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Russia-Ukraine War : रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की एक प्रमुख वजह नाटो (NATO) भी है. जहां एक ओर यूक्रेन नाटो की सदस्यता पाना चाहता वहीं दूसरी ओर रूस नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने. यूक्रेन पिछले कई वर्षों से नाटो का सदस्य बनना चाहता है. नाटो के जरिए रूस चारों ओर से अमेरिका के घेरे में आ रहा है. सोवियत संघ के टूटने के बाद 14 यूरोपीय देश नाटो में शामिल हो चुके हैं. रूस नाटो को सुरक्षा के लिहाज से खुद के लिए खतरा मानता है इसीलिए उसने सेल्फ डिफेंस के नाम पर यूक्रेन पर हमला बोल दिया. आइए जानते हैं जिस नाटो के लिए रूस-यूक्रेन आमने-सामने हैं वह संगठन क्या है और उसे क्यों व कैसे बनाया गया...
नाटो एक संगठन है. इसका पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है. यह एक अंतर-सरकारी सैन्य संगठन है. इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में मौजूद है. नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है, जिसका मतलब यह है कि एक या अधिक सदस्यों पर हमला सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है. नाटो अपने सदस्य देशों की सहायता के लिये ना केवल राजनीतिक तरीका अपनाता है बल्कि जरूरत पड़ने पर सैनिक सहयोग भी करता है.
हर सदस्य देश का एक स्थायी डेलिगेशन नाटो के मुख्यालय में मौजूद रहता है. इन डेलिगेशन की अध्यक्षता उनके देशों के राजदूत करते हैं जोकि नाटो में अपने देश के प्रतिनिधि होते हैं. जब मुख्यालय में बैठक होती है जब ये सभी सदस्य मौजूद रहते हैंं. बैठक में सारे अहम फैसले सर्व सहमति से लिए जाते हैं.
नाटो के भीतर एक नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल यानी एनएसी भी है. यही काउंसिल सारे राजनीतिक फैसले लेती है.
नाटो के हर सदस्य देश को अपनी जीडीपी का कम से कम दो फीसदी रक्षा पर खर्च करना होता है. नाटो में डिफेंस बजट के मामले में अमेरिका सबसे आगे है. एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 में अमेरिका ने अपनी जीडीपी का 3.7 फ़ीसदी डिफेंस के लिए रखा था. वहीं यूरोपीय देशों के नाटो सदस्यों ने इस पर 1.77 फीसदी खर्च किया है.
नाटो के फंड को बढ़ाने के लिए कई बार बातें हुई हैं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि नाटो सदस्यों को अपनी जीडीपी का कम से कम 4 प्रतिशत डिफेंस के लिए रखना चाहिए.
इस संगठन का उद्भव डनकिर्क संधि (Dunkirk Treaty) से हुआ था, जिस पर यूके (ब्रिटेन) और फ्रांस ने मार्च 1947 में द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनजर किसी भी संभावित जर्मन या सोवियत संघ के हमले के खिलाफ गठबंधन के रूप में हस्ताक्षर किए थे. इसके अगले ही वर्ष यानी 1948 में बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग को शामिल करने के लिए इस समझौते का विस्तार किया गया और यह वेस्टर्न यूनियन बन गया, जिसे ब्रसेल्स संधि संगठन (Brussels Treaty Organisation) के नाम से भी जाना जाता है.
इसके बाद 4 अप्रैल 1949 में नाटो की स्थापना आधिकारिक तौर पर वाशिंगटन डीसी में हुई. सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए 1949 में अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा नाटो यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन स्थापित किया गया था.
इतिहास को देखते हुए हम कह सकते हैं कि 1949 में जब नाटो का उदय हुआ तो उसके स्व-घोषित मिशन के तीन अहम बिंदु :
सोवियत विस्तारवाद को रोकना.
महाद्वीप पर एक मजबूत उत्तरी अमेरिकी उपस्थिति के जरिए यूरोप में राष्ट्रवादी सैन्यवाद के पुनरुद्धार के लिये मना करना.
यूरोपीय राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहित करना.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के अधिकांश हिस्से को इस तरह से तबाह कर दिया गया, जिसकी अब कल्पना करना मुश्किल है. उस संघर्ष में लगभग 36.5 मिलियन यूरोपीय मारे गए थे, जिनमें से 19 मिलियन नागरिक थे. अकेले जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में ही पांच लाख लोग बेघर हो गए थे.
द्वितीय विश्व युद्ध के विनाश के बाद यूरोपीय देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काफी संघर्ष कर रहे थे उसी दौरान जर्मनी और सोवियत संघ के हमले और घुसपैठ का डर इन देशों को सताने लगा था.
विश्व युद्ध के बाद गरीबी, भोजन की कमी और जबरदस्त बेरोजगारी ने यूरोपीय लोगों को झकझोर दिया था. इस स्थिति ने फ्रांस और इटली में शक्तिशाली कम्युनिस्ट पार्टियों के उदय में सहायता की. उस दौर में सोवियत संघ एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में उभरा और उसकी सेनाएं मध्य और पूर्वी यूरोप के कई राज्यों पर हावी रहीं. 1948 तक रूस ने यूरोप के उस क्षेत्र के सभी देशों में अपना प्रभाव डालने में कामयाबी हासिल कर ली थी.
इसी दौर में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉर्ज मार्शल ने यूरोप को बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता का एक कार्यक्रम प्रस्तावित किया और इस प्रकार यूरोपीय रिकवरी प्रोग्राम या मार्शल योजना की कल्पना की गई. इसने यूरोपीय आर्थिक एकीकरण की सुविधा प्रदान की और संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के बीच साझा हितों और सहयोग के विचार को भी बढ़ावा दिया.
मार्शल स्कीम के तहत ही तुर्की और ग्रीस को लगभग 400 मिलियन डॉलर्स की सहायता प्राप्त हुई थी.
सोवियत संघ ने न तो मार्शल योजना में भाग लिया और न ही पूर्वी यूरोप में अपनी शक्ति के तहत राज्यों को आर्थिक सहायता स्वीकार करने की अनुमति दी. नतीजतन, सोवियत संघ और अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के बीच की खाई चौड़ी हो गई.
रूस के नेतृत्व में यूरोप में साम्यवाद का विस्तार अमेरिका के लिए एक बड़ा सिरदर्द था. अमेरिका ने तब यह महसूस किया कि आर्थिक रूप से मजबूत और पुनर्जीवित यूरोप में बढ़ते कम्युनिस्ट प्रभाव को विफल करना जरूरी है.
इसे ध्यान में रखते हुए, कई पश्चिमी यूरोपीय लोकतंत्र अधिक सैन्य सहयोग और सामूहिक रक्षा के लिए विभिन्न परियोजनाओं को लागू करने के लिए एक साथ आए, जिससे 1948 में वेस्टर्न यूनियन का निर्माण हुआ था.
इसके बाद भी सोवियत ने अपने कदम नहीं रोके तब यह निर्धारित किया गया था कि सही मायने में केवल एक ट्रान्स अटलांटिक सुरक्षा समझौता ही सोवियत आक्रमण को रोक सकता है, साथ ही साथ यूरोपीय सैन्यवाद के पुनरुद्धार को रोक सकता है और राजनीतिक एकीकरण के लिए आधार तैयार कर सकता है. इस के अनुसार काफी चर्चा और बहस के बाद 4 अप्रैल, 1949 को उत्तरी अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए.
नाटो पश्चिमी गोलार्ध (Western Hemisphere) के बाहर संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला शांतिकालीन सैन्य गठबंधन था.
नाटो संगठन को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन द्वारा संकलित किया गया था. इस समूह में वह सारे ही देश शामिल थे जिन्हें साम्यवाद से खतरा था और जो लोकतंत्र को बचाने में पूरा विश्वास रखते थे. नाटो के तहत उन सभी देशों की सुरक्षा का ख्याल रखा जाएगा जो इस संगठन में शामिल हैं.
नाटो संधि के अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि "नाटो सदस्यों में से किसी एक या अधिक के खिलाफ एक सशस्त्र हमला. संगठन के सभी सदस्यों के खिलाफ हमला माना जाएगा और इस तरह के हमले के बाद प्रत्येक सहयोगी देश सशस्त्र बल का उपयोग या उन्हें जो उचित लगे वैसी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. इस संधि के अनुच्छेद 2 और 3 के महत्वपूर्ण उद्देश्य थे जो तुरंत हमले के खतरे से संबंधित नहीं थे. अनुच्छेद 3 ने मित्र राष्ट्रों के बीच सैन्य तैयारियों में सहयोग की नींव रखी थी और अनुच्छेद 2 ने उन्हें गैर-सैन्य सहयोग में संलग्न होने के लिए कुछ छूट दी थी.
नाटो के गठन के समय इसमें केवल 12 देश थे. इसके बाद अगले 6 सालों में यानी 1955 तक इससे तीन और देश तुर्की, ग्रीस और पश्चिमी जर्मनी जुड़े. कोल्ड वॉर यानी शीत युद्ध (1945-1990) के दौरान नाटो का विस्तार लगभग थमा रहा. इस दौरान केवल 1982 में स्पेन ही इस संगठन से जुड़ा, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इसने तेजी से विस्तार किया.
वर्तमान में नाटो के 30 सदस्य हैं. इन देशों के नाटो से जुड़ने के वर्ष का भी यहां उल्लेख किया गया है.
बेल्जियम (1949)
कनाडा (1949)
डेनमार्क (1949)
फ्रांस (1949)
आइसलैंड (1949)
इटली (1949)
लक्ज़मबर्ग (1949)
नीदरलैंड्स (1949)
नॉर्वे (1949)
पुर्तगाल (1949)
यूनाइटेड किंगडम (1949)
संयुक्त राज्य अमेरिका (1949)
ग्रीस (1952)
तुर्की (1952)
जर्मनी (1955)
स्पेन (1982)
चेक गणराज्य (1999)
हंगरी (1999)
पोलैंड (1999)
बुल्गारिया (2004)
एस्टोनिया (2004)
लातविया (2004)
लिथुआनिया (2004)
रोमानिया (2004)
स्लोवाकिया (2004)
स्लोवेनिया (2004)
अल्बानिया (2009)
क्रोएशिया (2009)
मोंटेनेग्रो (2017)
उत्तर मैसेडोनिया (2020)
नाटो वर्तमान में कोसोवो, अफ्रीका और भूमध्यसागर में काम कर रहा है. नाटो की कोसोवो फोर्स (KFOR) में लगभग 3,500 सैनिक काम कर रहे हैं.
2018 में नाटो ने इराक में एक प्रशिक्षण मिशन शुरू किया था, जिसका उद्देश्य इराक के सुरक्षा बलों, उसके रक्षा और सुरक्षा संस्थानों और उसकी राष्ट्रीय रक्षा अकादमियों की क्षमता विकसित करना है.
नाटो अफ्रीकी संघ का समर्थन कर रहा है और अपने सहयोगियों के अनुरोध पर हवाई पुलिस मिशन का संचालन कर रहा है. इसके अलावा नाटो यूरोप में शरणार्थी और प्रवासी संकट में सहायता कर रहा है.
तुर्की में पैट्रियट मिसाइल और एडब्ल्यूएसीएस विमान तैनात हैं.
नाटो प्राकृतिक, तकनीकी या मानवीय आपदाओं से आबादी की रक्षा के लिए आपदा राहत कार्यों और मिशनों को भी अंजाम देता है.
नाटो का जवाब देने के लिए लिए सोवियत संघ ने 14 मई 1955 को वारसा ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानी WTO या वारसा पैक्ट प्रस्तुत किया था. वारसा समझौता सोवियत संघ के अलावा 8 देशों-अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया के बीच हुआ था. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद 1 जुलाई 1991 को वारसा पैक्ट खत्म हो गया था.
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और नाटो के बीच संबंध स्थापित हुए थे. 1994 में रूस नाटो के पार्टनरशिप ऑफ पीस प्रोग्राम से जुड़ा था. रूस और नाटो ने नाटो-रूस काउंसिल का गठन किया था. 2014 में रूस के क्रीमिया पर हमले के बाद नाटो ने रूस के साथ सभी व्यावहारिक नागरिक और सैन्य सहयोग को रद्द कर दिया.
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