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इलेक्टोरल बॉन्ड पर ‘द क्विंट’ की रिपोर्ट के कारण SC में फंसी सरकार

चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि हम इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं लेकिन इसमें पारदर्शिता में कमी के खिलाफ हैं.

वकाशा सचदेव
भारत
Updated:
क्विंट के इंवेस्टिगेशन से पता चलता है इलेक्टोरल बॉन्ड का हर डिटेल सरकार को पता चल सकता है
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क्विंट के इंवेस्टिगेशन से पता चलता है इलेक्टोरल बॉन्ड का हर डिटेल सरकार को पता चल सकता है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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इलेक्टोरल बॉन्ड, चुनावी चंदे को साफ-सुथरा बनाने के लिए अच्छा है या फिर ये हालत और खराब कर देगा. इसी मूल सवाल पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बुधवार को चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा कि हम इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं लेकिन इसमें पारदर्शिता में कमी के खिलाफ हैं. इसपर सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चंदा देने वालों का नाम इसलिए गुप्त रखा जा रहा है ताकि उन्हें कोई टारगेट न करे. इसके बाद कोर्ट ने जो पूछा उसका अटॉर्नी जनरल जवाब नहीं दे पाए.

दरअसल चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने वेणुगोपाल से पूछा कि क्या आपको ये जानकारी है कि बैंक को पता रहेगा कि किसने चंदा दिया है? इस पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने 'द क्विंट' की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि ये बात सच है कि बैंक को डोनर के बारे मेंजानकारी मिल जाएगी क्योंकि बॉन्ड पर छिपे हुए अल्फान्यूमेरिक नंबर दिए गए हैं. इस नंबर से पता किया जा सकता है कि किसने चंदा दिया है.

इसके बाद कोर्ट ने वेणुगोपाल से जवाब मांगा तो वो फंस गए. उन्होंने कोर्ट को जवाब दिया कि वो इसपर सरकार से सलाह करके जवाब देंगे.

क्या थी द क्विंट की रिपोर्ट

इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के वक्त ये बताया गया था कि बॉन्‍ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर केअलावा और किसी को नहीं होगी. हालांकि क्विंट के इंवेस्टिगेशन से पता चला कि इलेक्टोरल बॉन्ड में 'अल्फा-न्युमेरिक नंबर'छिपे हुए हैं, जिन्‍हें नंगी आंखों से देख पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन दावे से उलट, इससे ये पता चलता है कि किसनेकिसको भुगतान किया है. पड़ताल के लिए द क्विंट ने दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित लैब मेंजांच के लिए भेजा. लैब की रिपोर्ट से पता चला कि अल्ट्रा वायलेट लाइट में परीक्षण करने पर बॉन्ड के दाहिनी ओर औरऊपी किनारे पर सीरियल नंबर छिपा हुआ दिखता है. दूसरे शब्दों में एक तरफ कोई ये नहीं जान सकेगा कि किसने किसपार्टी को डोनेट किया है, वहीं बैंक के पास इसकी पूरी जानकारी रहेगी. इस बात डर हमेशा बना रहेगा कि ये जानकारीसत्तारूढ़ पार्टी को भी मिल जाए.


12 मार्च को छपी ‘द क्विंट’ की पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें-

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क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?

ये एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट हैं, यानी ये धारक को उतना पैसा देने का वादा करते हैं. ये बॉन्ड सिर्फ और सिर्फ राजनीतिकपार्टियां ही भुना सकती हैं. ये बॉन्ड आप एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की राशि में ही खरीदसकते हैं. ये इलेक्टोरल बॉन्ड आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही ले सकते हैं. ये बॉन्ड आप अकेले, समूहमें, कंपनी या फर्म या हिंदू अनडिवाडेड फैमिली के नाम पर खरीद सकते हैं.

ये बॉन्ड आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और खरीदने के 15 दिनों के अंदर उस राजनीतिक पार्टी को उसबॉन्ड को भुनाना जरूरी होगा, वरना वो पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड पार्टियांजिन्होंने पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किया है, वो ही इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने कीहकदार होंगी. चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को एक वेरिफाइड अकाउंट खुलवाएगी और इसी के जरिए इलेक्टोरल बॉन्डखरीदे जा सकेंगे.

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Published: 10 Apr 2019,05:33 PM IST

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