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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election) लड़ने का फैसला किया है. एएनआई के मुताबिक, जयपुर में असदुद्दीन ओवैसी ने ऐलान किया कि अगले एक डेढ़ महीने में हम अपनी पार्टी राजस्थान में शुरू करने वाले हैं और निश्चित रूप से हम अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.
सवाल ये है कि राजसथान की राजनीति में ओवैसी की एंट्री का क्या असर होगा और किस पर होगा? इस सवाल के जवाब से पहले हैदराबाद के बाहर पैर फैलाते ओवैसी के प्रदर्शन को अलग-अलग राज्यों में देखते हैं. ताकि सवाल का जवाब आसानी से खोजा जा सके.
ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2014 में महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें दो सीटें इनके हिस्से आई थीं. इसके बाद पार्टी ने 2019 का विधानसभा भी लड़ा. इसमें भी ओवैसी की पार्टी ने दो सीटें ही जीतीं, लेकिन इस बार वो पुरानी दोनों सीटें हार गए और दो नई सीटों पर AIMIM के उम्मीदवार को जीत मिली.
2020 में बिहार का विधानसभा चुनाव ओवैसी की पार्टी ने लड़ा, जिसमें उन्हें 5 सीटों पर जीत मिली. असदुद्दीन ओवैसी का हौसला सबसे ज्यादा इसी प्रदर्शन ने बढ़ाया. AIMIM ने ये पांचों सीटें सीमांचल इलाके में जीतीं, जो मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है. इससे पहले 2019 में हुए उपचुनाव में भी ओवैसी की पार्टी ने बिहार में 1 सीट जीती थी.
बिहार के बाद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने बंगाल का रुख किया. लेकिन यहां पार्टी को ज्यादा वोट हासिल नहीं हुए और ओवैसी की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई.
इसी साल मार्च में हुए गुजरात निकाय चुनाव में भी AIMIM ने किस्मत आजमाई थी. जहां उसे ठीक-ठाक सफलता मिली. ओवैसी ने यहां भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ गठबंधन किया था. ओवैसी की पार्टी ने गोधरा में 8 नगर पालिका सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 जीतीं, मोडासा नगर पालिका में ओवैसी की पार्टी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की. इसके अलावा भरूच में भी एक नगर पालिका सीट AIMIM ने जीती थी
असदुद्दीन ओवैसी पहले ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर चुके हैं. उन्होंने 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. इसके अलावा छोटे दलों का एक थर्ड फ्रंट बनाने को लेकर भी सक्रिय थे लेकिन ओपी राजभर ने अब सपा से गठबंधन कर लिया है. लेकिन युपी में मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की नजर है. यूपी में करीब 19 फीसदी मुसलमान हैं.
1971 में बरकतुल्लाह खान राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान में अभी लगभग 9 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो राज्य की करीब 36 सीटों को प्रभावित करती है. जिनमें से 15 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है. राजस्थान में 8-10 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर नतीजे तय करता है. ओवैसी की नजर इन्हीं सीटों पर है.
2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 14 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 7 ने जीत हासिल की. बीजेपी ने इस चुनाव में 1 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था, लेकिन वो भी हार गया. इससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जो सभी हार गए थे. इसके उलट बीजेपी के 4 में से 2 मुस्लिम उम्मीदवार जीत गए थे.
इसका मतलब है कि सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीजेपी भी राजस्थान में मुस्लिमों को टिकट देती रही है और वो जीते भी हैं. अगर पिछले चुनाव को छोड़ दें तो उससे पहले मुस्लिम उम्मीदवारों के जीतने के मामले में कांग्रेस से से अच्छा स्ट्राइक रेट बीजेपी का था.
तो ऊपरी तौर पर देखकर राजनीतिक पंडित कह सकते हैं कि ओवैसी के आने से मुस्लिम वोट कटेगा और कांग्रेस को नुकसान होगा, नतीजे बताते हैं कि राजस्थान में मुसलमान बीजेपी को भी वोट करते रहे हैं.
कांग्रेस नेता ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की बी-टीम कहते हैं. इसके अलावा आजकल यूपी में सपा-बसपा भी यही कह रह हैं. इससे पहले जब बिहार में महागठबंधन सरकार नहीं बना पाया तब भी कांग्रेस और आरजेडी ने यही कहा था. अब राजस्थान में भी ओवैसी की एंट्री हो रही है.
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