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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार, 17 अक्टूबर को अपना फैसला सुनाएगा.
मई 2023 में, भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बेंच में अन्य जजों में जस्टिस हिमा कोहली, संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि:
समलैंगिक संबंधों को मान्यता देना विधायिका पर निर्भर है, लेकिन सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि समलैंगिक जोड़ों को बिना शादी सामाजिक और अन्य लाभ और कानूनी अधिकार दिए जाएं.
अदालतें युवाओं की भावनाओं के आधार पर किसी मुद्दें पर निर्णय नहीं ले सकतीं.
विवाह केवल वैधानिक ही नहीं बल्कि संवैधानिक सुरक्षा के भी हकदार हैं.
7 सितंबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के हिस्से को अमान्य करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. हालांकि, भारत में समलैंगिक विवाहों की कानूनी स्थिति धार्मिक और सरकारी विरोध के साथ अस्पष्ट बनी हुई है.
भारत में विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, ईसाई विवाह अधिनियम, मुस्लिम विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत बांटा गया है. इनमें से कोई भी समलैंगिक कपल के बीच विवाह से संबंधित नहीं है.
भारत में LGBTQ समुदाय के कानूनी अधिकारों को सबसे लंबे समय तक प्रतिबंधित रखा गया था. लेकिन बड़ी सफलता 2018 में मिली जब, भारत ने समलैंगिकता के अपराधीकरण के ब्रिटिश शासन के कठोर कानून को पलटने का फैसला किया था.
हालांकि, LGBTQ सदस्यों ने भारत में समान अधिकारों की मांग उठाई है. उनकी मांग है कि उन्हें ही अन्य की तरह विवाह करने का कानूनी अधिकार हो. संविधान के तहत अधिकारों के उनके दायरे में विस्तार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया है, जिससे उम्मीद की कुछ झलक मिलती है कि सुप्रीम कोर्ट भारत में समान लिंग विवाह को वैध कर सकती है.
यह उम्मीद सभी धार्मिक संप्रदायों के विरोध और केंद्र में PM मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के बावजूद बनी हुई है.
2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को "तीसरे लिंग" के रूप में कानूनी मान्यता दी.
2017 में, इसने निजता के अधिकार (Right To Privacy) को मजबूत किया, और सेक्सुअल ओरिएंटेशन (एक इमोशनल, रोमांटिक या सेक्शुअल आकर्षण है जो एक इंसान दूसरे के लिए महसूस करता है) को किसी व्यक्ति की निजता और गरिमा के एक आवश्यक गुण के रूप में भी मान्यता दी.
2018 में, इसने समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया-एक ब्रिटिश शासन के कानून को पलट दिया- और LGBTQ लोगों के लिए संवैधानिक अधिकारों का विस्तार किया.
2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने "एटिपिकल" परिवारों के लिए सुरक्षा की स्थापना की. यह एक व्यापक श्रेणी है, जिसमें शामिल हैं, उदाहरण के लिए, एकल माता-पिता, मिश्रित परिवार या रिश्तेदारी संबंध-और समान-लिंग वाले जोड़े. अदालत ने कहा कि इस तरह के गैर-पारंपरिक विभिन्न सामाजिक कल्याण कानूनों के तहत परिवारों की अभिव्यक्तियां समान रूप से लाभ के पात्र हैं.
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