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डोकलाम से एटमी डील तक सील कर चुके विदेश मंत्री जयशंकर जमाएंगे धाक?

एस जयशंकर: डोकलाम विवाद सुलझाने में अहम भूमिका

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भारत
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शपथ के बाद हस्ताक्षर करते एस जयशंकर
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शपथ के बाद हस्ताक्षर करते एस जयशंकर
(फोटो: PTI)

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30 मई 2019 को जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तो उनकी कैबिनेट की लिस्ट में मौजूद एक नाम ने सबको चौंका दिया था. वो नाम था सुब्रमण्यम जयशंकर. और अब पीएम मोदी ने बड़ा फैसला लेते हुए पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर (सुब्रमण्यम जयशंकर) को सुषमा स्वराज की जगह विदेश मंत्री बनाया है. 2015 से लेकर 2018 तक विदेश सचिव के रूप में काम कर चुके एस जयशंकर कामयाब डिप्लोमैट हैं.

अब सवाल है कि एस जयशंकर को मोदी सरकार में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिली है, तो इसका विदेश नीति पर क्या असर पड़ेगा? क्या वजह रही जो उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है?

एस जयशंकर को भले ही कम लोग जानते हों, लेकिन 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी रहे जयशंकर की विदेश मामलों में अच्छी पकड़ है. चीन, रूस, अमेरिका, श्रीलंका, पूर्वी यूरोप, बुडापेस्ट, टोक्यो जैसे देशों में कभी राजदूत तो कभी सचिव और राजनैतिक सलाहकार के तौर पर काम कर चुके हैं.

डोकलाम विवाद सुलझाने में अहम भूमिका

एस. जयशंकर को जनवरी 2015 में केंद्र की मोदी सरकार ने विदेश सचिव बनाया था. इससे पहले जयशंकर अमेरिका में 2014 से 2015 तक भारत के राजदूत थे. इसके अलावा जयशंकर चीन में साल 2009 से 2013 के बीच चीन में भारतीय राजदूत के रूप में काम कर चुके हैं.

उन्होंने भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद को खत्म करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, डोकलाम विवाद ने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया था. लेकिन बीजिंग में अपने कार्यकाल के दौरान, जयशंकर ने भारत को चीन के साथ व्यापार, बॉर्डर और सांस्कृतिक संबंधों में सुधार करने में मदद की. ऐसे में उम्मीद है कि विदेश मंत्री बनने के बाद चीन के रिश्तों में वो नए आयाम जोड़ेंगे.
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न्यूक्लियर डील में अहम रोल

64 साल के जयशंकर अमेरिका, चीन के अलावा चेक रिपब्लिक में भारतीय राजदूत और सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में काम किया था. कहा जाता है कि जयशंकर ने अमेरिका के साथ एटमी डील का रास्ता साफ करने का काम किया था और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. ऐसे में अमेरिका और भारत के रिश्ते को मंत्री बनने से और मजबूती मिलेगी.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी करने वाले जयशंकर श्रीलंका में भी भारतीय शांति सेना के राजनैतिक सलाहकार के तौर पर भी काम कर चुके हैं. जयशंकर पेचीदे मामले को सुलझाने में माहिर रणनीतिकार माने जाते हैं. ऐसे में अब जब उन्हें ये जिम्मेदारी दी गई है, तो भारत के रिश्ते विदेशी देशों से और बेहतर होने की उम्मीद है.

2015 में रिटायरमेंट के चंद दिनों पहले ही विदेश सचिव सुजाता सिंह को हटाकर मोदी सरकार ने जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया. कहा जाता है कि मनमोहन सुजाता सिंह की जगह इन्हें ही विदेश सचिव बनाना चाहते थे लेकिन वरिष्ठता के आधार पर सुजाता को ये पद देने की सलाह उन्होंने मान ली.

जयशंकर के लिए चैलेंज

बात अगर नए विदेश मंत्री की चुनौतियों की करें तो सबसे पहले उनके सामने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते को मजबूत बनाना सबसे बड़ी चुनौती होगी. पिछले कुछ वक्त से चीन अपनी पकड़ नेपाल और पाकिस्तान में मजबूत करने में लगा है. इसके अलावा बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते में आई खटास को कम करने भी जयशंकर के लिए बड़ी चुनौती होगी.

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