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PM की आलोचना,समलैंगिकता: कोलेजियम ने बताया जजों पर सरकार ने क्यों लौटाई सिफारिश

''आर जॉन सत्यन ने पीएम मोदी की आलोचना से जुड़ी ‘द क्विंट’ में पब्लिश एक आर्टिकल को शेयर किया था''

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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court collegium) ने गुरुवार को पांच अधिवक्ताओं को हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त करने के अपने फैसले को दोहराया है. साथ ही जजों कि नियुक्ति पर सरकार की आपत्तियों को भी सार्वजनिक किया है.

किन नामों की कॉलेजियम ने की थी सिफारिश

कॉलेजियम ने जिन पांच नामों की सिफारिश की है उसमें-

  1. दिल्ली हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल

  2. बंबई हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में वकील सोमशेखर सुंदरेसन

  3. मद्रास हाई कोर्ट के लिए अधिवक्ता आर जॉन सत्यन

  4. कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शाक्य सेन

  5. कलकत्ता हाई कोर्ट के लिए अमितेश बनर्जी

सरकार ने पिछले साल 25 नवंबर को इन नामों पर पुनर्विचार की मांग की थी. बता दें कि कॉलेजियम में चीफ जस्टिस के अलावा, जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ भी शामिल हैं.

समलैंगिंग वकील सौरभ कृपाल के नाम पर क्यों आपत्ति

बता दें कि 11 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कृपाल की नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन केंद्र ने कृपाल को दिल्ली हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश पर आपत्ति जताई थी. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उनके नाम पर फिर विचार करने के लिए कहा था.

अब कॉलेजियम ने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी RAW और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के संचार का हवाला देते हुए कहा कि “ऐसा लगता है कि कॉलेजियम के द्वारा सौरभ कृपाल के नाम को मंजूरी देने की सिफारिश पर दो आपत्तियां हैं-

(i) सौरभ कृपाल के पार्टनर एक स्विस नागरिक हैं

(ii) वह एक घनिष्ठ संबंध में है और अपने यौन अभिविन्यास के बारे में ओपन हैं."

कानून मंत्री के 1 अप्रैल 2021 के पत्र में कहा गया है कि, 'समलैंगिकता भारत में गैर-अपराध है, फिर भी समान-लिंग विवाह (same-sex marriage) अभी भी भारत में संहिताबद्ध वैधानिक कानून या असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानून में मान्यता से वंचित है.'

सरकार की इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कॉलेजियम ने कहा,

"सैद्धांतिक रूप से, सौरभ कृपाल की उम्मीदवारी पर इस आधार पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है कि उनका साथी एक विदेशी नागरिक है. ये पहले से मानने का कोई कारण नहीं है कि कृपाल के साथी, जो एक स्विस नागरिक हैं, हमारे देश के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेंगे, क्योंकि उनका मूल देश एक मित्र राष्ट्र है. उच्च पदों पर आसीन कई व्यक्तियों, जिनमें वर्तमान और संवैधानिक पदों पर आसीन लोग शामिल हैं, उनके पति-पत्नी विदेशी नागरिक हैं और रहे हैं."

कृपाल के यौन रुझान के बारे में केंद्र की चिंताओं पर कॉलेजियम ने कहा कि "यह स्पष्ट रूप से उस आधार पर उनकी उम्मीदवारी को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित संवैधानिक सिद्धांतों के उलट होगा."

सोमशेखर सुंदरेसन के नाम पर क्यों आपत्ति?

अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरेसन पर, कॉलेजियम के बयान में कहा गया है कि सरकार ने उनके नाम पर पुनर्विचार की मांग इस आधार पर की थी कि "उन्होंने कई मामलों पर सोशल मीडिया में अपने विचार रखे हैं जो अदालतों के सामने विचार का विषय है."

बता दें कि कॉलेजियम ने पिछले साल 16 फरवरी को सुंदरेसन के नाम की सिफारिश की थी.

कॉलेजियम ने सभी नागरिकों को स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार की बात करते हुए सरकार की आपत्ति पर कहा, "एक उम्मीदवार द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति उसे एक संवैधानिक पद धारण करने के लिए अयोग्य नहीं बनाती है, जब तक कि न्यायाधीश पद के लिए प्रस्तावित व्यक्ति योग्य और ईमानदार हो.”

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की आपत्ति पर कहा,

"जिस तरह से उम्मीदवार ने अपने विचार व्यक्त किए हैं, वह इस अनुमान को सही नहीं ठहराता है कि वह 'अत्यधिक पक्षपाती विचारों वाला व्यक्ति' है या वह 'सरकार की महत्वपूर्ण नीतियों, पहलों और निर्देशों पर सोशल मीडिया पर चुनिंदा रूप से आलोचनात्मक' रहा है." (जैसा कि न्याय विभाग की आपत्तियों में संकेत दिया गया है) और न ही कोई कंटेंट किसी मजबूत वैचारिक झुकाव वाले राजनीतिक दल के साथ उनके संबंधों का संकेत देता है."

बयान में कहा गया है कि सुंदरेसन ने "कमर्शियल लॉ में विशेषज्ञता हासिल की है और वह बॉम्बे हाई कोर्ट के लिए एक उपयोगी व्‍यक्ति होंगे, जहां दूसरे ब्रांच के अलावा कमर्शियल और सिक्योरिटी लॉ के मामले बड़ी संख्या में हैं."

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आर जॉन सत्यन के नाम पर सरकार को क्यों आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने आर जॉन सत्यन को मद्रास हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की थी. कॉलेजियम ने सत्यन पर, इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाला देते हुए कहा, “खुले स्रोतों के अनुसार, उनके द्वारा सोशल मीडिया पर किए गए दो पोस्ट- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना से जुड़ी ‘द क्विंट’ में पब्लिश एक आर्टिकल को शेयर करना; और दूसरा मेडिकल की तैयारी कर रही अनीता, जिसकी 2017 में NEET एग्जाम में पास नहीं करने के बाद आत्महत्या के कारण मौत हो गई थी, उससे जुड़ी सोशल मीडिया पोस्ट. इस पोस्ट को 'राजनीतिक विश्वासघात' द्वारा हत्या के रूप में दिखाया गया और 'शेम ऑफ यू इंडिया' वाला टैग नोटिस में आया था.”

बाकी दो एडवोकेट शाक्य सेन और अमितेश बनर्जी को कलकत्ता हाई कोर्ट का जज न बनाए जाने की दलील के रूप में केंद्र ने वही कहा है कि जिसे कोलेजियम पहले ही खारिज कर चुका है.

सरकार ने उसकी सिफारिशों को किस आधार पर लौटाया है, इसे कोलेजियम ने सार्वजनिक किया है तो ये सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच टकराव का एक नया दौर है.

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