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सेमीकंडक्टर (Semiconductor) यानी दुनिया को खुद में समेटने की ताकत रखने वाली एक जादुई चिप (Chip), जिसका नाम पूरी दुनिया में बेहद जाना पहचाना है, पर हमारे देश से इसका नाता इसका डिजाइन तैयार करने और दूसरे देशों से इसे मंगाकर उपयोग करने तक ही सीमित था. दुनिया की इस सबसे बड़ी तकनीकी जरूरत को कभी हमारे देश में बनाने के बारे में सोचा तक नहीं गया था, पर पिछले साल कोराेना के बाद बदली दुनिया में भारत ने खुद को सेमीकंडक्टर हब (Semiconductor hub) बनाने का सपना देखा और अब इसे अमल में लाने की शुरुआत हो रही है. बेंगलुरू में 'मेकिंग इंडिया ए सेमीकंडक्टर नेशन' थीम के साथ सेमीकॉन इंडिया 2022 (Semicon India 2022) कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है, जिसका खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) उद्घाटन कर रहे हैं. लेकिन इस राह में बहुत चुनौतियां हैं लेकिन संभावनाएं भी असीम हैं.
सेमीकंडक्टर का नाम सुनकर हमें ऐसा लगता है कि यह कोई मामूली चीज होगी. देखने में लगता भी ऐसा है, क्योंकि इसका आकार छोटा ही होता है, पर यह छोटी चीज बहुत काम की होती है. आज के तकनीकी जमाने में शायद ही कोई ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होती है, जो बिना सेमीकंडक्टर के इस्तेमाल से बनती हो. इसे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी की बहुत महत्वपूर्ण चीज माना जाए तो गलत नहीं होगा.
इसी के दम पर दुनिया की हर मशीन में लाखों फीचर्स आ गए हैं और वे चलते-फिरते लग्जरियस आइटम बन गए हैं. हम अपने उपकरणों को इस चिप के माध्यम से कंट्रोल कर रहे हैं इन सेमीकंडक्टर चिप्स का आधुनिक दुनिया के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है.
सेमीकंडक्टर कंडक्टर और नॉन कंडक्टर या इंसुलेटर के बीच की एक कड़ी होती है, अर्थात यह ना तो पूरी तरह से इंसुलेटर है और ना ही इसे पूरी तरह से कंडक्टर कहा जा सकता है.
इसमें बिजली करंट को प्रभावित करने की क्षमता यानी कि कंडक्टिविटी मेटल और सिरामिक्स जैसे इंसुलेटर के बीच की तरह होती है. सेमीकंडक्टर को किसी शुद्ध तत्व जैसे जर्मेनियम, सिलिकॉन आदि से बनाया जा सकता है अथवा यह कैडमियम सेलेनाइड, गैलियम और आर्सेनाइड जैसे किसी कंपाउंड का बना भी हो सकता है. यह डोपिंग नाम की एक विशेष विधि के द्वारा बनाया जाता है.
सेमीकंडक्टर चिप (semiconductor chip) की कमी ने अभी ऑटो इंडस्ट्री (Auto Industry) की मुश्किलों को बढ़ा रखा है. सेमीकंडक्टर की यह कमी पिछले साल के त्योहारी सीजन से ही चल रही है उस समय हर तरह की गाड़ियों की कीमतों ने लोगों के चेहरे की हवाइयां उड़ा रखी थीं. गाड़ी कंपनी डीलर्स को सप्लाई तक नहीं दे पा रही थीं. भारत में एक्टिव सभी प्रमुख वाहन कंपनियां मारुति सुजुकी, टोयोटा, किर्लोस्कर मोटर, महिंद्रा एंड महिंद्रा, रेनॉ सभी को इस परेशानी से गुजरना पड़ा.
विगत फरवरी में कुल फोर व्हीलर्स, टू व्हीलर्स व थ्री व्हीलर्स की थोक बिक्री 13,28,027 यूनिट रह गई. पिछले साल 2021 की फरवरी में यह 17,35,909 थी, इस हिसाब से तब के मुकाबले यह 23 फीसदी तक कम है. वाहनों की कुल सप्लाई छह फीसदी घटकर 2,62,984 इकाई रह गई है. जो पिछले वर्ष फरवरी में 2,81,380 यूनिट थी. यात्री कारों की थोक बिक्री पिछले महीने 1,33,572 यूनिट रही जो फरवरी 2021 में 1,55,128 यूनिट थी. ऑटो इंडस्ट्री (Auto Industry) की सबसे बड़ी संस्था सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स, सियाम (SIAM) ने ये आंकड़े जारी किए हैं.
इसका इस्तेमाल कंप्यूटर गेम और फिल्म एडिटिंग वाले हैवी कंप्यूटर्स व क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग में किया जाता है. कुछ प्रोडक्ट को छोड़ दें तो ज्यादातर सेक्टर्स में सेमीकंडक्टर की कमी ने भूचाल की स्थिति ला दी है.
जब कोरोना की पहली लहर आई तब सेमीकंडक्टर के इस्तेमाल वाले उपकरणों की मांग तेजी से कम हुई और उनकी बिक्री में भी गिरावट आई. डिमांड कम होने के कारण कंपनियों ने सेमीकंडक्टर का उत्पादन कम कर दिया और केवल उन्हीं प्रोडक्ट के लिए सेमीकंडक्टर बनवाना जारी रखे जिनकी मांग कोरोना लहर के दौरान भी बनी हुई थी.
इससे सेमीकंडक्टर के उत्पादन में एक गैप आ गया और उनकी उपलब्धता एक स्तर पर ठहर गई. जब पहली लहर खत्म हुई तो उन प्रोडक्ट की डिमांड अचानक बढ़ी जिनकी डिमांड कोरोना के दौरान कम हो गई थी. इससे मार्केट में सेमीकंडक्टर चिप की तेजी से आवश्यकता महसूस की गई, परंतु कंपनियां सेमीकंडक्टर के प्रोडक्शन को थाम चुकी थीं. अतः इस डिमांड के अनुसार सप्लाई करना संभव नहीं हो पाया.
सेमीकंडक्टर का उत्पादन कुछेक कंपनियों से ही जुड़ा नहीं होता कि एकदम से इसका उत्पादन स्तर उठा लिया जाए. छोटे से सेमीकंडक्टर की निर्माण प्रक्रिया के 400-500 चरण होते हैं.
कई सारी छोटी-बड़ी कंपनियां इससे निर्माण के अलग अलग स्तर से जुड़ी होती हैं. कई उससे जुड़े रिसर्च और डेवलपमेंट का काम करती हैं. इस पूरी प्रक्रिया को पटरी पर आने में समय लगेगा.
अगर पिछली शताब्दी यानी 20वीं शताब्दी में दुनिया के कुछ मुल्कों ने तेल के खेल के बल पर अपनी बादशाहत साबित की तो वर्तमान 21वीं शताब्दी में वही देश आगे बढ़ पा रहे हैं, जिनका डाटा वर्ल्ड पर दबदबा है. इस बात को भारत सरकार ने भांप लिया है कि जिस देश की चिप इंडस्ट्री स्ट्रांग कर दी जाएगी, वह डाटा वर्ल्ड में महारत हासिल कर लेगा और इस शताब्दी में उसका दुनिया का अगुआ बनना संभव हो पाएगा.
भारत सरकार ने पिछले साल के आखिरी महीने दिसंबर में ही सेमीकंडक्टर इंडिया प्रोग्राम लॉन्च कर दिया था, जिसकी 76000 करोड़ रुपए की फंडिंग की जा रही है.
इस भारत सेमीकंडक्टर मिशन (India Semiconductor Mission - ISM) में सेमीकंडक्टर वेफर फैब्रिकेशन सुविधाओं की स्थापना के लिए बड़े निवेश को आकर्षित करने के उपाय किए जा रहे हैं. केंद्र द्वारा भारत में सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास के लिए रुचि रखने वाली कंपनियों को आमंत्रित किया जा रहा है.
सेमीकंडक्टर की दौड़ में अव्वल बनने के लिए भारत के फेवर में एक भू राजनैतिक कारण काफी मददगार साबित हो सकता है. अभी दुनिया सेमीकंडक्टर के सबसे बड़े निर्माता अमेरिका और ताइवान हैं. चीन इनसे सेमीकंडक्टर मंगाने का सबसे बड़ा आयातक देश है, पर साथ ही वह इनका दबदबा तोड़ने अपने यहां ही इसका घरेलू निर्माण बढ़ाना चाहता है.
इससे पहले भी चीन अपने यहां उत्पादन करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के प्रोडक्ट की तकनीक चोरी कर अपने खुद के नकल किए प्रोडक्ट बाजार में ले आया है. भारत ने जब से सेमीकंडक्टर के उत्पादन में इंट्रेस्ट लिया है, तब से इन बड़ी कंपनियों का उसे ठीक रुझान मिला है, क्योंकि यहां उन्हें अपनी तकनीक चोरी का खतरा नहीं लगता. भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए सरकार कई बड़ी कंपनियों से यहां सेमीकंडक्टर उत्पादन यूनिट लगाने के लिए चर्चा कर रही है.
जब आप ये जानेंगे कि दुनिया की 90 फीसदी सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनियों के अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) और डिजाइन केंद्र हमारे देश में ही हैं, तो आप चौंक जाएंगे. 20 फीसदी सेमीकंडक्टर डिजाइनर भी भारतीय हैं. देश में करीब 2 हजार चिप हर साल डिजाइन होते हैं, मगर इसके बाद भी इन कंपनियों के निर्माण केंद्र हमारे यहां नहीं है, जिससे हमें हमारी जरूरत का शत-प्रतिशत सेमीकंडक्टकर आयात करना पड़ता है.
इसका कारण है कि कभी हमारे यहां सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा (फैब) के सेटअप का विचार नहीं किया गया. यह बहुत महंगा होता है, एक फैब सेटअप की लागत एक अरब डॉलर के गुणकों में हो सकती है, जो अनुमान केवल छोटे पैमाने के उद्योगों के लिये है. फुल फैब सेटअप का खर्च और ज्यादा है. यही अभी तक हमारे लिए चैलेंज बनता रहा है और आगे भी यही मुख्य चुनौती रहेगा.
भारत की उत्पादन संबंध प्रोत्साहन योजना (PLI) में कम से कम दो ग्रीनफील्ड सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने की लागत की 50% वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान है. डिस्प्ले फैब, पैकेजिंग और परीक्षण सुविधाओं और चिप डिज़ाइन केंद्रों सहित अन्य यूनिट्स के लिये वर्तमान योजना परिव्यय लगभग 100 बिलियन डॉलर एक बहुत बड़ा चैलेंज है.
सरकार को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड जैसे अपने सार्वजनिक उपक्रमों का उपयोग एक वर्ल्डक्लास सेमीकंडक्टर फैब फाउंड्री स्थापित करने के लिये करना चाहिए.
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