Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019राजा राम मोहन राय,जिन्होंने सती प्रथा-बाल विवाह के खिलाफ उठाई आवाज

राजा राम मोहन राय,जिन्होंने सती प्रथा-बाल विवाह के खिलाफ उठाई आवाज

ब्राह्मण परिवार में जन्मे, लेकिन हिंदू रीति रिवाजों के खिलाफ हुए खड़े

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
आज राजा राम मोहन राय की 247वीं जयंती है
i
आज राजा राम मोहन राय की 247वीं जयंती है
(फोटो: Twitter)

advertisement

बचपन में हिंदी की किताबों में सती प्रथा, बाल विवाह जैसे भारी भरकम शब्दों के मतलब समझ नहीं आते थे. तब हम इन शब्दों के दर्द समझ से परे थे. लेकिन अब जब इन शब्दों के मायने समझ में आते हैं तो एक नाम सबसे ज्यादा याद आता है तो वो है समाज सुधारक राजा राम मोहन राय का.

आज राजा राम मोहन राय की 247वीं जयंती है. राजा राम मोहन राय को देश में 'आधुनिक भारत के निर्माता' और 'पुनर्जागरण काल के जनक' के तौर पर जाना जाता है. राजा राम मोहन राय ने 19वीं सदी में समाज सुधार के लिए कई बड़े आंदोलन चलाए, जिनमें सती प्रथा को खत्म करना सबसे अहम है.

ब्राह्मण परिवार में जन्मे, लेकिन हिंदू कुरीति रिवाजों के खिलाफ हुए खड़े

राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर गांव में हुआ था.

एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन बचपन से ही उन्होंने कट्टर हिंदू रीति रिवाजों और रूढ़ियों की खिलाफत शुरू कर दी थी. मूर्तिपूजा के विरोधी राजा राम मोहन राय एकेश्वरवाद मतलब एक भगवान के समर्थक थे.

भले ही आज सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर उतरकर लोग औरतों की बात कर रहे हों, लेकिन आज से करीब 200 साल पहले राजा राम मोहन राय ने ऐसे वक्त में आवाज उठाई थी जब विधवा औरतों की दोबारा शादी और बाल विवाह की बीमारी ने समाज को जकड़ रखा था.

दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे राम मोहन राय

उस वक्त देश में धीरे-धीरे अंग्रेजों का हस्तक्षेप ईस्ट इंडिया के जरिए बढ़ता जा रहा था. राम मोहन ने साल 1803 से लेकर 1804 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भी काम किया. लेकिन इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इस दौरान वो दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे. पहली अंग्रेजों के खिलाफ और दूसरी अपने ही देश के लोगों से जो अंधविश्वास में जकड़े थे. राजा राममोहन राय सारी जिंदगी अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े लोगों को सही रास्ता दिखाने में जुटे रहे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

बचपन में छोड़ा घर

पिता से धर्म और आस्था को लेकर कई मुद्दों पर मतभेद के कारण उन्होंने बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया था. इस बीच उन्होंने हिमालय और तिब्बत के क्षेत्रों का व्यापक दौरा किया और चीजों को तर्क के आधार पर समझने की कोशिश की.

उन्होंने संस्कृत के साथ फारसी और अरबी पढ़ी, जिसने भगवान के बारे में उनकी सोच को प्रभावित किया. उन्होंने उपनिषदों, वेदों और कुरान का अध्ययन किया और कई ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया.

घर लौटने पर उनके माता-पिता ने यह सोचकर उनकी शादी कर दी कि उनमें 'कुछ सुधार' आएगा, पर वह हिन्दुत्व की गहराइयों को समझने में लगे रहे, ताकि इसकी बुराइयों को सामने लाया जा सके और लोगों को इस बारे में बताया जा सके.

उन्होंने उपनिषदों और वेदों को पढ़ा और 'तुहफत अल-मुवाहिदीन' लिखा. यह उनकी पहली पुस्तक थी और इसमें उन्होंने धर्म में भी तार्किकता पर जोर दिया था और रूढ़ियों का विरोध किया.

महिलाओं को पुनर्विवाह का अधिकार, संपत्ति रखने के अधिकार के लिए लड़ाई

समाज सुधारक के तौर पर उन्होंने महिलाओं के समान अधिकारों के लिए अभियान चलाया, जिसमें पुनर्विवाह का अधिकार और संपत्ति रखने का अधिकार शामिल है. 26 सितंबर, 1833 को मेनिंजाइटिस के कारण इंग्लैंड में ब्रिस्टल के पास एक गांव में रॉय का निधन हो गया.

यह भी पढ़ें: चार्ली चैपलिन की ये ‘थ्योरी’ आपकी जिंदगी का नजरिया बदल देंगी

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 22 May 2018,11:41 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT