूप से चिंतित' हैं. प्रेस काउंसिल न सिर्फ कश्मीर मुद्दे पर बोलने में फेल हो रही है, बल्कि देश हित के नाम पर मीडिया पर जो शिकंजा कसा गया है उस पर भी बोलने पर नाकाम रही है. गिल्ड ने बयान में कहा है कि ये ऐसा समय है, जब पत्रकारों को ग्राउंड लेवल से काम करने पर निशाना बनाया जा रहा है.”

PCI के सदस्य भी जता चुके हैं आपत्ति

यहां तक कि प्रेस काउंसिल के खुद के 11 सदस्य भी चेयरमैन के बयान पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. सदस्यों के एक ग्रुप ने पीसीआई के कदम पर सवाल उठाए और कहा था कि पीसीआई के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस सीके प्रसाद के कदम से पहले या बाद में उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया.

इंडियन वूमेंस प्रेस कोर और प्रेस एसोसिएशन जैसे मीडिया ग्रुप भी पीसीआई के सुप्रीम कोर्ट जाने के कदम को ‘‘एकतरफा कदम’’ बताया. आईडब्ल्यूपीसी ने बयान में कहा था कि सीके प्रसाद ने ऐसा कदम उठाने से पहले पीसीआई के दूसरे सदस्यों से बातचीत नहीं की.

सीनियर पत्रकारों और पूर्व चेयरमैन ने भी उठाए सवाल

सीनियर पत्रकार एन राम ने इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है. उनका गुस्सा इतना ज्यादा है कि उन्होंने ये तक कह दिया कि काउंसिल इससे ज्यादा और नहीं गिर सकती थी.

पीसीआई के पूर्व चेयरमैन जस्टिस पीबी सावंत ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में पीसीआई के मौजूदा चेयरमैन के फैसले पर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा है, “मैंने सुना है कि पीसीआई के सदस्यों ने इस फैसले का विरोध किया है और चेयरमैन ने अपनी क्षमता से सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया है। लेकिन किसी भी मामले में, चाहे वह अकेले सुप्रीम कोर्ट के पास गए हों या पीसीआई के अध्यक्ष के रूप में, मीडिया पर प्रतिबंधों का यह औचित्य दुर्भाग्यपूर्ण है.”

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