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सभी दल EC को दें इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी: सुप्रीम कोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट

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भारत
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इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट
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इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट
(फोटो:द क्विंट)

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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने वाले सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे 30 मई तक इस चंदे की जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दे दें. कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों, चंदे की राशि और इन बॉन्ड से जुड़ी बाकी डिटेल्स चुनाव आयोग को देनी होंगी.

इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि वोटर्स को चुनावी चंदा जानने की क्या जरूरत है. सुनवाई में ये सुप्रीम कोर्ट ने नया खुलासा करते हुए कहा था कि नए संशोधन के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड से कौन सी पार्टी कितना चंदा ले रही है, ये जानकारी चुनाव आयोग को देना जरूरी नहीं है

नहीं लगाई अंतरिम रोक

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया था कि चुनाव खत्म होने तक इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर अंतरिम रोक लगाई जाए. लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि ये बड़ा मामला है, इस मामले को लेकर बाकी चीजें देखनी होंगी.

बीजेपी को सबसे ज्यादा चंदा

इलेक्शन कमीशन में जमा की गई रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी को साल 2017-18 में सबसे ज्यादा चंदा मिला है. बीजेपी को 210 करोड़ रुपये 2000 रुपये के रूप में मिले. देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए जो चंदा मिला, उसमें से बीजेपी का 94.5% हिस्सा है. जमा की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि बीजेपी को 210 करोड़ रुपये मिले है. चुनावी चंदे के लेनदेन को पारदर्शी बनाने के लिए बने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए इस साल सबसे अधिक चंदा बीजेपी को ही मिला है.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड के पैसों की जानकारी देने को कहा है, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि लोगों को चुनावी चंदे की जानकारी मिल पाएगी या नहीं. चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में मिली इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक होने पर ही लोगों को पता चल पाएगा कि किस पार्टी को किसने कितना पैसा दिया है

याचिकाकर्ता के आरोप

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के याचिकाकर्ता, एडवोकेट प्रशांत भूषण ने अदालत को इस मामले की एक सुनवाई के दौरान बताया था कि अब तक बेचे गए 95 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के पक्ष में हैं. भूषण ने इसे चुनाव से पहले का किकबैक कहा था. जिसके बाद अब इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.

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क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?

ये एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट हैं, यानी ये धारक को उतना पैसा देने का वादा करते हैं. ये बॉन्ड सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं. ये बॉन्ड आप एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की राशि में ही खरीद सकते हैं. ये इलेक्टोरल बॉन्ड आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही ले सकते हैं. ये बॉन्ड आप अकेले, समूह में, कंपनी या फर्म या हिंदू अनडिवाडेड फैमिली के नाम पर खरीद सकते हैं.

ये बॉन्ड आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और खरीदने के 15 दिनों के अंदर उस राजनीतिक पार्टी को उस बॉन्ड को भुनाना जरूरी होगा, वरना वो पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड पार्टियां जिन्होंने पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किया है, वो ही इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने कीहकदार होंगी. चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को एक वेरिफाइड अकाउंट खुलवाएगी और इसी के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे.

ये भी देखें: बीजेपी को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिलने का चक्कर क्या है?

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Published: 12 Apr 2019,07:50 AM IST

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